भारत, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के नेताओं के बीच हाल ही संपन्न हुए पहले और वर्चुअल शिखर सम्मेलन ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि ‘क्वाड’ को लेकर सक्रियता बढ़ी है। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन और जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने क्वाड को ‘समान विचारधारा वाले साझेदारों का नरमपंथी’ समूह बताया।
विश्व राजनीति के मौजूदा दौर में चीन के आक्रामक रवैये और सीमाओं पर उसकी विस्तारवादी नीति के चलते ही क्वाड समूह बनाया गया। चीन को लगने लगा है कि वह स्वयं को दुनिया की नई शक्ति के रूप में पेश करे, इसीलिए वह अमरीका के प्रभुत्व को चुनौती देते हुए नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था विकसित करना चाहता है, जो चीन केन्द्रित हो। 2007 में हुए आसियान क्षेत्रीय संघ के स्मेलन के दौरान चार देशों की पृथक मुलाकात के बाद क्वाड की परिकल्पना की गई। जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने भी चार लोकतांत्रिक देशों का समूह बनाने की इच्छा जाहिर की ताकि चीन के बढ़ते कदमों को रोका जा सके। परन्तु चीन के दबाव के चलते करीब एकदशकके लिए यह विचार आकार नहीं ले सका। समूह के विचार को पुनर्जीवित करने का श्रेय कुछ हद तक पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को जाता है। जिसके चलते समूह की पहली मंत्री स्तरीय बैठक सितंबर 2019 में हुई, जो कि चीन के आक्रामक रवैए का भी नतीजा रही।
चारों नेताओं ने बाकी दुनिया को आश्वस्त किया है कि क्वाड कोई दुनिया से अलग समूह नहीं है और वे उन सभी पक्षों का स्वागत करते हैं जो एक मुक्त हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के समर्थन में हैं। बाइडन ने इस पहले ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन पर खुशी जताई है। इसके तहत अमरीकी तकनीक, जापानी वित्त, भारत की उत्पादक क्षमता और ऑस्ट्रेलिया की लॉजिस्टिक क्षमता का सामूहिक उपयोग कर हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में वितरण के लिए कोविड-19 वैक्सीन की अरबों खुराकें तैयार की जाएंगी। क्वाड का यह निर्णय ऐतिहासिक है, जो चार देशों को एक सूत्र में पिरोता नजर आ रहा है। बहुत से देश चीन के दबदबे को संतुलित करने वाले इस आपसी सहयोग का स्वागत करेंगे। चारों नेता इस वर्ष व्यक्तिगत तौर पर भी मुलाकात कर सकते हैं। चीन ने इस क्षेत्रीय संवाद को ‘एशियन नाटो’ की संज्ञा देते हुए कहा था कि यह नए शीतयुद्ध का कारण बन सकता है।
क्वाड की सहयोगात्मक पहल चीन की वैक्सीन कूटनीति को विफल करने के लिए काफी है। भू-स्थैतिक राजनीति की तस्वीर बदलने की क्वाड की क्षमता चीन के एशियाई देशों के साथ संबंधों पर प्रभाव डाल सकती है, खास तौर पर भारत के साथ। भारत की बात की जाए, तो चीन का असमंजस किसी से छिपा नहीं है। कोई गारंटी नहीं कि चीन एलएसी पर द्विपक्षीय समझौतों का सम्मान करेगा। यह चीन का दायित्व है कि वह भारत का विश्वास फिर से हासिल करे। इस बीच, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया को हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के अन्य देशों के साथ अपने संबंध बेहतर करने पर जोर देना चाहिए।
चीनी कंपनियां भारत में निवेश करना चाहती हैं, लेकिन चीन के इस दृष्टिकोण के आधार पर किसी सीमा विवाद को आर्थिक मसलों से जोड़ा न जाए। चीन की डिजिटल ऐप्स पर प्रतिबंध की तरह भारत आगे भी सुरक्षा कारणों से चीन की टेलीकॉम कंपनियों को देश के प्रोजेक्ट में भागीदारी से रोक सकता है। ऐसे में क्वाड के सदस्य देशों को ऐसी नई तकनीकें विकसित करने पर ध्यान देना होगा, जिनके जरिए चीन के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर पर निर्भरता खत्म की जा सके। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ताकत बनने की ओर अग्रसर है। ऐसे में चीन से आर्थिक संबंधों को संतुलित करना और उसके विस्तारवादी रवैये पर अंकुश लगाना क्वाड के लिए बड़ी चुनौती है। अगर चीन आक्रामक नीतियों से बाज नहीं आया तो क्वाड का एक संतुलनकारी ताकत के रूप में उभरना अपरिहार्य होगा।
- विनय कौड़ा, अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ
सौजन्य - पत्रिका।
0 comments:
Post a Comment