पुराने वाहनों की कबाड़ नीति: अब आपकी कार का क्या होगा? (अमर उजाला)

नारायण कृष्णमूर्ति  

कई बजट घोषणाएं ऐसी होती हैं, जिसकी तस्वीर कुछ समय बाद ही स्पष्ट होती है। ऐसी ही एक घोषणा, जो इन दिनों सुर्खियों में है, वह है पुराने वाहनों की कबाड़ नीति। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने लोकसभा में बहुप्रतीक्षित वाहन कबाड़ नीति (व्हीकल स्क्रैप पॉलिसी) की घोषणा कर दी है। वाहनों का अल्पकालिक और सीमित जीवन चक्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के कार मालिकों के लिए चिंता का विषय था, जहां 10 वर्ष से अधिक पुराने डीजल वाहनों और 15 वर्ष से अधिक पुराने पेट्रोल वाहनों को चलाने पर प्रतिबंध है। यह कानून 2015 में लागू हुआ, हालांकि, देश के अन्य हिस्सों में ऐसी कोई सीमा नहीं है, कई वाहन मालिक एनसीआर के बाहर अपने पुराने वाहनों को पंजीकृत कराते हैं या परेशानी से बचने के लिए उन्हें बेच देते हैं। 


पिछले कुछ वर्षों से ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पुराने वाहनों को कबाड़ बनाने की नीति (स्क्रैप पॉलिसी) लाने पर जोर डाल रही थी, ताकि वाहन मालिक तेजी से नए वाहन खरीदें। कोविड-19 से उपजी परिस्थितियों ने ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर भी दबाव बनाया है। वाहन निर्माता खरीदारों का एक नियमित प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए ऐसी नीति चाहते हैं, जो उनकी विनिर्माण क्षमता को सदा के लिए सुनिश्चित करे। इस स्क्रैप पॉलिसी से सरकार उम्मीद कर रही है कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र में नियमित आर्थिक विकास होगा, जो जीडीपी में सीधे लगभग आठ फीसदी का योगदान करता है। यदि इसमें इसके सहायक खंडों, ईंधन, अन्य लोगों के बीच किराये आदि के माध्यम से परोक्ष प्रभावों को जोड़ें, तो इसका योगदान महत्वपूर्ण है। इसके अलावा ऑटोमोबाइल सेक्टर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से उच्च रोजगार प्रदान करने में योगदान देता है। पुराने वाहनों को कबाड़ बनाने की नीति (स्क्रैप पॉलिसी) इस क्षेत्र के लिए चमत्कार करेगी। 


स्क्रैप पॉलिसी के पक्ष में सरकार और ऑटोमोबाइल निर्माताओं की तरफ से एक तर्क दिया जाता है कि तकनीकी सुधार वाहनों को समय के साथ सुरक्षित और कुशल बनाते हैं। इसके अलावा, पुराने वाहन पुराने इंजन मानकों पर चलते हैं, जो सरकार द्वारा निर्धारित नए उत्सर्जन मानकों की तुलना में प्रदूषणकारी होते हैं। यह भी कहा जाता है कि स्क्रैप किए गए वाहन ऐसे कल-पुर्जे प्रदान करेंगे, जिनका उपयोग ऑटो इंडस्ट्री घटकों और पुर्जों के रिसाइक्लिंग को संभव बनाने के लिए कर सकते हैं। हालांकि इस तरह के इंटर-लिंकेज का कोई स्पष्ट संकेत नहीं है। भारतीय मध्यवर्ग के लिए घर खरीदने के बाद एक कार खरीदना सबसे  बड़ी आकांक्षा होती है। कार ऋण के आगमन के बाद उनमें से कई लोगों का यह सपना साकार हुआ है। मुझे वर्ष 2010 की एक फिल्म दो दूनी चार की याद आती है, जिसमें स्वर्गीय ऋषि कपूर एक शिक्षक के रूप में मुख्य भूमिका में थे, जिनकी आकांक्षा कार मालिक बनने की थी, यह पूरी फिल्म इसी कथानक के ईर्द-गिर्द घूमती है। अधिकांश भारतीय परिवार इसी तरह के हैं, वे एक ऐसी कार खरीदने की आकांक्षा रखते हैं, जो उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाती हो। वे सप्ताहांत पर परिवार की सैर के लिए कार का इस्तेमाल करते हैं और कम से कम काम पर जाने के लिए।


यह वर्ग सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों में काम करता हुआ पूरे भारत में पाया जा सकता है। जब कोई अपने वाहन के उपयोग  की गणना करे, तो बहुत संभव है कि उसे पता चले कि एक वर्ष में उसने 20,000 किलोमीटर के भीतर कई यात्राएं की हैं। सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायरॉनमेंट द्वारा देश के 14 बड़े शहरों में किए गए अध्ययन से यह रिपोर्ट सामने आई कि कारों द्वारा प्रति यात्रा में औसत आवागमन आठ किलोमीटर से कम होता है। अब आप पूरे भारत में इसी पद्धति को लागू करें, तो संभावना है कि औसत इस आंकड़े से बहुत कम होगा। पहली मारुति 800 कार का उदाहरण लें, जिसे 1983 में हरपाल सिंह को सौंपा गया था और डीआईए 6479 नंबर की पंजीकृत कार अगले 25 वर्षों तक पूरी तरह चालू स्थिति में थी, जिसे मारुति सुजुकी कंपनी ने 2008 में प्रदर्शित किया था। 


कार का जीवन लंबा था और हाल के वाहन मॉडल के साथ अपनी खास क्षमता के कारण यह कम से कम तीस वर्षों के लिए दीर्घायु होने का प्रतीक बन गया। इसके अलावा, बढ़ती ईंधन लागत की स्थिति में वाहन की दक्षता बढ़ाने के लिए कई वाहन मालिक सीएनजी पर चलाने के लिए अपनी कारों को परिवर्तित करके हाइब्रिड ईंधन मॉडल का उपयोग करने के लिए जाने जाते हैं। नई स्क्रैप पॉलिसी के अनुसार, व्यक्तिगत या निजी वाहनों का 20 साल में और वाणिज्यिक वाहनों का 15 साल में फिटनेस टेस्ट होगा। यदि कोई वाहन फिटनेस टेस्ट में नाकाम रहता है, तो उसे 'वाहन के जीवन का अंत' माना जाएगा। वाहन मालिकों को फिटनेस टेस्ट कराने और पंजीकरण को नवीनीकृत करने के बजाय पुराने वाहनों को स्क्रैप करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए पुराने वाहनों के पंजीकरण को नवीनीकृत कराने का शुल्क बढ़ाया जाएगा। ऐसी संभावना है कि कई लोगों ने 20 साल के जीवन काल को ध्यान में रखते हुए वाहन खरीदा हो। दस या 15 वर्षों के भीतर अनिवार्य रूप से अपनी कीमती कारों को कबाड़ बनाकर नई कार खरीदने के लिए विवश होना 50 वर्ष की उम्र में जबरन सेवानिवृत्त होने जैसा है, जो मानते हैं कि उनकी सेवानिवृत्ति में दस साल बाकी हैं।


हालांकि पुराने वाहनों को स्क्रैप करने का विकल्प चुनने वाले वाहन मालिकों के लिए चार से छह फीसदी तक वाहन का स्क्रैप मूल्य देने की बात कही गई है। निजी वाहन मालिकों को रोड टैक्स में भी 25 फीसदी की छूट दी जाएगी तथा स्क्रैपिंग प्रमाण पत्र दिखाने पर वाहन निर्माताओं को नए वाहन की खरीद पर पांच फीसदी की छूट देने की सलाह दी गई है, लेकिन यह कितना  व्यावहारिक होगा, यह देखने वाली बात होगी। इस स्क्रैपिंग पालिसी से यह ध्वनित होता है कि इसमें इस वास्तविकता पर विचार नहीं किया गया है कि अधिकांश निजी कार मालिक अपने वाहन का इस्तेमाल कैसे करते हैं। समाज के विभिन्न तबकों के लिए  इस नीति को प्रभावी और लागत अनुकूल तरीके से लागू करने से पहले सभी पहलुओं पर विचार करना ज्यादा बेहतर होगा।

सौजन्य - अमर उजाला।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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