तकनीक को तवज्जो (बिजनेस स्टैंडर्ड)

ऑनलाइन बैंकिंग के लिए वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) की जरूरत होती है और पिछले दिनों इंटरनेट बैंकिंग करने वाले कई ग्राहकों को समस्या होने के बाद भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने एसएमएस पर कुछ अतिरिक्त प्रतिबंधों को फिलहाल टाल दिया है। इन नियमों के मुताबिक सभी वाणिज्यिक एसएमएस के लिए विशिष्ट प्रारूप का पालन करना जरूरी था। ऐसा इसलिए किया जाना था ताकि स्पैम (वाणिज्यिक प्रचार के लिए थोक संदेश भेजना) या थोक में भेजे जाने वाले एसएमएस का प्रसार रोका जा सके। अधिकांश मोबाइल फोनधारक ऐसे एसएमएस से बेहद परेशान हैं और इस नियमन की तत्काल आवश्यकता है। ट्राई ने दूरसंचार सेवाप्रदाताओं को मानकों को लागू करने के लिए एक सप्ताह का वक्त दिया है। आशा की जा रही है कि इस अवधि में यूआईडीएआई प्रमाणन सेवा का इस्तेमाल करने वालों मसलन कोविड-19 टीकाकरण मंच को-विन और खासतौर पर बैंक ओटीपी भेजने के प्रारूप में बदलाव करेंगे ताकि ट्राई के दिशानिर्देशों का पालन किया जा सके। इस सप्ताह के आरंभ में तकनीकी खराबी होने के कारण बड़ी तादाद में ओटीपी स्पैम रोकने वाले फिल्टर के शिकार हो गए। ये फिल्टर टेलीफोन कंपनियों द्वारा लगाए गए थे। ऐसा होना अपने आप में पहेली है। ट्राई के दिशानिर्देशों को अंतिम समय में बैंकों या अन्य संस्थानों पर शायद ही थोपा जा सकता था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने फरवरी में दिशानिर्देशों का क्रियान्वयन तेज करने का निर्देश दिया।

दिक्कत शायद यह हुई कि बैंक अपने इस्तेमाल वाले तमाम प्रारूप उपलब्ध कराने में नाकाम रहे। एक वजह शायद यह हो सकती है कि कुछ बैंक एसएमएस भेजने का काम पेशेवर कंपनियों से कराते हैं। परंतु संवाद की कमी की जवाबदेही नियामकों, दूरसंचार कंपनी या एसएमएस भेजने वाली अनुबंधित कंपनी पर नहीं आयद होती। अब यह बैंकों पर निर्भर करता है कि वे नियामकीय जरूरतों को पूरा करें। हाल के दिनों में यह पहला अवसर नहीं है जब बैंकों के ग्राहकों को ओटीपी को लेकर समस्या हुई हो। नवंबर में एचडीएफसी बैंक का प्लेटफॉर्म अचानक ध्वस्त हो गया था और ग्राहक तमाम सेवाओं से वंचित हो गए थे। यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस यानी यूपीआई में भी दिक्कत आई। दिसंबर 2019 में इसी बैंक को भुगतान निपटाने में दिक्कत हुई थी। इसके कारण रिजर्व बैंक को जांच करने पर मजबूर होना पड़ा। इससे पहले अक्टूबर 2020 में आईसीआईसीआई बैंक का प्लेटफॉर्म उस दिन ध्वस्त हो गया जिस दिन उसकी क्रेडिट कार्ड शाखा ने एक बड़ी सेल के पहले ई-कॉमर्स कंपनी एमेजॉन के साथ समझौता किया।


बैंकिंग क्षेत्र पर इन विफलताओं के असर को देखते हुए यदि रिजर्व बैंक मौजूदा ओटीपी व्यवस्था पर नए सिरे से विचार करे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नियामक इस बात पर विचार कर सकता है कि हर लेनदेन के प्रमाणन के लिए ओटीपी पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता के क्या परिणाम हो सकते हैं। उसे इस अवसर का लाभ लेते हुए पूरी ओटीपी व्यवस्था की समीक्षा करनी चाहिए। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह तकनीकी उन्नति के साथ चले, नई तरह की धोखाधड़ी से निपट सके और बढ़ती डिजिटल साक्षरता के मुकाबले बरकरार रह सके। आरबीआई को छोटे लेनदेन के मामले में ओटीपी की जरूरत पर दोबारा विचार करना चाहिए और ऐसी प्रणाली बनानी चाहिए कि उपभोक्ताओं के पास विकल्प हो कि कब और कैसे ओटीपी हासिल करना है। उपभोक्ताओं को सुरक्षा और सक्षमता तय करने का दायित्व बैंकों पर हो। शायद उन्हें यह विकल्प भी मिलना चाहिए कि वे इस व्यवस्था से पूरी तरह या एक सीमा तक बाहर रहें। बैंकों को भी तकनीकी मंचों और व्यवस्थाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए और उन्हें सस्ते में नहीं निपटाना चाहिए। बैंकिंग और ऑनलाइन लेनदेन के साथ डिजिटल संपर्क के बढऩे के साथ ही बैंकों के डिजिटल संवाद और प्लेटफॉर्म की विश्वसनीयता और उनका ग्राहकों के अनुरूप होना प्राथमिकता होनी चाहिए।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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