टी. एन. नाइनन
कल्पना कीजिए कि मुद्रा क्रिप्टो (यानी गोपनीय) हो गई है, उसके लिए खनन (किस चीज का) करना पड़ रहा है और ब्लॉक-चेन तकनीक (अधिक जानकारी आनी है) अपनानी पड़ रही है। यदि आप इनमें से किसी से भी अनभिज्ञ हैं या आपको यह पता नहीं है कि टेस्ला अरबों के बिटकॉइन क्यों खरीद रही है तो आप नए उभरते विश्व के साथ तालमेल कैसे बिठाएंगे? आप यह कैसे समझेंगे कि चीन ई-युआन के माध्यम से फंसे कर्ज का निपटान करने के बारे में कैसे सोच रहा है?
सन 1970 के दशक के आरंभ में एल्विन टॉफलर ने एक बेस्ट सेलर लिखी थी 'फ्यूचर शॉक'। इस किताब में उन्होंने बताया था कि कैसे लोग बहुत कम समय में बहुत अधिक बदलाव से तालमेल नहीं बिठा पाएंगे। टॉफलर ने कहा था, भविष्य का समय से पहले आगमन हो रहा है।
अगर आप अब तक उन ईमेल से जूझ रहे हैं जो आपसे अपने इस्तेमाल के सॉफ्टवेयर अद्यतन करने को कहती हैं तो आपको सोचना चाहिए कि स्वचालित कारों के सॉफ्टवेयर भी समय-समय पर रिमोट कंट्रोल के जरिये अद्यतन करने होंगे। युद्ध हैकरों की सेनाओं के माध्यम से लड़े जाएंगे (लड़े जा रहे हैं) जो आधुनिक अर्थव्यवस्था के इलेक्ट्रिक ग्रिड जैसे नेटवर्क में घुसपैठ करेंगे। यह सब आपको कितना भयभीत करता है?
कोई क्षेत्र ऐसा नहीं होगा जो बदलाव की इस लहर से अप्रभावित रहे। ऊर्जा के क्षेत्र में हम जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर जा रहे हैं। जरा सोचिए यह भू-राजनीति को किस हद तक प्रभावित करेगा। जिस तरह इंजन ने घोड़ा गाडिय़ों की जगह ले ली उसी तरह इंजन की जगह बैटरियां आ जाएंगी। विमानन क्षेत्र में एयर बस हाइड्रोजन ईंधन पर काम कर रही है जबकि बोइंग जैव-ईंधन को लक्ष्य बना सकती है। इस्पात उद्योग में भी उष्मा पैदा करने वाली प्रक्रिया के बजाय कोशिश यह की जा रही है कि उत्सर्जन को एकदम समाप्त किया जा सके। बैंकों को भी डिजिटल युग के लिए खुद को नए सिरे से तैयार करना होगा। नए जमाने के कारोबार यूनिकॉर्न स्टार्टअप (जिनका मूल्यांकन एक अरब डॉलर से अधिक हो) तथा अन्य उपायों से काफी धन अर्जित करेंगे। इस प्रक्रिया में मौजूदा संपदा का बड़ा हिस्सा समाप्त हो जाएगा। एग्रीगेटरों (खरीदार-विक्रेता को मंच मुहैया कराने वाले) को लाभ होगा जबकि उत्पादक नुकसान उठाएंगे।
कुछ वर्ष पहले अर्थशास्त्री रॉबर्ट गॉर्डन ने कहा भी था, आज की तकनीक 19वीं सदी की तकनीकों की तुलना में उत्पादकता के लिए कम उपयोगी हैं। 19वीं सदी में बिजली, एलिवेटर्स और पाइप से जलापूर्ति आदि उस सदी की तकनीक के उदाहरण हैं। यानी जहां टॉफलर को तीव्र गति और अप्रत्याशित प्रभाव वाली लहरें नजर आईं, वहीं गॉर्डन को उत्पादकता में कमी दिखाई दी। परंतु बड़े और उथलपुथल लाने वाले बदलावों के आकलन के लिए उत्पादकता सही पैमाना नहीं है। मौजूदा कारोबारों को नया रूप देने के लिए अरबों डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। जलवायु परिवर्तन के कारण कैलिफोर्निया के जंगलों में आग लग रही है और सिलिकन वैली के लोगों को टैक्सस का रुख करना पड़ रहा है। टॉफलर ने अपनी एक किताब में ज्ञान, संपदा और शक्ति पर ध्यान केंद्रित किया। आज ये तीनों एक ही हाथ में एकत्रित हो रहे हैं जिससे नए सवाल खड़े हो रहे हैं। विजेता को सर्वस्व प्रदान करने वाली प्रणाली श्रम आधारित अर्थव्यवस्था को कमजोर करेगी। केंद्रीकृत व्यवस्था की अपनी दिक्कतें हैं। यानी आधार नंबर न होने के चलते तीन करोड़ लोगों का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। इसी तरह डेटा के भारी इस्तेमाल के बीच निजता और स्वायत्तता की क्या बात की जाए?
इस उभरती दुनिया के लिए नए नियम जरूरी होंगे लेकिन इन्हें कौन लिखेगा? व्यक्तिगत डेटा का इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए और कैसे नहीं? उस बिचौलिया रहित मीडिया का क्या जिसने बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ समझौता किया और 'उत्तर सत्य' तथा नफरती जानकारियों से नए तरह की राजनीति को हवा दी? यदि आपका इंटरनेट बंद कर दिया जाए तो आप कितने बेबस होंगे? सरकार कई बार ऐसा करती है। सर्वोच्च न्यायालय ने इंटरनेट तक पहुंच को मौलिक अधिकार घोषित किया है। यह होना भी चाहिए लेकिन डिजिटलीकरण के स्तर पर अभी काफी बड़ी खाई है।
ऐसे में डिजिटलीकरण को लेकर जगी आशाओं की जगह अन्याय की चीख-पुकार ने ले ली है जिसे दूर करना होगा। एक सकारात्मक पहलू फिर भी है: तकनीक शक्ति छीन सकती है लेकिन वह सक्षम बनाती है। अब रोज कार्यालय जाना जरूरी नहीं। प्रति उपयोग भुगतान वाली अर्थव्यवस्था पनपेगी। यदि 2050 तक भी शून्य उत्सर्जन हकीकत में बदलता है तो यह उपलब्धि होगी और हम अतीत के नुकसान को कुछ हद तक कम कर सकते हैं। अच्छी हो या बुरी लेकिन यह एक अलग दुनिया होगी।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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