पारदर्शिता जरूरी (बिजनेस स्टैंडर्ड)

भारतीय औषधि नियामक के सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोविड-19 टीकों को मंजूरी देने की घोषणा के बाद, मंजूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता और इस दौरान बरती गई पारदर्शिता को लेकर गंभीर प्रश्न उत्पन्न हुए हैं। यह आवश्यक है कि सरकार इन संदेहों को तत्काल पारदर्शी तरीके से दूर करे। यह उचित नहीं होगा कि जनता को अलग-अलग लोगों के वक्तव्यों के भरोसे छोड़ दिया जाए। संदेहों की शुरुआत उस संवाददाता सम्मेलन से हुई जिसमें भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने एक वक्तव्य पढ़ा लेकिन किसी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों टीके '110 प्रतिशत' सुरक्षित हैं। लेकिन इस दावे के समर्थन का आधार नहीं बताया गया।

भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को लेकर आशंकाएं अधिक हैं क्योंकि इसके पहले और दूसरे चरण के परीक्षण को लेकर बहुत अधिक सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। टीके के चिकित्सकीय प्रभाव को लेकर भी अधिक आंकड़े नहीं हैं जबकि सीरम इंस्टीट्यूट ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय और ऐस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित जो टीका बना रही है उसके बारे में ये आंकड़े अधिक मजबूती से उपलब्ध हैं। भारत बायोटेक ने एक वक्तव्य जारी करके कहा है उसे आशा है कि टीका 60 प्रतिशत प्रभावी होगा। लेकिन उसने भी अपने इस दावे के समर्थन का आधार नहीं बताया। कहा जा रहा है कि यह दुनिया में पहला मौका है जब तीसरे चरण के अध्ययन के आंकड़ों के बिना ही किसी टीके को मंजूरी दी गई है। डीसीजीआई को इस विषय में असहज सवालों के जवाब देने होंगे और तीसरे चरण की जांच की समीक्षा के बारे में स्पष्ट जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। विशेषज्ञों ने भी कहा है कि डीसीजीआई के वक्तव्य की भाषा से भ्रम हो रहा है। डीसीजीआई ने कहा है कि केंद्रीय मानक औषधि नियंत्रण संगठन की विषय विशेषज्ञ समिति ने 'चिकित्सकीय परीक्षण के रूप में अत्यंत सावधानीपूर्वक इस्तेमाल की इजाजत दी है।'


वक्तव्य में कहा गया है कि देश में इस टीके को लगवाने वाले शुरुआती लोग चिकित्सकीय परीक्षण का हिस्सा होंगे। यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कड़ी विधिक व्यवस्था का पालन करना होता है। इसमें टीका लगवाने वाले को पूरी सूचना देकर उसकी सहमति लेनी होती है और शोध मानकों का पालन करना होता है। अभी स्पष्ट नहीं है कि ऐसा किया जाएगा या नहीं। दोनों टीकों को लेकर डीसीजीआई के वक्तव्य में और भी झोल हैं। उदाहरण के लिए डीसीजीआई ने सीरम इंस्टीट्यूट के टीके कोविशील्ड को सीमित आपात इस्तेमाल की अनुमति देते हुए कहा है कि यह विशिष्ट नियामकीय परिस्थितियों में किया जाए। इन परिस्थितियों के बारे में कुछ नहीं कहा गया। भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के बारे में कहा गया है कि 'इसे जनहित में अत्यंत सावधानी के साथ' इस्तेमाल किया जाए। यह बात सीरम के टीके के लिए नहीं कही गई है। एक बार फिर इसकी कोई वजह नहीं बताई गई। एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया का कहना है कि इससे लग रहा है कोवैक्सीन बैकअप योजना का हिस्सा है। 'आपात इस्तेमाल की मंजूरी' और 'सीमित आपात इस्तेमाल' जैसी बातें भी भ्रम पैदा कर रही हैं।


विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय नियमन में ऐसी बातें शामिल नहीं हैं और इससे काफी भ्रम पैदा हो सकता है। भारत की मंजूरी प्रक्रिया अमेरिका से काफी अलग है जहां समीक्षा प्रक्रिया का सीधा प्रसारण किया गया और टीके को लेकर विस्तृत ब्योरा पेश किया गया। ब्रिटेन में मंजूरी की घोषणा करते हुए संवाददाता सम्मेलन किया गया और सवालों के जवाब दिए गए। भारत में विशेषज्ञ समिति के सदस्यों के नाम तक सार्वजनिक नहीं किए गए। टीका मंजूरी प्रणाली में ऐसी अस्पष्टता के कारण टीके को लेकर काफी अविश्वास हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो हालात को तेजी से सामान्य बनाने के लिए की जा रही यह कवायद अपने उद्देश्य में नाकाम हो जाएगी।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment