By रशीद किदवई
देश के पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुदुचेरी में विधानसभा चुनाव की गहमागहमी चल रही है. बंगाल और केरल के साथ ही असम चुनाव पर भी लोगों की नजर है. चुनावी विश्लेषक असम में भाजपा को मजबूत बता रहे थे, लेकिन कांग्रेस की सक्रियता और सोची-समझी रणनीति के तहत उठाये जा रहे कदमों से अब वहां भी मामला बराबर का दिखाई देने लगा है.
शुरुआती धारणाओं के विपरीत कांग्रेस ने असम चुनाव में भाजपा के सामने कड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. भाजपा को हेमंत बिस्वा सरमा के प्रभाव और उससे भी ज्यादा मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक कार्ड पर पूरा भरोसा था. उसे यह भी लगता था कि हेमंता के कांग्रेस छोड़ देने के बाद कांग्रेस संगठन चरमरा गयी है. शुरुआत में ऐसा नजर भी आ रहा था. लेकिन, आज असम की तस्वीर भिन्न है. अब कांग्रेसी खेमे में हर दिन जीत की रणनीति पर बात हो रही है.
आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस कार्यकर्ता विधानसभा सीटों पर बूथ तक सक्रिय हो गये हैं. कांग्रेस ने जो गठबंधन किया है, वह भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन गया है. बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआइयूडीएफ से गठबंधन के बाद कांग्रेस की सीटों में इजाफा होने के संकेत हैं. बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) से हुए समझौते का लाभ भी कांग्रेस को मिलेगा. यह पहले भाजपा के साथ था.
कांग्रेस ने अपने चुनावी वादों को गारंटी कहा है. इनमें सीएए लागू नहीं करने की गारंटी के अलावा हर गृहिणी को प्रतिमाह 2000 रुपये, पांच लाख सरकारी नौकरियां, 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली की घोषणा है, जिससे हर घर में लगभग 14 सौ रुपये प्रतिमाह की बचत हो सकेगी. इनमें सबसे बड़ी गारंटी चाय बागान मजदूरों को प्रतिदिन 365 रुपये मजदूरी देने की है.
कांग्रेस नये-नये दांव खेल रही है, स्वाभाविक ही उससे बीजेपी खेमे में चिंता है. भाजपा असम में शुरू से ही सांप्रदायिक कार्ड खेल रही थी. कांग्रेस उससे अलग हट कर गंभीर मसले उठा रही है. फिलहाल, भाजपा के पास कोई ढंग का उत्तर या जनता के लिए ऑफर नहीं है, सो उसके नेता अब सीधे एआइयूडीएफ पर हल्ला बोल रहे हैं. भाजपा नेताओं में अमित शाह से लेकर जेपी नड्डा और शिवराज सिंह चौहान तक एआइयूडीएफ विरोधी उन्मादी बयान दे रहे हैं.
यह नेता आज एआइयूडीएफ को सांप्रदायिक कह रहे हैं, लेकिन इसी भाजपा ने असम के नगांव विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय निकाय चुनाव में एआइयूडीएफ के साथ समझौता किया था. शिवसेना तो उनकी पुरानी साथी थी ही और तब वह सांप्रदायिक भी नहीं थी. कांग्रेस खेमे का कहना है कि भाजपा आज असम में सरकार बनाने की लालसा लिये जिस रास्ते पर चल रही है, उसने असम की पहचान, असमिया संस्कृति को ही खतरे में डाल दी है.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि कांग्रेस असम के उस विचार की हिफाजत करने का वादा करती है, जिसमें संस्कृति, भाषा, परंपरा, इतिहास और सोचने का तरीका समाहित है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने मीडिया से कहा कि आप जानते हैं कि भाजपा और आरएसएस संपूर्ण भारत और असम की विविधतापूर्ण संस्कृति पर हमले कर रहे हैं. हम इसकी रक्षा करेंगे. उन्होंने लोगों से कहा कि पार्टी के चुनावी घोषणा-पत्र में कांग्रेस का चुनाव चिह्न जरूर बना है, लेकिन असल में यह आम जनता का घोषणा पत्र है. उनके शब्द थे ‘इसमें असम के लोगों की आकांक्षाएं समाहित हैं.’
असम में अब न तो नरेंद्र मोदी, न अमित शाह, न जेपी नड्डा और न सर्बानंद सोनोवाल सीएए की बात कर रहे हैं. उन्हें मालूम है कि यहां सीएए का मुद्दा बीजेपी के खिलाफ जायेगा. अलबत्ता हिंदुत्ववादी पार्टी असम में घुसपैठ रोकने के नाम पर पांच साल और मांग रही है, हालांकि वह वोटर को यह नहीं बता पा रही है कि पिछले पांच साल में उसने कितने घुसपैठियों को वापस भेजा या घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर क्या किया?
असम की राजनीतिक परिस्थितियां समझने के साथ ही वहां की भौगोलिक जानकारी रखने वाले कहते हैं कि भाजपा प्रदेश से सटी बांग्लादेश सीमा को पूरी तरह बंद करने के प्रयास कभी नहीं करती. सीमा पर भाजपा कोई सख्ती इसलिए भी नहीं दिखाती, क्योंकि कथित तौर पर भारत के इस हिस्से से बड़े पैमाने पर गौ-तस्करी होती है.
चुनाव प्रचार की गर्मी बढ़ने के साथ असम में परिस्थितियां बदल रही हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपने मतादाताओं को रिझाने में लगे हैं. असम में चुनाव का स्थानीय स्तर पर आकलन करनेवाले कहते हैं कि कथित मुख्यधारा का मीडिया सारी बातों का आकलन अपनी सुविधानुसार करने में लगा हुआ है. उसे देखकर लगता है कि वह उसी मुस्लिम विरोधी धारणा के निर्माण में लगा है, जो बीजेपी के अनुकूल है. बिना इस बात की चिंता किये कि इस तरह के ध्रुवीकरण के नतीजे क्या होंगे!
असम में तीन चरण में मतदान होने हैं. पहले चरण के लिए 27 मार्च को वोट डाले जायेंगे. दूसरे चरण का मतदान 1 अप्रैल को जबकि 6 अप्रैल को तीसरे दौर के साथ वहां मतदान संपन्न होगा. देखना दिलचस्प होगा कि इस बार असम के मतदाता क्या फैसला सुनाते हैं. वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में वहां के मतदाताओं ने भाजपा को भरपूर समर्थन देकर सबको चौंका दिया था. इस बार असम पर सब की नजरें लगी हुई हैं कि यह चुनाव क्या रुख इख्तियार करते हैं.
सौजन्य - प्रभात खबर।
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