देवाशिष बसु
गत 24 फरवरी को नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर होने वाला कारोबार तकनीकी दिक्कत का शिकार हो गया। सुबह 10.06 बजे एनएसई सूचकांक में दिक्कत आने लगी लेकिन एनएसई ने बाजार खुला रखा। इसके बाद सुबह 11.40 बजे एनएसई ने डेरिवेटिव बाजार बंद कर दिया और तीन मिनट बाद शेयर बाजार भी। इसकी कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई। इसके पश्चात एनएसई की पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगी कंपनी एनएसई क्लियरिंग लिमिटेड (एनसीएल)जो सभी कारोबारी गतिविधियों के क्रियान्वयन के लिए जवाबदेह है उसने तथा जोखिम प्रबंधन ने काम करना बंद कर दिया। अगले चार घंटे बाजार बंद रहे। एनएसई की तरफ से कोई जानकारी नहीं दी गई। ब्रोकरों और निवेशकों ने माना कि बाजार नहीं खुलेगा। अपराह्न करीब 2.30 बजे देश की सबसे बड़ी ब्रोकरेज कंपनी जीरोधा ने अपने ग्राहकों को संदेश दिया कि वह एनएसई में दिन के कारोबार को बीएसई पर स्थानांतरित कर रही है। चूंकि एनएसई की ओर से कोई और जानकारी नहीं थी इसलिए अपराह्न करीब 3.10 बजे जीरोधा तथा अन्य बड़े ब्रोकरों ने ग्राहकों का जोखिम कम करने का प्रयास किया।
अचानक अपराह्न 3.17 बजे जब उस दिन के सारे सौदे निपटाए जा चुके थे तब जीरोधा के मुताबिक एनएसई ने बताया कि अपराह्न 3.45 से शाम पांच बजे तक विस्तारित अवधि में कारोबार होगा। यदि एनएसई ने तीन बजे तक भी बता दिया होता कि एक्सचेंज दोबारा खुलेगा और काम के घंटे बढ़ाए जाएंगे तो शायद कई ब्रोकरों ने जोखिम कम करने का प्रयास नहीं किया होता। जीरोधा के मुताबिक ब्रोकरों को कोई अपडेट नहीं दिया गया और वे विकल्पहीन हो गए। इससे कई निवेशकों को नुकसान हुआ।
जुलाई 2017 के बाद यह 10वां मौका था जब एनएसई में ऐसी गंभीर तकनीकी खामी सामने आई। इस बार एनएसई ने अपनी दिक्कतों के लिए दो दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को जिम्मेदार ठहराया। एनएसई ने कहा कि उनके लिंकों में स्थिरता नहीं थी और इसका असर एनएसई क्लियरिंग के ऑनलाइन जोखिम प्रबंधन तंत्र पर पड़ा। एनएसई के कारोबार जहां एनसीएल द्वारा मंजूर किए जाते हैं वहीं बीएसई के कारोबारियों का निपटान इंडियन क्लियरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा किया जाता है। इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ा मुद्दा यह था कि इन दोनों क्लियरिंग हाउस के बीच अंतरसक्रियता नहीं थी जबकि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के अनुसार यह आवश्यक है। दो वर्ष से भी अधिक समय पहले 27 नवंबर, 2018 को सेबी ने इन दोनों के बीच अंतरसक्रियता की घोषणा की थी ताकि ब्रोकर एक ही क्लियरिंग हाउस से अपने सौदों का निपटान कर सकें, भले ही वे किसी भी स्टॉक एक्सचेंज पर कारोबार कर रहे हों। यदि सेबी ने यह सुनिश्चित किया होता तो 24 तारीख को हालात काबू में किए जा सकते थे। एनएसई के सभी कारोबारी आसानी से बीएसई पर चले जाते।
