टीके से इतिहास रचता भारत (हिन्दुस्तान)

एन के अरोड़ा, चिकित्सा विशेषज्ञ एवं पूर्व प्राध्यापक, एम्स 


कोविड-19 के खिलाफ दुनिया के सबसे बडे़ टीकाकरण अभियान की आज शुरुआत हो रही है। इससे भारत विश्व के उन अग्रणी देशों में शुमार हो गया है, जहां विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है। पहले हम ऐसी उपलब्धियों के लिए पश्चिम का मुंह ताका करते थे, और कभी-कभी दशकों बाद हम इनका लाभ ले पाते थे। मगर अब हमारे वैज्ञानिक इस हैसियत में हैं कि वे अपनी सफलता दूसरे देशों से साझा कर सकेंगे। लिहाजा, देश के लिए प्रसन्नता के साथ-साथ यह गर्व का दिन है।

इस मुकाम तक पहुंचना जितना कठिन था, आगे की राह भी उतनी ही चुनौतीपूर्ण है। पहली चुनौती इतनी बड़ी आबादी को एक साथ टीका लगाने की है। आमतौर पर यह देश साल भर में पांच से छह करोड़ जरूरतमंदों का टीकाकरण करता है। इनमें से आधे बच्चे होते हैं और शेष महिलाएं, विशेषकर गर्भवती माएं। यह पहला मौका है, जब वयस्कों को टीका दिया जाएगा। अगले चार महीने में लगभग 30 करोड़ लोगों को टीका लगाने की योजना है। इसका अर्थ है कि मौजूदा क्षमता से छह गुना अधिक टीके लगाए जाएंगे, जो एक बड़ा काम है। अच्छी बात यह है कि पोलियो और खसरा-रूबेला के टीकाकरण अभियान का अनुभव हमारे पास है। इससे हमें पता है कि एक बड़ी आबादी को एक साथ कैसे टीका लगाया जा सकता है? मसलन, पोलियो अभियान के तहत चार-पांच दिनों के भीतर देश के करीब 17 करोड़ बच्चों को इसकी खुराक दी जाती है, जबकि खसरा-रूबेला से बचाव के लिए 15 साल से कम उम्र के 42 करोड़ बच्चों को टीका दिया गया। जाहिर है, यह बहुमूल्य अनुभव है, जो कोरोना के खिलाफ हमारे टीकाकरण अभियान में खूब काम आएगा।

दूसरी चुनौती, टीकाकरण को सुनिश्चित करने, यानी प्राथमिकता समूह के हर इंसान को टीके लगाने की है। मानव शरीर कोरोना वायरस के खिलाफ तभी प्रतिरोधक क्षमता विकसित करेगा, जब वैक्सीन की दोनों खुराक उसे दी जाएगी। अपने यहां बच्चों के लिए टीकाकरण-कार्ड उपलब्ध है, लेकिन वयस्कों के लिए ऐसी कोई परंपरा नहीं रही है। इस चुनौती से पार पाने के लिए एक खास तरीका अपनाया गया है। टीकाकरण केंद्रों पर टीके की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए हमारे पास पहले से एक सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म है, जिससे केंद्रीय एजेंसियां सीधे निगरानी कर सकती हैं। साथ ही, 29,000 कोल्ड चेन भी हैं। इसमें नया बदलाव यह किया गया है कि जिसको टीका लगाया जाएगा, उसे भी इस प्लेटफॉर्म से जोड़ा गया है। यह को-वीन एप के माध्यम से हो रहा है। अभी भले ही हर व्यक्ति इस एप का इस्तेमाल नहीं कर सकता, लेकिन जल्द ही यह सबके लिए उपलब्ध हो जाएगा। इसके साथ-साथ देशव्यापी एईएफआई सर्विलांस तंत्र भी बनाया गया है, जो टीका लगे व्यक्ति में किसी तरह के नकारात्मक असर होने पर तुरंत सक्रिय हो जाएगा। ऐसा सिस्टम पहले से अपने यहां मौजूद है, लेकिन इस बार वयस्कों को टीका लगाया जाना है, इसलिए इस टीम में वयस्कों के विशेषज्ञ डॉक्टरों को भी शामिल किया गया है। यह टीम किसी भी प्रतिकूल असर या घटना पर तुरंत हरकत में आ जाएगी। 

