चिंता की दूसरी लहर (जनसत्ता)

लग रहा था कि अब कोरोना संक्रमण का खतरा टल गया है। पूरे देश से संक्रमण के घटते हुए आंकड़े आने लगे थे। इस बीच कोरोना के टीके लगने शुरू हुए तो विश्वास बनता गया था कि इस विषाणु को अब जड़ से उखाड़ फेंकने में मदद मिलेगी। मगर अचानक फिर इसने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए। रोज इसका रुख उठान पर नजर आने लगा है।

बुधवार को साढ़े चौंतीस हजार से अधिक मामले दर्ज हुए। देश के करीब सत्तर जिले सबसे अधिक प्रभावित हैं। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, केरल, पंजाब आदि कुछ राज्यों में स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। इसे कोरोना की दूसरी लहर बताया जा रहा है। कुछ राज्य रात का कर्फ्यू और कुछ जगहों पर बंदी तक का कदम उठाने लगे हैं। महाराष्ट्र के कुछ इलाके इस विषाणु की चपेट में अधिक देखे जा रहे हैं। इसलिए वहां कुछ शहरों में सख्त बंदी की गई है। इस दूसरी लहर के खतरों को देखते हुए स्वाभाविक ही प्रधानमंत्री ने बुधवार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों को संबोधित करते हुए आह्वान किया कि इसे रोकने के लिए जितना जल्दी हो सके, व्यावहारिक कदम उठाने की जरूरत है।

यों कोरोना का संक्रमण पूरी तरह कभी खत्म नहीं हुआ था, कुछ जगहों पर काफी कम जरूर हो गया था। इस विषाणु की उपस्थिति कमोबेश हर जगह बनी हुई थी। इसलिए बार-बार सावधानी बरतने की हिदायत दी जा रही थी। मगर ज्यादातर लोगों ने जैसे मान लिया था कि बंदी हटने का मतलब है कि कोरोना का खतरा समाप्त हो गया। बाजारों, सार्वजनिक वाहनों आदि में पहले की तरह भीड़भाड़ और धक्का-मुक्की शुरू हो गई। महाराष्ट्र में संक्रमण के मामले लगातार सबसे अधिक दर्ज हो रहे थे, मगर वहां लोगों में लापरवाही का आलम बना रहा।


इसलिए इसके फिर से फैलने का वातावरण बना और सरकारों के सामने चुनौती पेश आने लगी है कि इस पर कैसे काबू पाया जाए। पूर्णबंदी के परिणामों को देखते हुए अब कोई भी सरकार पूरी तरह से बाजार, कार्यालय, सार्वजनिक वाहनों को बंद करने का फैसला नहीं करना चाहेगी। ऐसे में आम लोगों से ही अपेक्षा की जाती है कि वे खुद सावधानी बरतें। मगर फिर भी लोग मनमानी से बाज नहीं आ रहे, तो कुछ कड़े कदम उठाने पड़ रहे हैं। विचित्र है कि दूसरों की न सही, लोगों को अपनी सेहत की भी चिंता नहीं हो रही।

कोरोना के टीके पूरे देश में लगाए जा रहे हैं, अब तो निजी अस्पतालों में भी कुछ पैसे खर्च करके इन्हें लगाने की सुविधा उपलब्ध है। इसके बावजूद लोगों में इसे लेकर हिचक बनी हुई है। शुरू में कुछ विपक्षी दलों और चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों ने इन टीकों पर कुछ सवाल क्या उठा दिए, लोगों का भ्रम गाढ़ा होता गया। मगर इस बीच में इन टीकों के गंभीर दुष्परिणाम नजर नहीं आए हैं, फिर भी लोग इसके लिए आगे नहीं आ रहे। इसकी वजह से टीके की खुराक रोज भारी मात्रा में बर्बाद जा रही है।

जो समस्याएं लोगों की जागरूकता और आपसी सहयोग से दूर की जा सकती हैं, उनके लिए भी अगर सरकारों और अदालतों को कठोर कदम उठाने पड़ें, तो इसे कोई अच्छी बात नहीं माना जा सकता। कोरोना की दूसरी लहर उठने के पीछे बड़ा कारण लोगों का अपेक्षित सावधानी न बरतना है। अगर वे उचित दूरी बनाए रखने, नाक-मुंह ढकने, हाथ धोते रहने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले आहार लेने, दिनचर्या ठीक रखने, टीका लगवाने का प्रयास करें, तो वे इस समस्या से पार पाने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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