अजीब बात है कि सेबी ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया कि यह व्यवस्था सही ढंग से काम कर रही थी क्योंकि बीएसई का इक्विटी कारोबार बढ़कर 40,600 करोड़ रुपये तक पहुंच गया जबकि उससे पहले के 30 दिनों के दौरान उसका औसत दैनिक कारोबार करीब 5,200 करोड़ रुपये था। इस बात में केवल एक समस्या है कि 40,600 रुपये के इस आंकड़े में बॉश कंपनी के 29,000 करोड़ रुपये के वे सौदे भी शामिल हैं जो बाजार खुलने के सामान्य समय से करीब आधा घंटे पहले 8 बजकर 57 मिनट पर किए गए। उसे निकाल दिया जाए तो कारोबार बमुश्किल 11,000 करोड़ रुपये का बचता है यानी बीएसई के रोज के औसत कारोबार से बस दोगुना। यदि अंतरसक्रियता होती तो बीएसई का कारोबार कम से कम 8-10 गुना बढ़ता।
एनएसई ने स्वयं स्वीकार किया है कि कारोबार ठप हुआ क्योंकि एनसीएल का ऑनलाइन जोखिम प्रबंधन तंत्र काम नहीं कर रहा था। ऐसे में ब्रोकर और उनके निवेशक बीएसई पर कारोबार नहीं कर सकते थे और वे एनएसई की व्यवस्था के बंधक बन गए। एक सूत्र के मुताबिक एनएसई और एनसीएल के एक साथ ध्वस्त होने के कारण सेबी और वित्त मंत्रालय के तमाम नेक इरादे एक साथ नाकाम हो गए। बीएसईने सेबी से शिकायत करते हुए कहा कि एनसीएल ने गैर प्रतिस्पर्धी और अनैतिक तरीका अपनाते हुए अपना कामकाज रोका ताकि एनएसई का वर्चस्व और एकाधिकार बना रहे। परंतु सेबी, एनएसई के साथ रहा और उसने जोर दिया कि अंतरसक्रियता ने अपना काम किया (जबकि एनएसई ने स्वयं माना था कि एनसीएल का काम ठप हो गया था) ऐसे में संभव है बीएसई की शिकायत पर कोई सुनवाई न हो। सेबी की प्रेस विज्ञप्ति में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि कारोबार का यूं ठप होना दुनिया भर में चिंता का विषय है। बहरहाल, तकनीकी खामी के बाद कमजोर प्रबंधन और कारोबारियों के साथ खराब संवाद से उन्हें नुकसान हुआ। ये सारी बातें कई सवाल पैदा करती हैं।
पहला, एनएसई को 45 मिनट बाद आपदा सुधार साइट से दोबारा शुरुआत करनी चाहिए थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने इस विषय में कुछ नहीं बताया और सेबी को भी इससे कोई समस्या नहीं है। दूसरा, एनएसई ने शाम 3.18 बजे दोबारा कारोबार शुरू करने की घोषणा क्यों की? जबकि उस समय तक तमाम ब्रोकर अपना दिन का कारोबार बीएसई पर निपटा चुके थे? तीसरा, एनएसई ने स्वयं माना कि एनसीएल ठीक से काम नहीं कर रहा था और ब्रोकर एनसीएल की साइट इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में सेबी ने यह दावा कैसे किया कि अंतरसक्रियता काम कर रही थी? क्या इस मसले पर एनएसई और एनसीएल को पाकसाफ बताने के पहले सेबी की तकनीकी सलाहकार समिति को इस मसले की जांच नहीं करनी चाहिए थी?
सन 1992 में जब एनएसई की परिकल्पना की गई तब विचार था कि बिना नियम कायदे वाले बीएसई को मजबूत प्रतिस्पर्धा दी जाए। परंतु अब हालात उलट चुके हैं। बीते दो दशक में एनएसई का इस हद तक दबदबा कायम हुआ है कि वह लगातार गलतियां करके भी बचता रहा है। क्लाइंट-कोड परिवर्तन के जरिये कर वंचना की इजाजत (2011), मानव त्रुटि से बाजार में अचानक गिरावट का प्रबंधन (2012), उसी वर्ष शीर्ष पर नियुक्ति में अनियमितता, प्रतिस्पर्धा को कुचलने की कोशिश (2008-2013), सेबी के नियमों का उल्लंघन आदि इसके उदाहरण हैं। यह सब समझा जा सकता है क्योंकि एनएसई प्रबंधन को शक्तिशाली राजनेताओं का समर्थन हासिल था। यह रहस्यमय है कि एकाधिकार वाले एनएसई को संरक्षण कैसे मिलता है। 24 फरवरी की घटना भी यही दिखाती है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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