UN: बड़ी पहल का मौका ( नवभारत टाइम्स)

भारत को इस बार 193 सदस्यीय महासभा में 184 वोट मिले थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत की सुरक्षा परिषद सदस्यता से दुनिया की कितनी उम्मीदें जुड़ी हैं। यह दौर है भी ऐसा जिसमें कोरोना महामारी और अर्थव्यवस्था की तबाही ने पूरी दुनिया को बेहाल कर रखा है।


साल 2021 की शुरुआत इस मायने में भी अहम है कि इसी 1 जनवरी से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में भारत का दो साल का कार्यकाल शुरू हो गया है। हालांकि यह इस तरह का कोई पहला मौका नहीं है। भारत इससे पहले भी सात बार सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना जा चुका है। आजादी के ठीक बाद पचास के दशक से ही इसकी शुरुआत हो गई थी। पहली बार 1950-51 में दो वर्षीय कार्यकाल पूरा करने के बाद से प्राय: हर दशक में भारत को सुरक्षा परिषद की सदस्यता मिलती रही है। सत्तर के दशक में तो दो बार (72-73 और फिर 77-78) यह मौका आया। जाहिर है, सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता अपने आप में कोई निर्णायक बात नहीं है।

खास बात उन परिस्थितियों में है जिनमें भारत को इस महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संस्था के जरिये अपनी भूमिका निभाने का यह मौका मिल रहा है। ध्यान रहे, सुरक्षा परिषद की सदस्यता में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का भी ध्यान रखा जाता है, लेकिन उसके लिए बाकायदा चुनाव होता है और किसी भी देश के चुने जाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में दो तिहाई बहुमत जरूरी होता है। भारत को इस बार 193 सदस्यीय महासभा में 184 वोट मिले थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत की सुरक्षा परिषद सदस्यता से दुनिया की कितनी उम्मीदें जुड़ी हैं। यह दौर है भी ऐसा जिसमें कोरोना महामारी और अर्थव्यवस्था की तबाही ने पूरी दुनिया को बेहाल कर रखा है। इसके अलावा आतंकवाद जैसी पुरानी समस्या तो संयुक्त राष्ट्र का सिरदर्द बनी ही हुई है, हाल के दिनों में बढ़ती राष्ट्रवादी आक्रामकता भी अंतरराष्ट्रीयता की भावना के लिए खासी नुकसानदेह साबित हो रही है। अमेरिका समेत विभिन्न देशों के संकीर्ण रवैये से संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था के लिए गुंजाइश लगातार कम हुई है। ऐसे में एक परिपक्व लोकतंत्र के नाते भारत सुरक्षा परिषद में अपनी सकारात्मक भूमिका के जरिए बहुपक्षीयता को बढ़ावा देते हुए संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता नए सिरे से स्थापित करने में मददगार हो सकता है।


भारत सुरक्षा परिषद का ऐसा एकमात्र सदस्य होगा जो इस समय खुद दो-दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर फौजों के जमावड़े से घिरा है। यह जहां उसकी स्थिति की जटिलता को बढ़ाता है, वहीं विभिन्न अंतरराष्ट्रीय विवादों को शांति और सामंजस्यपूर्ण बातचीत से सुलझाने की उसकी कोशिशों को ज्यादा जेनुइन भी बनाता है। ध्यान रहे, भारत इधर काफी समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का विस्तार करने की मांग के साथ उसके लिए अपनी दावेदारी जताता रहा है। कई अन्य देश उसका समर्थन भी करते रहे हैं। दो वर्षों का यह कार्यकाल इस लिहाज से अहम है कि इस दौरान अगर भारत सुरक्षा परिषद के जरिये प्रमुख प्रश्नों पर सार्थक पहलकदमी ले सका तो न केवल दुनिया को इस कठिन दौर से निकलने में आसानी होगी, बल्कि स्थायी सदस्यता का भारतीय दावा भी और पुख्ता होगा।


सौजन्य -  नवभारत टाइम्स।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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