कोविड-19 वायरस के शुरुआती प्रसार को नियंत्रित करने के लिए एक वर्ष पहले जब भारत में देशव्यापी लॉकडाउन लगा था, तब देश के अधिकांश लोगों ने यही आशा की थी कि यह संकट कुछ सप्ताह या महीनों तक चलेगा। परंतु एक वर्ष बाद भी वायरस हमारे आसपास है। बल्कि कुछ राज्यों, खासकर महाराष्ट्र में तो नए संक्रमण के मामले नई ऊंचाई छू रहे हैं। इस बार संक्रमण की लहर से निपटना पिछले साल की तुलना में अधिक मुश्किल होगा। दिक्कत यह है कि महामारी ने लोगों को थका ही नहीं दिया है बल्कि अर्थव्यवस्था भी लॉकडाउन के बुरे असर से उबर नहीं सकी है। जाहिर है सरकारें दोबारा ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहतीं जिससे आर्थिक सुधार की प्रक्रिया ठप पड़ जाए।
आंकड़े सुधार को लेकर चिंता को और अधिक बढ़ाने वाले हैं। वृद्धि की बात की जाए तो इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में वृद्धि लॉकडाउन से प्रभावित पहली तिमाही की तुलना में बेहतर रही। तीसरी तिमाही में यानी अक्टूबर से दिसंबर के बीच तिमाही दर तिमाही सुधार हुआ लेकिन पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में यह सुधार बहुत नाम मात्र का था। यकीनन आने वाले महीनों में सालाना वृद्धि के आंकड़े सामने आएंगे और वे बेहतर ही होंगे लेकिन सरकार की चिंता होगी कि अर्थव्यवस्था अभी महामारी के पहले जैसी मजबूती नहीं हासिल कर सकी है।
यह भी स्पष्ट नहीं है कि महामारी के शुरुआती महीनों और लॉकडाउन ने कितना नुकसान किया है। दिल्ली सरकार ने 2020 के अंत में एक सर्वेक्षण किया था जिसके नतीजे हाल ही में सामने आए हैं। उनसे पता चलता है कि बेरोजगारी अब तक काफी अधिक है। सर्वेक्षण के मुताबिक लॉकडाउन लागू होने के छह महीने बाद यानी अक्टूबर-नवंबर 2020 में दिल्ली में बेरोजगारी दर करीब 28.5 फीसदी थी जबकि महामारी के पहले यह 11 फीसदी थी। ऐसा तब था जबकि अक्टूबर के पहले गतिविधियां सुधरनी शुरू हो गई थीं। रोजगार, आजीविका और आय को लेकर स्पष्ट और विश्वसनीय आंकड़ों के अभाव में ऐसे सर्वेक्षण ही नीति निर्माताओं को राह दिखा सकते हैं। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अगर वाकई लॉकडाउन से प्रभावित लोगों की तादाद इतनी अधिक थी तो दिसंबर के बाद के महीनों में अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के बाद कितने लोगों को रोजगार मिला होगा और अगर नहीं मिला तो उनकी मदद के लिए क्या किया जा सकता है। लॉकडाउन ने देश की नई कल्याणकारी व्यवस्था की पोल खोल दी। उसके एक वर्ष बाद अब भी सरकार के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे महामारी से सर्वाधिक प्रभावित लोगों को गिना जा सके और उनकी पहचान की जा सके।
अंत में अर्थव्यवस्था और महामारी दोनों के लिए एकमात्र औषधि है टीकाकरण के प्रयासों को तेज करना। सरकार को कोवैक्सीन टीके का उत्पादन बढ़ाना चाहिए। रूसी टीके स्पूतनिक की निर्माता ने सोमवार को कहा कि उसने भारत में 20 करोड़ खुराक तैयार करने के लिए विर्को समूह के साथ समझौता किया है। जॉनसन ऐंड जॉनसन के टीके का अमेरिका में पहले ही व्यापक इस्तेमाल हो रहा है। हाल ही में क्वाड समूह की बैठक में टीके का भारत में उत्पादन करने को लेकर चर्चा हुई। सरकार को नियामकों से कहना चाहिए कि वह टीकों की मंजूरी की प्रक्रिया तेज करे और दुनिया की अन्य सरकारों की तरह उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उद्योग जगत में अतिरिक्त क्षमता शेष न रहे। यदि जरूरत पड़े तो औषधि निर्माता कंपनियों और टीका उत्पादकों के बीच गठजोड़ भी कराया जाए। महामारी की शुरुआत के एक वर्ष बाद टीके की व्यापक उपलब्धता ही एकमात्र उपाय है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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