महेश व्यास
उपभोक्ता रुझान सूचकांक फरवरी 2021 में जनवरी के अपने स्तर से दो फीसदी चढ़ा। यह जनवरी में 1.7 फीसदी और दिसंबर 2019 में 2.7 फीसदी सुधरा था। उपभोक्ता रुझान में लगातार सुधार आ रहा है, मगर यह लॉकडाउन के स्तरों से अब भी बहुत दूर है।
इस सूचकांक का आधार 100 है, जो सितंबर-दिसंबर 2015 तिमाही पर आधारित है। यह सूचकांक फरवरी 2021 में 55.1 पर रहा। यह एक साल पहले के इसी महीने में 105.3 पर था, जो लॉकडाउन का असर शुरू होने से ठीक पहले का महीना था। इस तरह उपभोक्ता रुझान लॉकडाउन शुरू होने के पूरे एक साल बाद लॉकडाउन से पहले के अपने स्तर से आधा ही है। उपभोक्ता रुझान अहम हैं क्योंकि वे परिवार के आर्थिक फैसलों के अमूर्त पहलू को दर्शाते हैं। ये फैसले घर, कार, दोपहिया या रेफ्रिजरेटर जैसी गैर-आवश्यक चीजों को खरीदने के हैं। रुझान परिवारों के लंबी अवधि के निवेश फैसलों को भी प्रभावित करते हैं। आमदनी बढ़कर लॉकडाउन के दौरान आय के नुकसान की भरपाई कर सकती है या परिसंपत्तियों की कीमतें वाजिब स्तर को तेजी से पार कर सकती हैं। लेकिन यदि परिवार अपनी मौजूदा और भविष्य की आर्थिक सेहत को लेकर अच्छा महसूस नहीं करते हैं तो उनके ज्यादा धनी होने के बावजूद खर्च करने के आसार नहीं हैं। इसलिए उपभोक्ता रुझान मायने रखता है।
उपभोक्ता पिरामिड परिवार सर्वेक्षण से प्राप्त शुरुआती आंकड़े संकेत देते हैं कि हालांकि पारिवारिक आय आंशिक रूप से सुधरी है, लेकिन उपभोक्ता रुझान इसी अनुपात में नहीं सुधरा है। रुझान में सुधार आया है, लेकिन यह सुधार आय में सुधार की तुलना में काफी कम है।
वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में भारतीय परिवारों की औसत आय 2019-20 की पहली तिमाही से 33 फीसदी कम रहने का अनुमान है। हालांकि इसी तुलनात्मक आधार पर उपभोक्ता रुझान 59 फीसदी घटा है। साफ तौर पर परिवारों की अपनी आर्थिक सेहत की धारणा पर उससे कहीं अधिक चोट पड़ी है, जो उनकी आमदनी पर चोट पड़ी है।
यह तुलना पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि रुझान की गणना में सभी परिवारों को समान माना जाता है, लेकिन पारिवरिक आमदनी की गणना में सभी परिवार एकसमान नहीं हैं। समृद्ध परिवारों का औसत में बड़ा हिस्सा है क्योंकि उनकी आमदनी गरीब परिवारों की तुलना में अधिक है। इसलिए अंतर का पता इन दो गणनाओं में निहित भारांश के अंतर से ज्ञात किया जा सकता है। निस्संदेह इन भारांश को लेकर नमूना भारांश से भ्रमित नहीं होना चाहिए, जो काफी अलग हैं और दोनों गणनाओं में समान हैं। अनुमानों की ऐसी उलझन वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही की पहली तिमाही से तुलना को जटिल नहीं बनाती है।
दूसरी तिमाही में औसत पारिवारिक आय पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 14 फीसदी कम थी। यह पहली तिमाही में दर्ज 33 फीसदी गिरावट की तुलना में काफी कम हुई है। हालांकि आमदनी में काफी सुधार हुआ है, लेकिन रुझान में इस अनुपात में सुधार नहीं आया। उपभोक्ता रुझान अब भी पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 57 फीसदी नीचे है। यह 'सुधार' महज दो फीसदी था, जो 59 फीसदी की गिरावट से 57 फीसदी की गिरावट पर आ गया है।
इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि आय में बढ़ोतरी के साथ रुझान आनुपातिक रूप में नहीं बढ़ता है। जब तक रुझान में सुधार नहीं आता है, तब तक मांग आय में सुधार के अनुपात में नहीं बढ़ेगी। शायद यह वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में जारी आधिकारिक राष्ट्रीय खातों के आंकड़ों में निजी अंतिम उपभोग व्यय में 2.4 फीसदी गिरावट का कारण बताता है।
हमारे पास वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही के पारिवारिक आय के आंकड़े नहीं हैं। लेकिन हमारे पास उपभोक्ता रुझान के आंकड़े हैं। ये सुधार को दर्शाते हैं, लेकिन उसी कमजोर रफ्तार को, जो पहली और दूसरी तिमाही के बीच रही है। यह गिरावट एक साल पहले की तुलना में 51 फीसदी कम थी। रुझान में सुधार जनवरी और फरवरी, 2021 में भी जारी रहा। लेकिन फरवरी 2021 में भी रुझान फरवरी 2020 के मुकाबले 48 फीसदी नीचे था।
इस बात को याद करें कि फरवरी 2021 में उपभोक्ता रुझान सूचकांक जनवरी के मुकाबले दो फीसदी सुधरा। इस सुधार को बांटकर देखते हैं तो पता चलता है कि भारतीय उपभोक्ताओं ने अपने भविष्य को लेकर अपनी धारणा में मौजूदा आर्थिक स्थितियों के आकलन में सुधार से अधिक सुधार किया है।
उपभोक्ता उम्मीद सूचकांक 2.6 फीसदी चढ़ा, जबकि चालू आर्थिक स्थितियों का सूचकांक महज 0.9 फीसदी बढ़ा। भारतीयों ने लॉकडाउन के जरिये बेहतर भविष्य में भरोसा दिखाया है। उनके भविष्य में भरोसे पर उनके मौजूदा आर्थिक स्थितियों को लेकर आकलन की तुलना में कम असर पड़ा है। फरवरी 2021 में उन्होंने एक बार फिर भारतीय परिवारों की इस लगभग स्थायी खूबी को दिखा गया।
परिवारों ने फरवरी में अपने जवाबों में यह भी संकेत दिया कि त्योहारी सीजन समाप्त हो चुका है। केवल 4.9 फीसदी प्रत्युत्तरदाताओं ने कहा कि यह टिकाऊ उपभोक्ता सामान खरीदने के लिए एक साल पहले की तुलना में बेहतर समय है। जनवरी और दिसंबर में यह अनुपात अधिक 6.9 फीसदी था। अक्टूबर में यह 7.4 फीसदी था। अब यह जुलाई 2020 के बाद सबसे निचले स्तर पर है। आधे प्रत्युत्तरदाताओं का अब भी मानना है कि मौजूदा समय टिकाऊ उपभोक्ता सामान खरीदने के लिहाज से एक साल पहले की तुलना में खराब है। भारत में लॉकडाउन लगने से पहले करीब 30 फीसदी प्रत्युत्तरदाता कहा करते थे कि यह टिकाऊ उपभोक्ता सामान खरीदने के लिए अच्छा समय है। इसका निचला स्तर करीब 20 फीसदी वर्ष 2018 की शुरुआत में था। फरवरी 2021 में यह अनुपात घटकर पांच फीसदी पर आ गया। यह सुनिश्चित करने के लिए इस अनुपात का 20 से 30 फीसदी पर पहुंचना जरूरी है कि आर्थिक सुधार टिकाऊ है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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