तीसरी चुनौती है, कम वक्त में अधिक लोगों को टीका लगाना। इस मुश्किल को दूर करने के लिए न सिर्फ टीके की उपलब्धता बढ़ाई जाएगी, बल्कि आम लोगों तक इसे पहुंचाया भी जाएगा। उम्मीद है, अगले तीन-चार महीने में प्राथमिकता सूची के तमाम लोगों को टीका लगा दिया जाएगा। फिर, जिस तरह से कई कंपनियां टीका बनाने की दिशा में अग्रसर हैं, उनसे यह भरोसा है कि इस साल भारत में छह-सात वैक्सीन को अनुमति मिल सकती है। इसी कारण, 2021 की आखिरी छमाही में बाजार में भी वैक्सीन के आने की बात कही जा रही है। चौथी चुनौती, आम लोगों के मन में टीकों के प्रति पनप रही शंकाओं को दूर करने की है। सरकार ने एक कम्यूनिकेशन प्रोग्राम बनाया है, जिसके तहत आशा और आंगनबाड़ी सेविकाओं व सार्वजनिक सूचना के माध्यमों द्वारा लोगों के संदेह दूर किए जा रहे हैं। यह समझना होगा कि किसी भी टीके को कई आयाम पर परखने के बाद इस्तेमाल की अनुमति मिलती है, जिनमें तीन महत्वपूर्ण हैं। पहला, टीका सुरक्षित है अथवा नहीं? दूसरा, यह शरीर में कितनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता है? और तीसरा, एक बड़ी आबादी पर यह कितना प्रभावी है? 

कोविशील्ड और कोवैक्सीन को भी इन सवालों से गुजरना पड़ा है। आंकडे़ बताते हैं कि दोनों टीके मानव शरीर के लिए सुरक्षित हैं, और ये दोनों पर्याप्त मात्रा में प्रतिरोधक-क्षमता विकसित करते हैं। बस एक अंतर यह है कि कोविशील्ड की प्रभावशीलता हमें पता है, जबकि कोवैक्सीन की उतनी नहीं। इसका पता भी अगले दो महीनों में चल जाएगा। इसी कारण टीकाकरण-केंद्रों पर यह सहमति पत्र का विकल्प दिया गया है कि अगर कोई कोवैक्सीन नहीं लगवाना चाहता, तो उसे कतई बाध्य नहीं किया जाएगा। टीका को ऐच्छिक बनाया गया है, अनिवार्य नहीं। किस केंद्र पर कौन-सा टीका उपलब्ध है, इसकी जानकारी पहले से लोगों को दे दी जाएगी। पहली खुराक के 28 दिन के बाद टीके की दूसरी खुराक लगाई जाएगी और उसके दो हफ्ते के बाद शरीर कोरोना वायरस के खिलाफ तैयार हो जाएगा। ये टीके कोरोना के तमाम स्ट्रेन पर कारगर भी माने गए हैं। कुल मिलाकर, आज हम एक इतिहास रचने जा रहे हैं। देश ने इस टीकाकरण अभियान की अभूतपूर्व तैयारी की है। इससे पहले शायद ही किसी अभियान में ड्राई-रन के रूप में जिला स्तर तक तीन-चार बार पूर्वाभ्यास किया गया हो। इसकी वजह भी है। पहले चरण के टीकाकरण अभियान की सफलता बहुत मायने रखती है। खासतौर से, निम्न और मध्यम आय वाले देशों की नजर हम पर है। विभिन्न स्रोतों से मिल रही सूचनाओं की मानें, तो अभी 65-70 देश हमसे वैक्सीन मांग रहे हैं। विकसित देशों के लिए भी हम उम्मीद हैं, क्योंकि इतने बडे़ पैमाने पर किसी राष्ट्र ने टीकाकरण अभियान नहीं चलाया है। जाहिर है, भारत अगुवाई वाला देश बन गया है, और टीकाकरण अभियान की सफलता से उसकी हैसियत में खासा इजाफा होगा। विज्ञान और मजबूत इच्छाशक्ति से हमें यह रुतबा मिलने जा रहा है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

सौजन्य - हिन्दुस्तान।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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