रिश्तों की रणनीति (जनसत्ता)

अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड जे आॅस्टिन के भारत दौरे ने दोनों देशों के बीच लगातार मजबूत होते रिश्तों को रेखांकित किया है। आॅस्टिन का यह दौरा ऐसे वक्त में हुआ है जब वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य एक बड़ा बदलाव देख रहा है और महाशक्तियां नई घरेलू और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से रूबरू होती दिख रही हैं। ऐसे में बिना आपसी सहयोग के किसी की गाड़ी नहीं चल सकती। इसलिए भारत और अमेरिका को अब एक दूसरे का पूरक भी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए।

अमेरिका में बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद किसी रक्षा मंत्री का यह पहला भारत दौरा है। अमेरिकी रक्षा मंत्री की भारत यात्रा इस बात का भी संदेश है कि न सिर्फ एशिया प्रशांत क्षेत्र में बल्कि दुनिया में शांति, स्थायित्व और खुशहाली के लिए बाइडेन प्रशासन भारत को एक बड़े रणनीतिक साझेदार के रूप में स्वीकार कर चुका है। अमेरिका यह भी देख रहा है कि भारत उसके लिए एक बड़ा बाजार है, विशेषरूप से हथियार और सैन्य साजोसामान बेचने के लिए। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल मंं भारत और अमेरिका के बीच जो रक्षा समझौते हुए थे, उन्हें अब बाइडेन प्रशासन अमली जामा पहनाने में लगा है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि इस वक्त अमेरिका की सबसे बड़ी चिंता चीन है। चीन के साथ उसका व्यापार युद्ध अभी जारी है। ट्रंप के कार्यकाल में चीन और अमेरिका के रिश्ते जिस तरह से बिगड़े, वे अब बाइडेन प्रशासन के लिए चुनौती बने हुए हैं। हाल में अलास्का में हुई अमेरिका और चीन के राजनयिकों की वार्ता से भी अच्छे संकेत नहीं आए। चीन की विस्तारवादी नीतियों से अमेरिकी की नींद उड़ी हुई है। दक्षिण चीन सागर से लेकर एशिया प्रशांत क्षेत्र तक में चीन अपने सामरिक गढ़ों को मजबूत बना रहा है।

पिछले दिनों क्वाड समूह (अमेरिका, भारत, आॅस्ट्रेलिया और जापान) के शिखर सम्मेलन में भी अमेरिका का असली निशाना चीन पर ही था। इसलिए अब अमेरिका का सारा जोर चीन के बढ़ते कदमों को रोकने पर है और इसके लिए वह भारत को सबसे बड़े और मजबूत सहयोगी के रूप में चिह्नित कर चुका है। भारत भी लंबे समय से चीन के षड़यंत्रों का शिकार है। चीन न सिर्फ भारतीय सीमा क्षेत्रों में घुसपैठ कर नए विवादित क्षेत्र खड़े करने की रणनीति पर चल रहा है, बल्कि पाकिस्तान को भी भारत के खिलाफ उकसाने से बाज नहीं आ रहा। इसलिए एक दूसरे के साथ आना अब अमेरिका और भारत दोनों की जरूरत और मजबूरी है।

आॅस्टिन के दौरे की बड़ी उपलब्धि दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग के रूप में देखी जा रही है। अब अमेरिका न सिर्फ एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाएगा, बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान तक पर नजर रखने के लिए मध्य कमान को और ज्यादा सशक्त बनाएगा और यह काम भारत के सैन्य सहयोग से ही संभव होगा। सामरिक लिहाज से भारत की स्थिति महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील है।

भारत को केंद्र में रख कर अमेरिका धरती के एक तिहाई से ज्यादा हिस्से में अपनी सैन्य स्थिति मजबूत कर सकता है। पिछले साल अक्तूबर में दोनों देशों के बीच सैन्य डाटा साझा करने और भारत को क्रूज व बैलेस्टिक मिसाइलों की तकनीक देने को लेकर बनी सहमति वाला ह्यबेसिक एक्सचेंज एंड कोआॅपरेशन एग्रीमेंट आॅन जिओस्पेशियल कोआॅपरेशनह्ण (बीका) चौथा रक्षा समझौता हुआ था। हालांकि रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली खरीदने के भारत के फैसले से अमेरिका खुश नहीं है। पर इससे उसे परेशान क्यों होना चाहिए? बल्कि अमेरिका को चाहिए कि वह स्वार्थ की दोस्ती से ऊपर उठते हुए और भारत के हितों का खयाल रखते हुए पाकिस्तान के प्रति सख्त नीति अपनाए।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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