अब तो इस आंदोलन की निरर्थकता से आम किसान भी परिचित हो चुके हैं और इसीलिए वे धरना-प्रदर्शन में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। कुल मिलाकर कुछ फुरसती आंदोलनजीवी किस्म के लोग और किसानों की आड़ में अपनी राजनीति चमकाने वाले ही इस आंदोलन को जैसे-तैसे घसीट रहे हैं।
किसान संगठनों की ओर से भारत बंद का गैर जरूरी आयोजन यही बताता है कि किसान नेताओं ने न तो अपने नाकाम चक्का जाम आंदोलन से कोई सबक सीखा और न ही रेल रोको आंदोलन से। यह भी स्पष्ट है कि गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली में मचाए गए उत्पात से भी उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। यदि किसान नेता यह समझ रहे हैं कि भारत बंद के नाम पर लोगों को तंग करने से उनके दम तोड़ते आंदोलन में जान आ जाएगी तो यह उनकी खुशफहमी ही है।
अब तो इस आंदोलन की निरर्थकता से आम किसान भी परिचित हो चुके हैं और इसीलिए वे धरना-प्रदर्शन में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। कुल मिलाकर कुछ फुरसती, आंदोलनजीवी किस्म के लोग और किसानों की आड़ में अपनी राजनीति चमकाने वाले ही इस आंदोलन को जैसे-तैसे घसीट रहे हैं। अब तो वे अपनी राजनीतिक दुकान चलाए रखने के लिए चुनाव वाले राज्यों में रैलियां भी कर रहे हैं। भले ही कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने राजनीतिक रोटियां सेंकने के मकसद से संयुक्त किसान मोर्चे के भारत बंद को अपना समर्थन देने की घोषणा कर दी हो, लेकिन सच यही है कि वे भी यह समझ चुके हैं कि इस आंदोलन का कोई भविष्य नहीं। शायद इसीलिए व्यापारी संगठनों ने भारत बंद से किनारा करना बेहतर समझा।
किसान नेता चाहे जो दावा करें, सच यही है कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन ने सबसे अधिक अहित किसानों का ही किया है। यह बेमतलब का आंदोलन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसानों को बरगलाने-उकसाने में अवश्य समर्थ हुआ, लेकिन उसने इन राज्यों के किसानों के वक्त की बर्बादी ही की है।
तमाम किसान तो ऐसे रहे, जो कृषि कानून विरोधी आंदोलन के चलते अपने फल और सब्जियों की सही तरह बिक्री भी नहीं कर सके। विडंबना यह रही कि किसान नेता इसे किसानों के त्याग के तौर पर पेश करते रहे। नए कृषि कानूनों में ऐसा कुछ भी नहीं, जिसके आधार पर उन्हें किसान विरोधी कहा जा सके। ये कानून तो किसानों को उपज बिक्री के संबंध में एक और विकल्प देने वाले हैं।
यह हास्यास्पद है कि उपज बिक्री के मामले में विकल्पहीनता की पैरवी करने वाले खुद को किसानों का हितैषी बताने में लगे हुए हैं। किसानों को अपने ऐसे फर्जी हितैषियों से सावधान रहने की जरूरत है। किसानों की दशा तब सुधरेगी, जब वे आíथक रूप से सक्षम बनेंगे। नए कृषि कानूनों का यही उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति में बाधक बनने वाले किसान नेता आढ़तियों और बिचौलियों के तो शुभचिंतक हो सकते हैं, किसानों के नहीं।
सौजन्य - दैनिक जागरण।
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