सजा का ढोंग (जनसत्ता)

लखवी को यह सजा आतंकी संगठनों को पैसा मुहैया करवाने के मामले में दोषी पाए जाने के लिए दी गई है। पिछले साल नवंबर में लश्कर के सरगना हाफिज सईद सहित तीन लोगों को दस-दस साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। पाकिस्तान जिन्हें अब तक आतंकी मानने और अपने यहां उनकी मौजूदगी से इंकार करता रहा था, उन्हें अदालत ने सजा देकर यह साबित कर दिया है कि ये आतंकी हैं और आतंकी गतिविधियों में लिप्त हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं कि आतंकियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई कर पाकिस्तान अब तक सिर्फ दिखावा करता आया है। ऐसा संदेह बेवजह नहीं है। जो देश लंबे समय से इन आतंकियों को पनाह दिए हुए है और इनका इस्तेमाल पड़ोसी देश भारत सहित दुनियाभर में आतंकवाद फैलाने में करता रहा है, आखिर वह इन्हें इतनी आसानी से सजा कैसे दे सकता है!

दरअसल पाकिस्तान पर अब पश्चिमी देशों और अमेरिका का दबाव काफी बढ़ गया है। वित्तीय कार्रवाई बल (एफएटीएफ) पिछले कई सालों से पाकिस्तान को यह चेतावनी देता आ रहा है कि वह अपने देश में मौजूद आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे और उनका खात्मा करे, वरना उसे निगरानी सूची से हटा कर काली सूची में डाल दिया जाएगा।

एफएटीए की अगले महीने पेरिस में बैठक होगी और उसमें पाकिस्तान को काली सूची में डालने के मसले पर चर्चा होगी। इससे पाकिस्तान भारी दबाव में है। उसे डर है कि अगर काली सूची में डाल दिया गया तो हर तरह की विदेशी मदद पर पाबंदी लग जाएगी और तब विश्व बैंक व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संस्थानों के दरवाजे भी उसके लिए बंद हो जाएंगे।

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पैंदे में बैठ ही चुकी है। इसीलिए वह अब जैश ए मोहम्मद और लश्कर जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ अभियान चलाता दिख रहा है और पाकिस्तानी अदालतें कड़ी सजा देने का दिखावा कर रही हैं। हैरानी की बात तो यह है कि ये वही अदालतें हैं जो पहले इन आतंकियों के मामलों को खारिज करती रही हैं। ये आतंकी तो वर्षों से आतंकवाद फैला रहे हैं, लेकिन तब किसी अदालत या सरकार ने इन्हें पकड़ कर सजा देने की जरूरत नहीं समझी।

यह कोई छिपी बात नहीं है कि नवंबर 2008 में हुए मुंबई हमले के असली साजिशकर्ता लखवी और हाफिज सईद ही हैं। भारत में संसद पर हमले से लेकर मुंबई पर आतंकी हमला, पठानकोट और उड़ी में वायुसेना के ठिकानों पर हमले, पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हमला- सब पाकिस्तान सरकार के इशारे पर ही हुए हैं।

भारत ने हर हमले के अकाट्य प्रमाण उसे सौंपे, लेकिन आज तक किसी भी मामले में उसने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया, जिससे लगे कि वह भारत पर हमला करने वाले आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने का इरादा रखता है। बल्कि वह तो हमेशा इस तथ्य को ही खारिज करता रहा है कि भारत पर हमला करने वालों का उससे कोई लेनादेना नहीं है।

अगर अमेरिका सहित पश्चिमी देश आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख नहीं दिखाते तो शायद ही पाकिस्तान भारी दबाव में आता। यदि पाकिस्तान सरकार ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ हमले के आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करती तो सारे गुनहगार न जाने कब के ही सलाखों के पीछे होते।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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