फर्क समझे सरकार ( नवभारत टाइम्स)

सोशल मीडिया को नियमित करने की बहुचर्चित और वास्तविक जरूरत पूरी करने के मकसद से केंद्र सरकार पिछले हफ्ते जो नए कानून लेकर आई है, वे हालात को बेहतर बनाने के बजाय और बिगाड़ने का काम करेंगे। सरकार के इस कदम के साथ सबसे बड़ी गड़बड़ यह है कि इसमें सोशल मीडिया, स्ट्रीमिंग एंटरटेनमेंट और डिजिटल न्यूज पोर्टल- तीनों को एक ही डंडे से हांकने की कोशिश की गईsoहै। यह सर्वविदित तथ्य है न्यूज कंटेंट के लिए पहले से ही बहुत से कानून हैं जिनका पालन न्यूज पोर्टलों को करना होता है। इसके अलावा यह भी सच है कि


न्यूज पोर्टल अखबारों और टीवी चैनलों की कसौटियों पर चलते हैं। किसी भी समाचार संस्थान में पत्रकारों और संपादकों की बहुस्तरीय व्यवस्था होती है और किसी समाचार को आम पाठकों या दर्शकों तक पहुंचने से पहले जांच-परख के इन अलग-अलग स्तरों से होकर गुजरना पड़ता है। यह सेल्फ रेग्युलेशन की एक ऐसी व्यवस्था है जिसका सोशल मीडिया में सर्वथा अभाव होता है। वहां तो आधी-अधूरी सूचनाएं ही नहीं विशुद्ध अफवाहें तक बिना किसी जांच-पड़ताल के लोगों के सामने परोस दी जाती हैं और उन सबके लिए किसी की कोई जिम्मेदारी भी नहीं होती। इन तमाम पहलुओं पर डिजिटल न्यूज के स्टेक होल्डरों से सलाह-मशविरा या विचार-विमर्श करने की जरूरत थी। मगर विचार-विमर्श किए बगैर सरकार ऐसे उपाय लेकर आई जो सोशल मीडिया को अनुशासित करने के लिए काफी नहीं हैं और मेनस्ट्रीम मीडिया की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।


एक ऐसे दौर में, जब पत्रकारों को पहले से ही बात-बेबात राजद्रोह जैसे मुकदमे झेलने पड़ रहे हैं, सरकारी निगरानी की एक और व्यवस्था नए तरह के दबाव लेकर आएगी। इस बात के प्रबल आसार हैं कि एक तरफ इस निगरानी तंत्र के जरिए सरकार की दखलंदाजी बढ़ेगी तो दूसरी तरफ ट्रोल भी चुनिंदा मीडिया समूहों के खिलाफ अपना अभियान तेज किए रहेंगे। बहरहाल, यह स्पष्ट होना चाहिए कि सोशल मीडिया पर विवेक का अंकुश लगाने के सरकार के इरादे में कुछ भी गलत नहीं है। फेक न्यूज फैलाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाना बेशक जरूरी है। याद रखने की बात यह है कि मुख्यधारा के मीडिया ने ही विश्वसनीय खबरों का सिलसिला जारी रखते हुए फेक न्यूज के अभियान को कमजोर किया है। ताजा कानूनों के तहत शिकायत निपटारे की प्रस्तावित त्रिस्तरीय व्यवस्था इसका काम करना और कठिन बना देगी। ऐसे में अब सबसे अच्छा उपाय यही है कि सरकार इस कदम को वापस ले ले। इसके बदले डेटा प्रोटेक्शन के लिए कानून बनाने की जो प्रक्रिया चल रही है उसका समुचित इस्तेमाल करे। उसी कानून में कुछ अतिरिक्त प्रावधान जोड़कर सोशल मीडिया के कंटेंट को नियमित करने का मकसद पूरा किया जा सकता है। बस वहां भी इतना ध्यान रखना जरूरी है कि न्यूज प्लैटफॉर्म को सोशल मीडिया के साथ न जोड़ दिया जाए।


सौजन्य - नवभारत टाइम्स।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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