मूल्यांकन की समस्या (बिजनेस स्टैंडर्ड)

बाजार नियामक ने बैंकों द्वारा जारी की जाने वाली अतिरिक्त टियर-1 प्रतिभूतियों (एटी 1 बॉन्ड) जैसे पर्पेचुअल या बेमियादी बॉन्ड को 100-वर्षीय बॉन्ड मानते हुए उनके मूल्यांकन के बारे में जो दिशानिर्देश दिए हैं उन्हें लेकर व्यक्त की जा रही चिंता की जड़ येस बैंक संकट और उस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की प्रतिक्रिया में निहित है। जब आरबीआई की वजह से बैंक को 8,400 करोड़ रुपये मूल्य के एटी 1 बॉन्ड बट्टेखाते में डालने पड़े तो निवेशकों को भारी नुकसान हुआ। ऐसे में ये बॉन्ड शेयरों से ज्यादा जोखिम वाले हो गए। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने इन जटिल प्रपत्रों के मूल्यांकन में गंभीर समस्या को उचित ही पहचाना है। उसके सुझाव इस प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने का काम करेंगे। पूरी गड़बड़ी का दोष रेटिंग एजेंसियों और म्युचुअल फंडों को दिया जाना चाहिए जिन्होंने इन बेमियादी बॉन्डों का मूल्यांकन पांच वर्षीय बॉन्ड के रूप में किया। यह गलत था क्योंकि इससे इन बॉन्ड को हैसियत से अधिक मूल्यांकन मिला। मूल्यांकन बॉन्ड की कॉल डेट पर आधारित था। यह वह तिथि है जिस पर जारीकर्ता बॉन्ड वापस लेने की पेशकश कर सकता है और निवेशकों को राशि चुका सकता। इन बॉन्ड को वैसा ही समझा गया जबकि यह सच नहीं था। बहरहाल चाहे जो भी हो माना जाता है कि इन बॉन्ड में पुट ऑप्शन (ऐसा विकल्प जो प्रतिभूति के स्वामी को उसे बेचने का अधिकार देता है) रहेगा। यह स्पष्ट नहीं है कि आखिर किस आधार पर रेटिंग एजेंसियों ने इन्हें पांच वर्षीय बॉन्ड माना।

येस बैंक और आईडीबीआई बैंक के अलावा भी कई सरकारी बैंकों ने एटी 1 बॉन्ड जारी किए हैं जो बेमियादीऔर असुरक्षित हैं और उन्हें भुगतान करके छुड़ाने का कोई बंधन नहीं है। यकीनन ऋणकर्ता उस स्थिति में भुगतान के लिए बाध्य नहीं है जबकि उसे एक तय सीमा से अधिक नुकसान हो रहा हो। उच्च जोखिम की क्षतिपूर्ति के लिए वे उच्च धनराशि चुकाते हैं जो उन डेट म्युचुअल फंड को आकर्षित लगती है जो उच्च प्रतिफल चाहते हैं। एटी 1 बॉन्ड में कॉल ऑप्शन निहित रहता है जिसका इस्तेमाल जारीकर्ता तय समय पर कर सकता है। ऐसे में मूल्यांकन और अधिक जटिल हो जाता है। कई सरकारी बैंकों के विलय को देखते हुए निवेशकों के मन में थोड़ी झिझक होगी कि आरबीआई इनमें से कुछ को बट्टे खाते में डाल सकता है।


करीब 84,500 करोड़ रुपये मूल्य के एटी 1 बॉन्ड बकाया हैं। इनमें से अधिकांश को सरकारी बैंकों ने जारी किया है। डेट म्युचुअल फंड के पास 35,000 करोड़ रुपये मूल्य के ऐसे बॉन्ड हैं। सेबी ने प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति पर 10 फीसदी की सीमा तय की है एटी 1 की होल्डिंग वाली 36 योजनाओं को इस सीमा के पालन के लिए नए सिरे से संतुलित करना होगा। परंतु नकदी की कमी है और बाजार मूल्य प्राप्त करना असंभव है। इसके अलावा कॉल ऑप्शन ने मूल्यांकन को जटिल बना दिया है। अपने मूल्यांकन में रेटिंग एजेंसियां और फंड मानते हैं कि एटी 1 बॉन्ड का अगले अवसर पर मोचन कर लिया जाएगा। आमतौर पर यह अवधि पांच वर्ष या 10 वर्ष होती है।


यह हकीकत से दूर है। कमजोर बैलेंस शीट वाले कई बैंक कभी इस विकल्प को नहीं अपना पाएंगे। पांच वर्ष अवधि वाले किसी बॉन्ड का शुद्ध वर्तमान मूल्य (एनपीवी) 100 वर्ष अवधि वाले बॉन्ड के एनपीवी से बहुत अधिक होता है। यानी विशुद्ध परिसंपत्ति मूल्य में भारी गिरावट आएगी जिससे हड़बड़ी पैदा हो सकती है और इन बॉन्ड का भविष्य कठिन और अनाकर्षक हो सकता है। इससे स्पष्ट होता है कि वित्त मंत्रालय ने सेबी से सर्कुलर वापस लेने का अनुरोध क्यों किया है। मूल्यांकन के नए तरीके चरणबद्ध तरीके से पेश किया जाना ही इस दुविधा से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका है। इसके पहले केंद्रीय बैंक, सेबी और वित्त मंत्रालय को मशविरा करना होगा।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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