महामारी ने हमें एक बड़ा झटका दिया। इसने हमारी भूराजनीतिक व्यवस्था की कमियों को उजागर कर दिया तथा महामारी को लेकर वैश्विक नीतिगत प्रतिक्रिया में तालमेल की कमी और विसंगति देखने को मिली। यही कारण है कि लाखोंं लोग अनावश्यक रूप से संक्रमित हुए और मौत के शिकार हुए। बहरहाल, कोविड-19 को लेकर विज्ञान की प्रतिक्रिया अभीभूत करने वाली रही। जीनोम सीक्वेंसिंग और जीन संशोधन में हालिया प्रगति और आरएनए टीका निर्माण के कारण तेजी से नए टीके तैयार करने में मदद मिली है। हजारों वैज्ञानिकों और वैश्विक स्वास्थ्य समुदाय ने आपस में सहयोग करके डेटा तथा अन्य बातें साझा कीं। मानव जीनोम का सीक्वेंस 2003 में तैयार किया गया। इससे संबंधित परियोजना 1990 मेंं शुरू की गई थी। सार्स-सीओवी-2 का जीनोम तो महज चार दिन में तैयार किया गया था। अधिकांश टीकों के विकास में आमतौर पर शुरुआत के बाद 10 वर्ष का समय लगता है। इस मामले में रिकॉर्ड जेरी लिन मंप्स (गलगंड रोग जो वायरस से होता है) वैक्सीन वर्ष के भीतर बन गई थी। कोविड-19 के मामले में महामारी की घोषणा के छह माह के भीतर टीके के एक दर्जन दावेदार सामने आ गए। अब टीके की 35 करोड़ खुराक लोगों को लग चुकी हैं।
यह प्राथमिक रूप से जीवविज्ञान की बहुत तीव्र प्रगति के कारण संभव हुआ। टीके नैसर्गिक रक्षा प्रणाली तैयार करते हैं। सामान्य तौर पर यह कमजोर या मृत वायरस को शरीर मेंं डालकर किया जाता है। शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र बाहरी खतरे को पहचान लेता है और ऐंटीबॉडी तैयार करता है जो शरीर को जीवित वायरस से बचाती हैं। किसी वायरस को मारना या कमजोर करना एक लंबी और खतरनाक प्रक्रिया है। मेसेंजर आरएनए तरीके से टीका बनने का समय नाटकीय रूप से कम किया जा सकता है। प्रतिरक्षा तंत्र किसी वायरस के साथ जुड़े विशिष्ट प्रोटीन के आकार को पहचान लेता है और जब भी वे प्रोटीन नजर आते हैं तो ऐंटीबॉडी तैयार करने लगता है। मेसेंजर आरएनए (एमआरएनए) टीके विशिष्ट प्रोटीन को पहचान कर ही काम करते हैं जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को जन्म देते हैं। एमआरएन प्रणाली न केवल तेज है बल्कि इससे मरीज का सामना वास्तविक वायरस से भी नहीं होता।
एमआरएनए टीका बनाना केवल 21वीं सदी की जीन संशोधन और जीन सीक्वेंसिंग तकनीकों की बदौलत संभव हुआ। उदाहरण के लिए सीआरआईएसपीआर जीन संशोधन प्रणाली का विकास 2007 के बाद हुआ। टीकों के निर्माण के अलावा शोधकर्ताओं ने ज्ञात औषधियों के संभावित प्रभाव का भी अध्ययन किया। उन्होंने यह सबक भी लिया कि विशिष्ट लक्षणों से कैसे निपटा जाए और उन स्थितियों से कैसे निपटा जाए जिनमें शरीर अत्यधिक सक्रिय रक्षा प्रणाली अपनाकर स्वयं को ही नुकसान पहुंचाता है। इन सबकों के कारण मृत्यु दर में कमी आई है। कोविड-19 के बारे में इसकी शुरुआत समेत अनेक बातें ऐसी हैं जो हम नहीं जानते। अभी यह भी पता नहीं है कि टीकों से कितनी अवधि तक संरक्षण मिलेगा। नीतिगत मोर्चे पर बौद्धिक संपदा अधिकार को लेकर मौजूदा लड़ाई असमान पहुंच की वजह बन सकती है। यकीनन विभिन्न स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और विभिन्न राजनेताओं की प्रतिक्रिया अलग-अलग स्तर पर प्रभावी और निष्प्रभावी रही है।
एक सामान्य पुराने बंदर को रूपांतरित होकर चिंपांजी और मनुष्यों की एक अलग प्रजाति में बदलने में 80 लाख वर्ष लगे। वायरस एक सप्ताह में इतना ही बदल जाता है। संभव है कि कोविड-19 पूरी तरह नष्ट न हो और इसमें बदलाव जारी रहे। ऐसे में फ्लू की तरह कुछ-कुछ अंतराल पर नए टीके की जरूरत होगी। यह भी संभव है कि जल्दी ही कोई नया घातक वायरस उभर आए। बीते 15 माह के अनुभव के बाद वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय ऐसी चुनौतियों से निपटने को तैयार होगा। दुनिया भर के नीति निर्माताओं को अवश्य आत्मावलोकन करके इस संकट के सबको संस्थागत स्वरूप देना चाहिए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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