निवेदिता मुखर्जी
जिस समय विभिन्न योजनाओं के तहत भारतीय उत्पादों को वैश्विक बाजार में पहुंचाने का सिलसिला चलन में आया, उससे पहले ही कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने विभिन्न श्रेणियों के तहत उत्पादों को भारत से बाहर भेजना शुरू कर दिया था। उदाहरण के लिए वॉलमार्ट और आइकिया उस समय से भारतीय उत्पादों को वैश्विक बाजारों में पहुंचा रही हैं जब भारत में उनकी कोई खुदरा मौजूदगी नहीं थी। इन कंपनियों ने भारत से कच्चा माल लेने के मामले में किसी सरकार को प्रभावित करने का प्रयास नहीं किया होगा क्योंकि उनका भारत में कोई बड़ा कारोबार नहीं था।
वॉलमार्ट को भारत से उत्पाद लेते करीब दो दशक से अधिक वक्त बीत चुका है। हालांकि उसने 2007 में भारत में थोक कारोबार में प्रवेश किया। स्वीडन की फर्नीचर कंपनी आइकिया का भारत से जुड़ाव 35 वर्ष से अधिक पुराना है। उसने 2012 में भारतीय बाजारों में प्रवेश का निर्णय लिया और देश में अपना पहला स्टोर 2018 में खोला।
एमेजॉन ने भी 2015 में वैश्विक बिक्री के लिए भारत से माल खरीदना शुरू किया। यह सब आत्मनिर्भर भारत के नाम की धूम मचने के बहुत पहले की बात है। इससे दो वर्ष पहले ही इस अमेरिकी कंपनी ने भारत में ऑनलाइन कारोबार शुरू किया था और फ्लिपकार्ट के साथ उसकी सीधी प्रतिस्पर्धा शुरू हुई थी। अब फ्लिपकार्ट में वॉलमार्ट की बहुलांश हिस्सेदारी है।
इसके बावजूद उपरोक्त बहुराष्ट्रीय कंपनियों समेत अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियां हाल ही में सरकार के आह्वान पर देश में उत्पादन बढ़ाने और भारतीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने की पहल में शामिल हुईं।
आइकिया कहती रही है कि वह सन 2020 तक भारत से ली जाने वस्तुओं की तादाद दोगुनी कर इस कारोबार को करीब 60 करोड़ यूरो तक पहुंचाएगी। हालांकि इस विषय में कंपनी की ओर से नवीनतम आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। कंपनी ने सन 1980 के दशक में भारत से सामग्री लेना शुरू किया था। भारत में कंपनी के आपूर्तिकर्ता तमिलनाडु से पश्चिम बंगाल तक में हैं। अपने वैश्विक बाजारों के लिए कंपनी भारत में 50 आपूर्तिकर्ताओं और चार लाख लोगों के साथ काम करती है। कंपनी 1,200 स्थानीय कारीगरों के साथ अपने वैश्विक स्टोरों के लिए विशेष संग्रह तैयार करती है।
आइकिया का दावा है कि कंपनी भारत में जो सामग्री बेचती है उसका 20 से 25 प्रतिशत स्थानीय सामग्री से बनता है। हाल ही में खिलौनों को लेकर अपनी टिप्पणी के कारण चर्चा में रही आइकिया दुनिया के 100 अरब डॉलर के खिलौना बाजार भारत से अधिक से अधिक सामग्री लेना चाहती है।
भारत उन तीन देशों में शामिल है जहां से वॉलमार्ट कच्चा माल लेती है। चीन, वियतनाम और बांग्लादेश ऐसे कुछ अन्य देश हैं जहां से कंपनी सामान मंगाती है। फिलहाल वॉलमार्ट भारत से तीन अरब डॉलर का सामान लेती है और कंपनी साल दर साल दो अंकों में वृद्धि दर्ज कर रही है। आंकड़ों के मुताबिक भारत वैश्विक बाजारों में जो सामग्री भेजता है उनमें औषधीय उत्पादों की अच्छी खासी मात्रा है। अन्य महत्त्वपूर्ण श्रेणियों में वस्त्र, दस्तकारी आदि भी हैं। दिसंबर 2020 में जब आत्मनिर्भर भारत की बात चरम पर थी, वॉलमार्ट ने कहा कि वह 2027 से हर वर्ष भारत से 10 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुएं खरीदेगी।
