संपत्ति क्षति वसूली ( दैनिक ट्रब्यून)



निस्संदेह, लोकतंत्र में अपनी आवाज सत्ताधीशों तक पहुंचाने में आंदोलनों की निर्णायक भूमिका होती है। जब सत्ताधीश जनसरोकारों के प्रति संवेदनशील व्यवहार नहीं करते तो क्षुब्ध नागरिक विरोध प्रदर्शन के विभिन्न माध्यमों से सरकारों व प्रशासन पर दबाव बनाते हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान चलाये गये निर्णायक आंदोलनों ने ही फिरंगियों को देश छोड़ने को बाध्य किया था। लेकिन यदि आंदोलन के नाम पर निजी व सरकारी संपत्ति को सुनियोजित तरीके से क्षति पहुंचायी जाती है तो इन्हें लोकतांत्रिक आंदोलन नहीं कहा जा सकता। नागरिकों व सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले आंदोलनों के नेतृत्व की जवाबदेही तय करनी जरूरी भी है। अन्यथा आये दिन होने वाले आंदोलनों से समाज व सरकार की संपत्ति को नुकसान का सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा। हाल के वर्षों में हरियाणा में एक धार्मिक गुरु के समर्थकों तथा जातीय अस्मिता के एक आंदोलन ने करोड़ों रुपये की निजी व सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था। शायद इसी के मद्देनजर हरियाणा सरकार ने बृहस्पतिवार को विधानसभा में संपत्ति क्षति वसूली विधेयक-2021 पारित कर दिया, जिसमें उपद्रवियों से भारी-भरकम जुर्माने व जेल की सजा का प्रावधान है। हालांकि, इस विधेयक को पारित करने में विपक्षी कांग्रेस के तीखे विरोध का सामना सरकार को करना पड़ा। विपक्ष की दलील है कि सरकार ये कानून किसान आंदोलन के चलते ला रही है। निस्संदेह राज्यपाल की मंजूरी के बाद यह कानून अस्तित्व में आ ही जायेगा। उल्लेखनीय है कि सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान हुए उपद्रव में सरकारी व निजी संपत्ति को हुई भारी क्षति को देखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सख्त रवैया दिखाया था। बाकायदा उपद्रवियों के पोस्टर सार्वजनिक स्थलों पर लगाये गये थे। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार संपत्ति क्षति की वसूली का कानून लेकर आई थी, जिसके अध्ययन के बाद खट्टर सरकार यह विधेयक लाई, जो उत्तर प्रदेश के कानून के मुकाबले ज्यादा सख्त होगा। यही वजह है कि विपक्षी दल इस विधेयक को लोकतांत्रिक आंदोलन के विरोध में उठाया गया कदम बताकर विरोध कर रहे हैं।


दरअसल, हरियाणा के संपत्ति क्षति वसूली विधेयक-2021 में कुछ सख्त प्रावधान शामिल किये गये हैं। अब आंदोलन करने वाले नेता यह दलील नहीं दे सकेंगे कि उनका आंदोलन तो शांतिपूर्ण था और बाहरी तत्वों ने हिंसा करके संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। नये विधेयक में इस बात का भी प्रावधान है कि आंदोलन के दौरान हुई हिंसा करने वालों को ही नहीं, आंदोलनकारियों का नेतृत्व करने वालों से भी नुकसान की भरपाई की जायेगी। इस बाबत सरकार एक ट्रिब्यूनल का भी गठन करेगी, जिसमें चीफ जस्टिस के परामर्श से किसी सेवानिवृत्त वरिष्ठ जज को ट्रिब्यूनल का चेयरमैन बनाया जायेगा। निस्संदेह इस कदम से मुआवजे के निर्धारण को न्यायसंगत व पारदर्शी बनाया जा सकेगा। ट्रिब्यूनल द्वारा संपत्ति को हुए नुकसान के बाबत मुआवजे के लिये आवेदन मांगे जाने पर 21 दिन के भीतर आवेदन करना होगा। ट्रिब्यूनल दस करोड़ तक के मुआवजे का निर्धारण कर सकेगा। इतना ही नहीं, जुर्माना न देने पर ब्याज समेत जुर्माना वसूला जायेगा तथा इसके लिये खाते सील होंगे और संपत्ति कुर्क की जा सकेगी। इतना ही नहीं, यदि आंदोलन के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने पर सुरक्षा बलों को बुलाया जाता है तो उसका खर्च भी आंदोलनकारियों से वसूला जायेगा। वहीं कुछ विपक्षी दलों का मानना है कि ऐसे कानून बनने से लोकतंत्र में प्रतिरोध की आवाज कुंद होगी। ऐसे में कैसे विपक्षी दल अपनी आवाज को बुलंद कर पायेंगे। यदि असामाजिक तत्व व उपद्रवी शांतिपूर्ण आंदोलन में आकर हिंसा करते हैं तो आंदोलन के आयोजकों से जुर्माना वसूलना अनुचित होगा। उनका मानना है कि लोकतांत्रिक आंदोलनों का दमन निरंकुश सत्ताएं न कर सकें, इसके लिये कानून बनाने से पहले व्यापक विचार-विमर्श की जरूरत थी।  इसके बावजूद आंदोलनों के नाम पर आये दिन होने वाली आगजनी व हिंसा पर लगाम लगाने के लिये सख्त कानूनों की अावश्यकता महसूस की ही जा रही थी। कोशिश होनी चाहिए कि ऐसे कानून के जरिये दोषी बचें नहीं और निर्दोष लोगों को कानून के दंड का शिकार न होना पड़े।

सौजन्य - दैनिक ट्रब्यून।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment