बदइंतजामी की लपटें (जनसत्ता)

महाराष्ट्र के भंडारा जिला अस्पताल में लगी आग से दस नवजात शिशुओं की मौत ने एक बार फिर सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर से लोगों का भरोसा कमजोर कर दिया है। इस अस्पताल के बच्चों की विशेष देखभाल के लिए बने कक्ष में सत्रह बच्चे भर्ती थे। उस कक्ष में बीते शुक्रवार की रात आग लग गई।

जब तक बचाव के उपाय किए जाते, तब तक आग और धुएं में दस बच्चों ने दम तोड़ दिया। सात बच्चों को बचा लिया गया। अनुमान है कि बिजली के तारों के आपस में जुड़ कर जल उठने की वजह से आग लगी होगी। यह पहली घटना नहीं है, जब इस तरह आग लगने या उपकरणों में खराबी आने के चलते नवजात शिशुओं को जान गंवानी पड़ी। अनेक अस्पतालों में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। बिहार और गुजरात, यहां तक कि दिल्ली के कुछ अस्पतालों के पालनाघरों में उपकरणों में खराबी की वजह से कई बच्चों के मारे जाने के उदाहरण हैं।

सरकारी अस्पतालों में रखरखाव संबंधी गड़बड़ियां आम हैं। इसकी मुख्य रूप से दो वजहें हैं। एक तो उनमें रखरखाव और नए उपकरणों की खरीद आदि के मद में पर्याप्त धन का न होना। इसके चलते पुराने और लगभग अनुपयोगी हो चुके उपकरणों को जैसे-तैसे सुधार कर काम चलाया जाता है। बिजली उपकरणों के मामले में भी यही कारण प्रमुख होता है।

पुराने पड़ गए तारों को बदलने की जरूरत नहीं समझी जाती। आजकल बिजली से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए आधुनिक उपकरण आ चुके हैं, जो तारों के गरम होकर जल उठने की स्थिति में स्वत: बिजली काट देते हैं। मगर सरकारी भवनों में ऐसे उपकरणों की उम्मीद बेमानी ही कही जा सकती है।

इसके पीछे दूसरा प्रमुख कारण है, सरकारी कर्मचारियों का अपने कर्तव्यों के प्रति संजीदा न होना। इसी के चलते न सिर्फ आग लगने, बल्कि अस्पतालों में आक्सीजन की कमी, गलत दवाएं देने, मरीज का समय पर इलाज न शुरू करने आदि के चलते कई मरीज दम तोड़ देते हैं।

अस्पतालों में नवजात शिशुओं के लिए बने कक्ष और गहन चिकित्सा कक्ष बेहद संवेदनशील जगहें होती हैं। उनमें उपकरणों के रखरखाव पर विशेष ध्यान रखने की अपेक्षा होती है। मगर अस्पताल प्रबंधन इस तकाजे को नहीं समझता, जिसका नतीजा होता है कि हर साल अनेक बच्चे नाहक अपनी जान गंवा देते हैं।

ऐसी घटनाओं के बाद आमतौर पर कुछ कर्मचारियों की बर्खास्तगी, पीड़ित परिवारों को मुआवजे की घोषणा आदि करके काम पूरा समझ लिया जाता है। भंडारा जिला अस्पताल में हुई घटना के बाद भी वही सब दोहराया गया। मगर ऐसी घटनाएं हमारे लिए एक सबक की तरह होनी चाहिए, ताकि दूसरी जगहों पर इन्हें दुहरने से रोका जा सके।

कम से कम बिजली उपकरणों की वजह से आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए तो अत्याधुनिक उपकरण लगाए ही जा सकते हैं। जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं, तब बार-बार रेखांकित किया जाता है कि सार्वजनिक अस्पतालों के कर्मचारियों को संवेदनशील और उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए। इसके लिए केवल कठोर दंड उपाय नहीं हो सकता। उनके नियमित प्रशिक्षण की भी जरूरत है। वरना इस तरह अपने नवजात शिशुओं को खोकर बिलखते लोगों का दर्द उन्हें शायद कभी महसूस नहीं होगा।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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