हादसा या हत्या (जनसत्ता)

गौरतलब है कि मुरादनगर के श्मशान घाट पर एक बुजुर्ग का अंतिम संस्कार संपन्न कराने जो लोग आए थे, वे बारिश की वजह से वहीं बनी एक इमारत मेंं खड़े हो गए थे। कुछ ही देर में अचानक ही ऊपर की छत ढह गई, उसमें दब कर कम से कम चौबीस लोग मारे गए और सत्रह लोग बुरी तरह घायल हो गए। यानी एक परिवार और उनके सगे-संबंधी और पड़ोसी अपने घर के बुजुर्ग के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पहुंचे थे, लेकिन वहां उनमें से दो दर्जन लोगों की जान चली गई। जो छत ढह गई, उसके बने हुए ज्यादा वक्त नहीं हुए थे।

इसके निर्माण का काम जिन्हें सौंपा गया था, उन पर तीखे सवाल उठने के बाद अब कुछ लोगों की गिरफ्तारी की खबर है। लेकिन उसके निर्माण में लगे वे कौन लोग हैं और उन्होंने किन वजहों से इस तरह का निर्माण कराया जिसके चलते इतने लोगों की जान चली गई!

कहने को यह कहा जाएगा कि जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं, उनकी मंशा यह नहीं थी। लेकिन अगर उनके काम का हासिल यह हुआ कि कई परिवारों के घर उजड़ गए तो उसे किस तरह देखा जाएगा! सवाल है कि क्या किसी के भीतर पैसे की भूख इतनी ज्यादा हो सकती है कि उसे इस बात की फिक्र तक न हो कि उसके लालच और भ्रष्टाचार वजह से कितने लोगों की जान जा सकती है! यह घटना इस बात का सबूत है कि सरकारी भवनों या इस तरह के किसी भी निर्माण का ठेका देने से लेकर समूची प्रक्रिया किस स्तर के भ्रष्टाचार का शिकार है।

मुरादनगर श्मशान में हुए हादसे के बाद ठेकेदार और कुछ इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई हुई है, लेकिन क्या इससे समस्या का हल हो जाएगा? कोई ठेकेदार किसी काम का ठेका किन रास्तों से हासिल करता है और निर्माण कार्यों में घटिया सामग्री का इस्तेमाल करके कैसे पैसे बचाता है, इसके बारे में बहुत कुछ गोपनीय नहीं रह गया है। तो क्या निचले स्तर पर कुछ लोगों को जिम्मेदार ठहराने के बजाय कार्रवाई का सिरा उन लोगों तक भी पहुंचेगा, जो इस तरह के भ्रष्टाचार का पोषण करते हैं और संरक्षण देते हैं?

निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार और लापरवाही की वजह से सामने आई यह त्रासदी इस तरह कोई अकेली घटना नहीं है। इस वजह से देश भर में बड़े-बड़े हादसे और उनमें लोगों के मारे जाने के मामले अक्सर सुर्खियों में आते हैं। ऐसे हर वाकये के बाद सरकार और प्रशासन की ओर से दुख जताने, हताहतों या उनके परिजनों को मुआवजा देने और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बातें करने की औपचारिकता पूरी कर ली जाती है।

लेकिन क्या कभी ऐसी घटना का उदाहरण सामने आया है जिसमें हुई कार्रवाई नजीर बनी और उसने बाकी निर्माण कार्यों में लगे लोगों को डराया हो और उन्होंने भ्रष्टाचार से बचना जरूरी समझा हो? ऐसा लगता है कि अगर किसी वजह से ऐसे हादसे सुर्खियों में आ जाते हैं और उन पर सवाल उठते हैं तब सरकार तात्कालिक तौर पर सक्रिय दिखने की कोशिश करती है और लोगों का गुस्सा ठंडा होने पर पहले की तरह सब कुछ चलते रहने के लिए छोड़ दिया जाता है। यह बेवजह नहीं है कि हर कुछ समय बाद दिखने में हादसा लगने वाले ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, जिन्हें दरअसल हत्या के मामलों की तरह देखा जाना चाहिए।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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