जो लोग स्थानीय स्तर पर होने वाली खरीद पर नजर रखते हैं उनका कहना है कि वॉलमार्ट जैसे मामलों में भारत से होने वाली अप्रत्यक्ष खरीद को भी ध्यान रखना चाहिए। ज्यादातर मामलों में अप्रत्यक्ष खरीद के लिए तीसरा पक्ष उत्तरदायी होता है। उदाहरण के लिए खाद्य उत्पादों के मामले में जटिल नियामकीय मानक शामिल हैं। वैश्विक बाजारों के लिए भारत से होने वाली प्रत्यक्ष सोर्सिंग की बात करें तो फिलहाल वॉलमार्ट के लिए ही यह दो अरब डॉलर है। यदि 2027 तक यह बढ़कर 10 अरब डॉलर हो जाती है तो अप्रत्यक्ष खरीद भी इसी अनुपात में बढ़ेगी। इसके अलावा आने वाले वर्षों में यदि नियामकीय माहौल में सुधार होता है तो संभावना यह भी है कि कुछ अप्रत्यक्ष खरीद, प्रत्यक्ष खरीद में मिल जाए।
जहां तक एमेजॉन की बात है तो उसका वैश्विक बिक्री कार्यक्रम जो भारतीय एमएसएमई के लिए प्रवेश की बाधा कम करने और उन्हें ई-कॉमर्स के जरिये निर्यात बढ़ाने का अवसर देता है वह दरअसल एमेजॉन की अंतरराष्ट्रीय वेबसाइटों और बाजारों के जरिये दुनिया भर के ग्राहकों तक पहुंचने का अवसर देता है।
इस कार्यक्रम में भारत भर के 70,000 से अधिक निर्यातक शामिल हैं जो भारत में बने लाखों उत्पाद दुनिया के सामने पेश करते हैं। जुलाई 2020 तक इस माध्यम से होने वाला एमएमएई निर्यात 2 अरब डॉलर का स्तर पार कर गया। गत जनवरी में सरकार द्वारा आत्मनिर्भर परियोजना की जोरशोर से शुरुआत के बाद एमेजॉन के संस्थापक जेफ बेजोस ने घोषणा की थी कि कंपनी भारत में एक करोड़ एमएसएमई को डिजिटल में सक्षम बनाएगी ताकि 2025 तक उनका निर्यात बढ़कर 10 अरब डॉलर तक हो सके।
इस बीच उद्योग जगत प्रतीक्षा कर रहा है कि उसकी कुछ चुनौतियां दूर हों तो वह अपनी निर्यात प्रतिबद्धताओं को पूरा कर सके और सरकार के भारत में विनिर्माण बढ़ाने और निर्यात करने के मिशन को पूरा करने में योगदान कर सके। वॉलमार्ट को आम के निर्यात में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि उत्पादों का पृथक्करण करना पड़ता है। झींगे को विश्व बाजार में पहुंचाना भी उत्पाद मानकीकरण के कारण आसान नहीं है। एमेजॉन के कई वैश्विक बाजारों में रायगढ़ का नेचरवाइब बॉटनिकल्स जैविक उत्पादों की श्रेणी में भारत का तेजी से उभरता ब्रांड है। परंतु ऐसी कुछ सफलताओं के बावजूद आभूषण जैसी श्रेणी में प्रमाणन के चलते निर्यात बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा निर्यात करने की इच्छुक एमएसएमई के लिए नियमन अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने की आवश्यकता है। आइकिया जैसी कंपनी के लिए कच्चा माल, खासकर व्यापक विनिर्माण के लिए प्रमाणित लकड़ी जुटाना भी एक बड़ी चुनौती है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment