महेश व्यास
कच्चे माल की लागत बढऩे से परेशान टिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद विनिर्माता कंपनियां अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ाने की दिशा में बढ़ती नजर आ रही हैं। स्टील, तांबा एवं एल्युमीनियम की कीमतों में जुलाई 2020 से ही लगातार बढ़त का रुख रहा है। पिछले सात महीनों में अधिकांश धातुओं की कीमतें 20 से लेकर 35 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं। ऐसे में एयर कंडिशनर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और वाहन विनिर्माता अब कीमतें बढ़ाने के बारे में सोच रहे हैं।
अधिकांश उपभोक्ता उत्पादों की मांग भी कमजोर हुई है। ऐसे में कंपनियों को मौजूदा बाजार परिवेश मुश्किल दिख रहा है। क्योंकि वे अपना मार्जिन भी बनाए रखना चाहते हैं। जिंसों के भाव गिरने से सितंबर एवं दिसंबर की तिमाहियों में इन कंपनियों के मार्जिन बढ़े थे। लेकिन मौजूदा समय में अधिकांश जिंसों के भाव साल-भर पहले के अपने पुराने स्तर पर पहुंच चुके हैं। लिहाजा जिंसों के भाव चढऩे से टिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद निर्माता कंपनियों का परेशान होना पूरी तरह ठीक भी नहीं है। लेकिन कीमतें तय करने का ताल्लुक न्याय से नहीं ही होता है। बाजार में खप सकने वाली चीजों के बारे में उठने वाले सवाल का जवाब मांग पक्ष से ही आना चाहिए। उपभोक्ता मांग परिवारों की आय एवं उपभोक्ता धारणा में परिलक्षित होती है।
उपभोक्ता धारणा में करीब साल भर पहले जबरदस्त गिरावट आई थी और अब भी यह पूरी तरह उबर नहीं पाई है। रोजगार परिदृश्य सबसे तेजी से सुधरा है लेकिन ऐसा निम्न आय स्तरों पर ही हुआ है। आय के बावजूद धारणाओं में सुधार बड़े मार्जिन से पीछे रहा है। अक्टूबर 2020 में रोजगार साल भर पहले की तुलना में सिर्फ 1.9 फीसदी ही कम था लेकिन औसत पारिवारिक आय 12 फीसदी तक गिर चुकी थी। आय में इस बड़ी गिरावट का प्रतिकूल प्रभाव उपभोग व्यय में करीब 20 फीसदी की तीव्र गिरावट के रूप में परिलक्षित होता है। ऐसे में अचंभे की बात नहीं है कि उपभोक्ता धारणा और भी बिगड़ चुकी थी। उपभोक्ता धारणा अक्टूबर 2020 में करीब 51 फीसदी तक गिर चुकी थी।
फरवरी 2021 तक उपभोक्ता धारणा में कुछ सुधार आया। फिर भी सालाना तुलना में इस धारणा में करीब 48 फीसदी की गिरावट थी। सच तो यह है कि उपभोक्ता धारणा में रिकवरी बहुत सुस्त रही है।
वाहन, एयर कंडिशनर, रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन एवं अन्य टिकाऊ उत्पादों की मांग ऐसी खरीदारियों के वक्त के बारे में एक अमूर्त अहसास पर टिकी होती है। उपभोक्ता धारणा सूचकांक के पांच बिंदुओं में से एक इस घटक को सीधे तौर पर संबोधित है।
प्रतिभागियों से पूछा गया कि क्या साल भर पहले की तुलना में यह समय टिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद खरीदने के लिए बेहतर है या खराब या फिर कोई अंतर नहीं है। करीब एक चौथाई प्रतिभागियों ने कहा कि लॉकडाउन से पहले का वक्त खरीद के लिए बढिय़ा था जबकि 55 फीसदी लोगों ने माना कि कोई फर्क नहीं है और बाकी 20 फीसदी लोगों का कहना था कि टिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद खरीदने के लिए वक्त खराब है।
वहीं लॉकडाउन के दौरान टिकाऊ उपभोक्ता सामान खरीदने का आशावाद गिर गया और पांच फीसदी से भी कम प्रतिभागियों ने उसे खरीद के लिए बेहतर वक्त माना। लेकिन अक्टूबर 2020 में बेहतर वक्त मानने वाले प्रतिभागियों की तादाद 7.4 फीसदी रही। फिर जनवरी 2021 तक यह अनुपात 6.5 फीसदी से लेकर 7 फीसदी के बीच रहा। फरवरी 2021 में 5 फीसदी से भी कम लोगों ने माना कि टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की खरीद के लिए बेहतर समय है। ऐसे में सवाल उठता है कि टिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियों का कीमतें बढ़ाने के बारे में सोचना बाजार के बारे में क्या उनकी सही समझ को दर्शाता है?
इसका जवाब है पूरी तरह नहीं। फरवरी 2021 में उन परिवारों के भीतर टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की खरीद का रुझान तेज देखा गया जिनकी सालाना औसत आय 10 लाख रुपये से अधिक है। टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की मांग अधिक आय वाले परिवारों के पक्ष में झुकी दिखाई देती है। लेकिन यह बाजार बहुत छोटा होगा।
टिकाऊ उपभोक्ता सामान खरीदने की ओर परिवारों का झुकाव उनकी आय से निर्धारित होता है। इसका नतीजा यह होता है कि घर की आय बढऩे के साथ ही टिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद खरीदने के लिए वक्त को बेहतर मानने वाले परिवारों का अनुपात अमूमन बढ़ जाता है। फरवरी 2021 में 1 लाख रुपये से कम आय वाले सिर्फ 1.6 फीसदी परिवारों ने ही इसे खरीदारी के लिए बेहतर वक्त माना। वहीं 1 लाख से 2 लाख रुपये की सालाना आय वाले परिवारों में यह अनुपात बढ़कर 3.7 फीसदी हो गया। जबकि 2 लाख से 10 लाख रुपये तक की सालाना आय वाले 7 फीसदी परिवारों ने इसे खरीद का बेहतर वक्त माना। उससे ऊपर के आय संवर्गों में यह अनुपात बहुत तेजी से बढ़ता गया।
साल भर में 10 लाख रुपये से अधिक आय वाले 12 फीसदी से अधिक परिवारों ने फरवरी 2020 की तुलना में फरवरी 2021 को टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की खरीद के लिए बेहतर माना। इससे पहले के चार महीनों में इस आय वर्ग के सिर्फ सात फीसदी परिवारों ने ही बेहतर माना था।
टिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियां सालाना 10 लाख रुपये से अधिक कमाने वाले परिवारों की धारणा में सुधार से लाभान्वित हो सकती हैं। यह संवर्ग पिछले दो महीनों में 5 लाख से 10 लाख रुपये की सालाना आय वाले परिवारों की उन्नत धारणा की जगह ले सकता है। इस तरह के करीब 15 फीसदी परिवार दिसंबर 2020 में टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की खरीद को लेकर आशान्वित थे जबकि जनवरी 2021 में यह अनुपात 11 फीसदी था। लेकिन फरवरी 2021 में सात फीसदी से भी कम परिवार आशावादी रह गए।
निम्न आय वाले परिवारों की खरीद धारणा में सुधार होना भी महत्त्वपूर्ण है। ऐसा नहीं होने पर कंपनियां भारतीय उपभोक्ता बाजार की ऊंची कतार में बैठे गिनती के लोगों पर ही दांव खेलती रहेंगी।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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