के. एस. तोमर
भगवान पशुपतिनाथ की भूमि होने के कारण नेपाल धार्मिक सद्भाव और मानव मन की शांति के लिए जाना जाता है, जो भारत और इस हिमालयी देश को युगों से एक सूत्र में बांधे हुए है, लेकिन खड्ग प्रसाद ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार के भारत विरोधी दृष्टिकोण ने इन संबंधों को खराब किया है। ओली ने आत्मघाती रास्ता अपनाया। अब वह सत्ता में बने रहने के लिए बेचैन हैं, जो कि सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल (सीपीएन) की मान्यता खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद संभव नहीं लग रहा है। एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में, नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों के विलय को अवैध करार दिया है, जो दुर्घटनावश ओली के लिए वरदान साबित हो सकता है, भले कुछ ही समय के लिए। हालांकि ओली और प्रचंड नए नाम के साथ नए सिरे से विलय के लिए चुनाव आयोग के पास जा सकते हैं, पर ऐसी संभावना पहले ही खारिज हो चुकी है, क्योंकि दोनों गुट अलग हो चुके हैं, जिसके कारण नेपाल में पूरी तरह से अनिश्चितता का माहौल पैदा हो गया है।
जब ओली और प्रचंड ने मिलकर चुनाव लड़ा था, तो ओली के गुट को 121 और प्रचंड के गुट को निचले सदन में 53 सीटें मिली थीं। शीर्ष अदालत ने ओली को सरकार बचाने के लिए विश्वासमत हासिल करने के लिए कहा है, हालांकि सरकार ने बहुमत खो दिया है, लेकिन यदि ओली जोड़-तोड़ करके विश्वास मत हासिल कर लेते हैं, तो वह बच जाएंगे। किसी भी परिस्थिति में प्रचंड गुट ओली को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करेगा, इसलिए दोनों गुटों को सर्वसम्मति से एक गैर विवादास्पद उम्मीदवार तैयार करना होगा, जो सरकार का नेतृत्व कर सके। ऐसे में चीन दोनों गुटों के नेताओं पर अपने बीच से एक नए नेता का चुनाव करने के लिए दबाव बना सकता है, जो सरकार का नेतृत्व कर सके। इसके अलावा एक वरिष्ठ नेता को चुनाव आयोग से पंजीकृत नए संगठन के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। एक समय लगा कि नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल एक स्वीकार्य उम्मीदवार हो सकते हैं, जो अभी प्रचंड का समर्थन कर रहे हैं, पर मूलतः वह ओली गुट के थे। पर एक तेज घटनाक्रम में ओली ने माधव नेपाल के समर्थकों को हटा दिया और स्टैंडिंग कमेटी में अपने वफादार 23 नेताओं को शामिल कर दिया।
फिलहाल ओली नेपाली कांग्रेस से वार्ता कर रहे हैं, जिसके 23 सांसद हैं। अगर वे ओली का समर्थन करते हैं, तो सरकार बच जाएगी, क्योंकि 135 के बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए ओली को मात्र 15 सांसदों के समर्थन की जरूरत है। इस तरह से नेपाली कांग्रेस या राष्ट्रीय जनता पार्टी (जिसके दो निलंबित सांसदों को छोड़कर 32 सांसद हैं) के समर्थन से ओली 275 सदस्यीय सदन में बहुमत पा सकते हैं। ओली संसद में बहुमत पाने के लिए मंत्री पद का लोभ देकर जनता समाजवादी पार्टी को भी लुभा सकते हैं। वहीं प्रचंड गुट को बहुमत के लिए नेपाली कांग्रेस और जनता समाजवादी पार्टी, दोनों का समर्थन पाना होगा, तभी वह बहुमत के आंकड़े तक पहुंच पाएगा। पर यह तभी संभव है, जब दोनों पार्टियां ओली के खिलाफ हों।
