देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव प्रचार चरम पर पहुंचने लगा है। इस बीच चुनाव आयोग ने कुछ राज्यों में उपचुनाव का भी कार्यक्रम जारी कर दिया है। उपचुनाव वाले राज्यों में मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य भी हैं। प्रचार के दौरान व्यक्तिगत टीका-टिप्पणियों का दौर शुरू हो गया है। एक दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी जा रही है। कुछ सालों से ऐसा प्रत्येक चुनाव के समय दिखाई देने लगा है। नेता राजनीतिक गरिमा और मर्यादा को लांघकर व्यक्तिगत आरोपों पर उतर आते हैं। यह लोकतंत्र के लिए कदापि सम्मानजनक नहीं है।
पश्चिम बंगाल में इन दिनों चल रहे चुनाव प्रचार में नेता जिस तरह एक दूसरे को लेकर तीखे और व्यक्तिगत प्रहार कर रहे हैं, उससे साफ है कि लोगों की भावनाएं भडक़ाकर वोट बटोरना नेताओं को ज्यादा आसान लगने लगा है। यही वजह है कि पार्टी बदलने वाला नेता भी अपने आपको कोबरा बताते हुए चुनाव प्रचार को आक्रामक बनाने की कोशिश करता है। भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि भारत में वाणी संयम पर जोर दिया गया है।
मुश्किल यह है कि हर कीमत पर चुनाव जीतने की जिद के चलते नेताओं ने ‘हेट स्पीच’ को ही अपना हथियार बना लिया है। येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीतने की यह कोशिश लोकतंत्र को कमजोर ही कर रही है।
चिंताजनक बात यह है कि चुनाव आयोग ‘हेट स्पीच’ को रोकने की नाकाम कोशिश करता है। इस चुनाव में भी कर रहा है, लेकिन उसकी कोशिशें भी सवालों के घेरे में हैं। विपक्ष अब चुनाव आयोग पर ही हमलावर है। पक्षपात के आरोप लग रहे हैं। मतलब, संवैधानिक संस्थाएं भी सवालों के घेरे में हैं। चुनावों में उनकी प्रतिष्ठा पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इस पर एकपल के लिए रुककर सोचना होगा? यह सवाल चुनाव आयोग के लिए भी है कि आखिर क्यों उस पर सवाल उठ रहे हैं? अगर उसके तरीके और विवेक पर भरोसा ही नहीं है, तो फिर उसकी चुनाव प्रक्रिया पर भरोसा कैसे होगा? यही बात राजनीतिक दलों को भी सोचनी होगी कि वह भी यह सोचे कि अगर उन्हें चुनाव आयोग पर ही भरोसा नहीं है, तो फिर वे क्यों उस चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बन रहे हैं, जिसे आयोग पूरी करा रहा है। बेहतर तो यह है कि राजनीतिक दल चुनाव के दौरान ही नहीं, सामान्य दिनों भी ‘हेट स्पीच’ से दूर रहें, ताकि देश में सौहार्द बना रहे, क्योंकि सौहार्द के बिना विकास भी टिकाऊ नहीं हो सकता। साथ ही चुनाव मुद्दों पर लड़ा जाए, न कि ‘हेट स्पीच’ पर। चुनाव प्रक्रिया को अविश्वसनीय बनाने की कोशिश हर्गिज न की जाए।
सौजन्य - पत्रिका।
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