रेल मंत्री पीयूष गोयल ने स्पष्ट किया है कि रेलवे का निजीकरण कभी नहीं होगा। यह सरकारी संपत्ति है‚ और इसे निजी हाथों में सौंपे जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। लोक सभा में वर्ष २०२१–२२ के लिए रेल मंत्रालय के नियंत्रणाधीन अनुदानों की मांगों पर चर्चा का जवाब देते हुए मंगलवार को रेल मंत्री ने यह आश्वासन दिया।
उन्होंने सरकार पर निजीकरण और कॉरपोरेटाइजेशन को बढ़ावा देने संबंधी आरोपों को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। कहा कि सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर काम करेंगे तभी हम देश का उज्ज्वल भविष्य बनाने में सफल हो सकेंगे। बेशक‚ रेल सेवा को बेहतर बनाने के लिए निजी निवेश को प्रोत्साहन देना भी जरूरी है। रेलवे को देश के विकास का इंजन माना जाता है।
यह विभाग देश में सबसे बड़़ा रोजगार प्रदाता है‚ लेकिन इसकी सेवाओं को बेहतर किए जाने की गुंजाइश हमेशा बनी रही है। इसलिए जरूरी है कि रेलवे में महkवाकांक्षी योजनाओं को कार्यान्वित किया जाए। रेलवे स्टेशन विश्वस्तरीय हों। इस क्रम में देश के पचास स्टेशनों का मॉड़ल डि़जाइन तैयार किया गया है। स्टेशनों के प्रतीक्षालय नयनाभिराम बनें और स्टेशनों पर लिफ्ट और एस्केलेटर जैसी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं तो यात्रियों के लिए सफर आनंदकारी अनुभव हो सकता है। रेलवे लाइनों के आसपास सौंदर्यीकरण किए जाने की बात भी जब–तब होती रही है। आने वाले समय में रेलवे को पूरी तरह रिन्यूएबल इनर्जी पर निर्भर कर दिया जाना है।
साथही‚ २०२३ तक रेलवे शत–प्रतिशत विद्युतीकृत कर दी जाएगी। सरकार ने २०३० तक एक महkवाकांक्षी योजना को क्रियान्वित करने का मंसूबा बांधा है। इस सबके लिए खासे धन की जरूरत होगी। सो‚ रेलवे में निजी क्षेत्र का सहयोग लेने से इनकार नहीं किया जाना चाहिए। कहना न होगा कि रेलवे का कायाकल्प करने के प्रयास में निजी क्षेत्र आगे बढ़øकर सहयोग करता है‚ उससे निवेश मिलता है‚ तो यकीनन देश हित में होगा। इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। मालवाहक गाडि़यां चलें और निजी क्षेत्र इसमें निवेश करना चाहता है‚ तो इसमें आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इस पूर्वाग्रह के चलते तो कतई नहीं कि निजी क्षेत्र सरकार के कल्याणकारी लIयों से इतर अधिक से अधिक लाभ–अर्जन के उद्देश्य से प्रेरित होता है। दरअसल‚ सरकारी संस्थानों में निजी पूंजी की भूमिका को स्वीकारने का माइंड़सेट बनने में अभी कुछ समय लगेगा। ॥
सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।
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