संकेतों को मुताबिक, नेपाली कांग्रेस ठहरकर परिस्थितियों को समझना चाहेगी, ताकि मौके का फायदा उठाया जा सके और वह किसी भी गुट का समर्थन करने के लिए राजी हो सकती है, जो उसे सरकार का नेतृत्व करने की अनुमति दे, जो भारत को अच्छा लगेगा। नेपाली कांग्रेस को भारत के करीब माना जाता है, जो कम्युनिस्ट सरकारों द्वारा अपनाई गई विरोधी नीतियों के कारण बुरी तरह प्रभावित हुई है। ओली ने चीन के प्रति सहानुभूति दिखाई और भारत के साथ संबंधों को खत्म कर दिया, जबकि प्रचंड प्रधानमंत्री के रूप में ज्यादा चल नहीं पाए। नेपाली मीडिया के अनुसार, जनता समाजवादी पार्टी (मधेसी) अपने 32 सांसदों के साथ वैसी पार्टी को समर्थन दे सकती है, जो मधेसी नागरिकों के कल्याण से संबंधित मांगों को स्वीकार करेगी। अगर ओली ने पद छोड़ने से इन्कार कर दिया और प्रचंड नई सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं जुटा सके, तो 2023 में कार्यकाल पूरा करने से पहले ही देश में चुनाव कराने होंगे। प्रचंड ने ओली सरकार से अपने गुट के सातों मंत्रियों को वापस ले लिया है और नेपाली कांग्रेस तथा जनता समाजवादी पार्टी की मदद से वर्तमान अनिश्चितता को खत्म करने का फैसला लिया है। प्रचंड ने अपनी पार्टी के नाम से माओवादी सेंटर शब्द को भी हटाने का प्रस्ताव दिया है, ताकि माओवाद को पसंद न करने वाले देश के अन्य कम्युनिस्ट इसमें शामिल हो सकें।
संकेतों के मुताबिक, जनता समाजवादी पार्टी नेपाली कांग्रेस को वैचारिक रूप से अपने निकट पाती है, इसलिए दोनों दलों ने ओली को हटाने और प्रचंड से गठजोड़ करने का मन बनाया है, जो उनके रुख के प्रति उत्सुक हैं और एक तंत्र व कार्य योजना तैयार करने के लिए राजी हैं, जो नई सरकार के संचालन की देखरेख करेगा। कथित रूप से जनता समाजवादी पार्टी ने नेपाली कांग्रेस के साथ बातचीत की है और साझा योजना तैयार की है। पर यह परिदृश्य तब बदल सकता है, जब हताश और निराश ओली प्रचंड गुट को रोकने के लिए समाजवादी पार्टी को प्रधानमंत्री पद की पेशकश कर दें। अपने सीमित विकल्पों को देखते हुए प्रचंड कनिष्ठ सहयोगी के रूप में नेपाली कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने पर सहमत हो सकते हैं और राष्ट्रीय जनता पार्टी की मधेसी कल्याण से संबंधित मांगों को स्वीकार करने के बाद समर्थन की इच्छा जता सकते हैं। नेपाल के संविधान विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर ओली सदन में विश्वासमत पाने में विफल रहते हैं, तो राष्ट्रपति की भूमिका महत्व होगी। ऐसे में, वह दावेदारों को सांसदों के समर्थन की सूची सौंपने के लिए कहेंगी, जिन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने से पहले सत्यापित किया जाएगा।
कूटनीति के मानदंडों को ध्यान में रखते हुए, विश्लेषकों का मानना है कि भारत को नई सरकार के गठन में वर्चस्व पाने के लिए नेपाली कांग्रेस की मदद करने के लिए विवेकपूर्वक प्रयास करना चाहिए, जो ओली को बचाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे चीन के लिए एक बड़ा झटका होगा, जिसने अदूरदर्शिता से दो देशों के संबंधों को नुकसान पहुंचाया।
सौजन्य - अमर उजाला।
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