मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के कथित विस्फोटक पत्र ने महाराष्ट्र की सियासत में खलबली मचा दी है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे गए इस पत्र में राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर बेहद गंभीर आरोप लगाए गए हैं। पत्र के मुताबिक देशमुख ने एंटीलिया मामले में निलम्बित पुलिस अधिकारी सचिन वाझे को हर महीने 100 करोड़ रुपए की उगाही करने को कहा था। मंत्रियों और पुलिस के बीच इस तरह की सांठ-गांठ की चर्चा दबे-छिपे रूप में होती रही है। इस बार मामला इसलिए ज्यादा संगीन है कि आरोप उच्च पद पर बैठे अधिकारी ने लगाए हैं। यानी सरकारी सेवा में रहते हुए सरकार के एक बड़े मंत्री पर निशाना साधा गया। अगर आरोप सही हैं, तो यह महाराष्ट्र ही नहीं, पूरे देश के लिए चिंता की बात है। जिस पुलिस तंत्र पर सुरक्षा और कानून-व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी है, अगर वह अपने समय और ऊर्जा को उगाही में खर्च करेगी, तो अपराधियों को किस मुंह से कठघरे में खड़ा कर पाएगी? देशमुख को कठघरे में खड़ा कर परमबीर सिंह उन गलतियों पर पर्दा नहीं डाल सकते, जो एंटीलिया मामले में मुंबई पुलिस से हुईं। जब से यह मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) के हाथ में गया है, नए-नए खुलासों से मुम्बई पुलिस की काफी किरकिरी हुई है। कथित विस्फोटक पत्र से एक दिन पहले ही अनिल देशमुख ने कहा था कि परमबीर सिंह के मुम्बई पुलिस प्रमुख रहते उनके सहयोगी अधिकारी ने कुछ गंभीर गलतियां कीं, जो माफी के लायक नहीं हैं।
दरअसल, एंटीलिया मामले में जितनी संदिग्ध भूमिका मुंबई पुलिस की है, उतनी ही महाराष्ट्र के गृह मंत्रालय की भी है। एंटीलिया के बाहर पार्क की गई एसयूवी के मालिक मनसुख हिरेन की संदिग्ध मौत के बाद पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में सचिन वाझे पर खुलकर आरोप लगाए। उनके पास मनसुख और वाझे की बातचीत की कॉल डिटेल भी थी। गृह मंत्री देशमुख के पास ऐसी कोई जानकारी नहीं थी। जाहिर है, या तो उन्होंने पुलिस से मामले की जांच की जानकारी नहीं ली या पुलिस ने उन्हें उतना ही बताया, जिससे उस पर कोई आंच नहीं आए। दोनों ही हालत में यह बेहद गंभीर बात है। आखिर जिस मामले पर पूरे देश की नजरें हैं, उसको लेकर सरकार और पुलिस के बीच बेहतर तालमेल की दरकार थी। परमबीर सिंह के तबादले से साफ हो गया था कि मामले की लपटें उन तक पहुंच चुकी थीं। यह सवाल अब तक पहेली बना हुआ है कि एंटीलिया मामले से कई साल पहले पुलिस की नौकरी छोड़कर शिवसेना की सदस्यता ग्रहण करने वाले मुठभेड़ विशेषज्ञ सचिन वाझे को किसके इशारे पर पुलिस महकमे में बहाल किया गया। मुंबई के हर बड़े मामले की जांच उन्हें ही क्यों सौंपी जा रही थी? पारदर्शिता का तकाजा है कि महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी सरकार ऐसे तमाम सवालों के जवाब ढूंढे। सरकार में शामिल तीनों पार्टियां (शिवसेना, राकांपा, कांग्रेस) एंटीलिया मामले में अपना रुख भी साफ करें।
सौजन्य - पत्रिका।
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