खतरे की सड़क (जनसत्ता)

सड़क सुरक्षा के मामले में एक बार फिर भारत को दुनिया के कुछ सबसे खस्ताहाल देशों में शुमार किया गया है। अंतरराष्ट्रीय चालक प्रशिक्षण एजेंसी जुतोबी के अध्ययन के मुताबिक खतरनाक सड़कों के मामले में भारत चौथे स्थान पर है। पहले स्थान पर दक्षिण अफ्रीका को पाया गया है। सड़कों की स्थिति, वाहन चलाने का सलीका और सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों आदि के आधार पर यह अध्ययन किया गया है।

यातायात नियमों का पालन सुनिश्चित कराने, अनुशासित और मर्यादित ढंग से वाहन चलाने की संस्कृति विकसित करने के उद्देश्य से यातायात नियमों को काफी कठोर बनाया गया। उनके उल्लंघन पर भारी जुर्माने और दंड का प्रावधान किया गया। महानगरों में सड़कों पर कैमरे से निगरानी की व्यवस्था की गई। मगर इन सबके बावजूद स्थिति यह है कि सड़कों पर मनमाने तरीके से वाहन चलाने की प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लग पाया है।

शराब या दूसरे तरह के नशे करके वाहन चलाना, गति सीमा का ध्यान न रखना, लाल बत्तियों का उल्लंघन करना जैसे लोग शान की बात समझते हैं। यही वजह है कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं में लोगों के मारे जाने की दर चिंताजनक है। जितने लोग कैंसर जैसी बिमारी से नहीं मरते, उससे अधिक सड़क हादसों की वजह से जान गंवा बैठते हैं।

इसके अलावा हमारे यहां सड़कों की दशा भी किसी से छिपी नहीं है। विचित्र है कि हर राजनीतिक दल और सरकार का जोर बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर होता है। उसमें सड़कों के विकास पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है। तेज रफ्तार से चलने लायक सड़कों का निर्माण न सिर्फ आम लोगों के सुचारु आवागमन के लिहाज से जरूरी माना जाता है, बल्कि औद्योगिक विकास में भी इससे मदद मिलती है।

इसलिए विकसित देशों की तरह हमारे यहां भी सड़कों को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने पर जोर दिया जाता रहा है। इसमें अनेक निजी और विदेशी कंपनियों को भी शामिल किया गया। उन्हें सड़कें बनाने, उनका रखरखाव करने और टोल के जरिए अपनी लागत वसूलने का अधिकार दिया गया। इससे देश में राष्ट्रीय मार्गों का तेजी से विकास भी हुआ। मगर स्थिति यह है कि राजमार्गों पर गड्ढों और पशुओं, पैदल चलने वालों की वजह से दुर्घटनाएं भी आए दिन होती रहती हैं। इसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय निजी कंपनियों को फटकार भी लगा चुका है कि जब वे टोल वसूलती हैं, तो उन्हें सड़कों पर गड्ढों को भरने और सड़कों को सुविधाजनक बनाने की अपनी जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए। मगर अदालतों की फटकार का शायद उन पर कोई असर नहीं हुआ।

सड़कों पर टूट-फूट की एक बड़ी वजह भारत जैसे देश में मौसम को माना जाता है। यहां तेज गरमी, खूब ठंड और बारिश के चलते सड़कों में टूट-फूट जल्दी होती है। मगर इसे कोई बड़ा कारण नहीं माना जाना चाहिए। हकीकत यह है कि बहुत सारी सड़कें वाहनों की प्रकृति और उन पर पड़ने वाले बोझ का ठीक-ठीक आकलन किए बिना बना दी जाती हैं, जिसके चलते वे दबाव पड़ते ही दरक जाती हैं। उनमें गड्ढे बनने शुरू हो जाते हैं।

फिर राजमार्गों के किनारे सुरक्षित बाड़ नहीं लगाई जाती, जिससे पशु सड़कों पर आ जाते हैं, बरसात में वाहन फिसल कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। उल्टी दिशा में चलने वाले वाहन भी दुर्घटनाओं का बायस बनते हैं। इसमें सबसे चिंताजनक बात नशे की हालत में और मनमाने तरीके से वाहन चलाने की वजह से होने वाली दुर्घटनाएं हैं। कड़े कानूनों के बावजूद अगर इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लग पा रही, तो इस पहलू पर नए सिरे से सोचने की जरूरत है।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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