राहत का फैसला (जनसत्ता)

कर्ज की किस्तों के स्थगन की अवधि बढ़ाने और इस अवधि का ब्याज माफ करने के मामले में सर्वोच्च अदालत का जो फैसला आया है, उसे न्यायोचित ही कहा जाना चाहिए। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए अदालत का यह फैसला सिर्फ सरकार और बैंकों को ही नहीं, कर्जदारों को भी राहत देने वाला है। अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि न तो कर्ज स्थगन की अवधि बढ़ाई जाएगी और न ही इस अवधि का ब्याज माफ किया जाएगा। लेकिन साथ ही अदालत ने कर्जदारों को भी बड़ी राहत देते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वह किसी भी ग्राहक से ब्याज पर ब्याज नहीं वसूल सकती, न ही पर ब्याज पर किसी तरह का जुर्माना लगाया जा सकता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना महामारी के दौर में पिछले एक साल में अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा है, उससे बैंकों का संकट तो गहराया ही है, ग्राहकों की मुश्किलें भी बढ़ी हैं। ऐसे में सरकार, बैंकों और कर्जदारों तीनों को राहत चाहिए। अदालत ने बैंकों से यह भी कहा कि जिन ग्राहकों से ब्याज पर ब्याज वसूला गया है, उसे अब किस्तों में समायोजित करना होगा। सर्वोच्च अदालत ने यही व्यवस्था पिछली बार भी दी थी, लेकिन तब अंतिम फैसला नहीं आया था और हर पक्ष मान कर चल रहा था कि अंतिम फैसले से उसे ज्यादा राहत मिल सकती है।

पिछले साल पूर्णबंदी के कारण औद्योगिक गतिविधियां ठप हो जाने से करोड़ों लोग और छोटे-बड़े उद्योग आर्थिक संकट में फंस गए। बाजार में पैसे का प्रवाह रुक गया। उद्योग भी कर्जों के सहारे ही चलते हैं। ऐसे में कर्ज की किस्तें चुका पाना सबके लिए भारी पड़ गया। इसे देखते हुए ही रिजर्व बैंक ने कर्जदारों को तीन महीने के लिए इस बात की छूट दी थी कि वे अगर कर्ज किस्तें चुका पाने में सक्षम नहीं हैं तो बाद में ये किस्ते दे दें, लेकिन इन पर ब्याज लगता रहेगा।

संकट और बढ़ता देख सरकार ने इस अवधि को बढ़ा कर 31 अगस्त 2020 तक कर दिया था। हालत सभी की खराब थी, इसलिए कर्जदार ब्याज से भी छूट चाह रहे थे। पर हालात को देखते हुए बैंकों के लिए यह भारी पड़ने लगा और उसने लोगों से ब्याज पर भी ब्याज वसूलना शुरू कर दिया। तब मामला अदालत पहुंचा और ब्याज माफी व कर्ज स्थगन की अवधि बढ़ाने की मांग की गई।


बैंक और बाजार एक दूसरे पर टिके हैं। कर्जदारों से मिलने वाले ब्याज से ही बैंक मुनाफा कमाते हैं, जमाकर्ताओं को उनकी जमा राशि पर ब्याज देते हैं और जरूरतमंदों को कर्ज देते हैं। अगर यह चक्र टूटता है तो यह संकट का संकेत होता है। इस मामले में यही समस्या थी। अगर सरकार कर्जदारों का ब्याज पूरी तरह से माफ कर देती तो बैंक भारी बोझ तले दब जाते।


इसीलिए सरकार और रिजर्व बैंक में अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अगर पूरी तरह से ब्याज माफ कर दिया गया तो बैंकिंग क्षेत्र छह लाख करोड़ के बोझ में दब जाएगा और ऐसे में वे सावधि जमाओं पर जमाकर्ताओं को कहां से ब्याज देंगे! बैंकों को उन जमाकर्ताओं का भी खयाल रखना है जिनकी आमद का जरिया सिर्फ सावधि जमाओं से मिलने वाला ब्याज ही है। जमाकर्ताओं को उनका पैसा समय पर देना बैंकों की कहीं ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी है। ऐसे में ब्याज माफी या अन्य रियायतें नए और गंभीर संकट को जन्म देने वाली ही साबित होतीं।

सौजन्य - जनसत्ता।
Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment