नया जज्बा, नई उम्मीद ( नवभारत टाइम्स)

जाहिर है, इस महामारी से तुरत-फुरत छुटकारा नहीं मिलने वाला, लेकिन इसका जो आतंक सबके दिलों में बैठ गया है, उससे मुक्ति मिल जाए तो यह भी कुछ कम बड़ी बात नहीं होगी। खौफ का यह साया हटने के बाद ही स्पष्ट होगा कि जो दूसरी चुनौतियां हमारा इंतजार कर रही हैं वे दरअसल कितनी गंभीर हैं।

साल 2020 जाते-जाते जो समस्याएं 2021 के हाथों में थमाता गया है, उनमें दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण उलझनें सुलझने की ओर जाती दिख रही हैं। पहला है किसान आंदोलन। साल खत्म होने के दो दिन पहले किसान नेतृत्व और सरकार के बीच बातचीत में कुछ सहमतियां हासिल कर ली गईं। उम्मीद है कि आगामी चार जनवरी को होने वाली मुलाकात में दोनों पक्ष ठोस नतीजे पर पहुंचेंगे और करीब डेढ़ महीने से दिल्ली के आसपास सड़कों पर बैठे किसान संतुष्ट होकर अपने खेतों की ओर लौट जाएंगे। दूसरी समस्या है कोरोना महामारी, जिसमें प्रतिदिन होने वाले नए संक्रमणों की संख्या साल के खत्म होते-होते काफी कम हो गई थी। इसके अलावा वैक्सीन बन जाने की खबरों ने भी लोगों में उम्मीद भरी है। लेकिन ये उम्मीदें पूरी करने के लिए नए साल को कुछ वक्त देना होगा। अभी तो टीके के असर और इसके साइड इफेक्ट्स वगैरह को लेकर भी स्थिति पूरी तरह साफ नहीं हुई है। वायरस का रूपांतरण एक अलग ही मसला है।

जाहिर है, इस महामारी से तुरत-फुरत छुटकारा नहीं मिलने वाला, लेकिन इसका जो आतंक सबके दिलों में बैठ गया है, उससे मुक्ति मिल जाए तो यह भी कुछ कम बड़ी बात नहीं होगी। खौफ का यह साया हटने के बाद ही स्पष्ट होगा कि जो दूसरी चुनौतियां हमारा इंतजार कर रही हैं वे दरअसल कितनी गंभीर हैं। उदाहरण के लिए, जो लोग गांव चले जाने के कारण या फैक्ट्रियां-कोराबार बंद होने के कारण अभी खाली बैठे हैं, उनमें से कितने सचमुच बेरोजगार हो चुके हैं, यह तब पता चलेगा जब उनके कार्यस्थलों में दोबारा काम शुरू हो जाएगा और उनमें जितनों को खपना है वे खप जाएंगे। बाकी बचे लोगों के लिए कामकाज का इंतजाम करने के बारे में तभी सोचा जा सकेगा। यह नए साल की सबसे बड़ी चुनौती होगी क्योंकि लोगों का काम-धंधा शुरू होने से ही अर्थव्यवस्था में मांग पैदा होगी, जिससे विकास की बंद पड़ी गाड़ी को कुछ गति मिल पाएगी। साल 2020 अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद के शांतिपूर्ण हल के लिए भी याद किया जाएगा।

इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो 2019 के आखिर में आ गया था, लेकिन उस फैसले के मुताबिक मंदिर और मस्जिद के निर्माण की प्रक्रिया 2020 में ही आगे बढ़ी। बहरहाल, मंदिर के लिए झंडा लेकर चंदा वसूली करने और उस क्रम में अशांति भड़कने की जो खबरें मध्य प्रदेश से पिछले दिनों आईं, वे परेशान करने वाली हैं। उनसे यह आशंका पनपती है कि क्या यह विवाद समाज में अशांति पैदा करने का जरिया आगे भी बना रहेगा? बेहतर होगा कि इस लंबे विवाद की सुखद परिणति के बाद इसे नए-नए बवाल काटने का सबब न बनाया जाए। बहरहाल, चिंता और सोच-विचार के और भी कई मुद्दे हैं, लेकिन नए साल के लिए सबसे बड़ी कसौटी यही होगी कि वह 2020 से मिली विरासत में ही उलझा रह जाता है या नई उपलब्धियों के बल पर अपनी स्वतंत्र पहचान कायम करता है।

सौजन्य -  नवभारत टाइम्स।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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