ढाई साल से अधिक समय की तनावपूर्ण अवधि के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि से संबंधित बैठक हो रही है. वैसे तो दोनों पड़ोसियों के संबंधों में लगातार तनातनी रहती है, लेकिन पिछले कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद बढ़ाने में पाकिस्तान की अधिक सक्रियता के कारण दोनों देशों के बीच संवाद की प्रक्रिया स्थगित हो गयी थी. पुलवामा में पाकिस्तान-समर्थित आतंकियों द्वारा भारतीय सुरक्षाबलों के एक काफिले पर हमले के बाद भारत को पाक-अधिकृत कश्मीर में बालाकोट में स्थित आतंकी ठिकानों पर हवाई हमला करना पड़ा था.
उस कार्रवाई के जरिये भारत ने स्पष्ट संकेत दिया था कि आतंकी हमलों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक और प्रशासनिक संरचना में बदलाव से बौखलाये पाकिस्तान ने आतंकियों की घुसपैठ बढ़ाने के इरादे से नियंत्रण रेखा व अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लगातार युद्धविराम का उल्लंघन कर भारत के धैर्य को चुनौती देने की कोशिश की.
इसका एक नतीजा यह हुआ कि सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी के बंटवारे और इससे जुड़ी परियोजनाओं पर बातचीत के सिलसिले पर विराम लग गया. बीते दिनों दोनों देश युद्धविराम के समझौते के पालन पर फिर सहमत हुए हैं और इससे यह उम्मीद बढ़ी है कि सभी द्विपक्षीय मसलों पर संवाद की प्रक्रिया एक बार फिर शुरू हो सकेगी. इस कड़ी में सिंधु जल प्रबंधन पर चर्चा स्वागतयोग्य है. साल 1960 में हुए समझौते के प्रावधान के अनुसार दोनों देशों के आयोगों की सालाना बैठक अपेक्षित है.
हालांकि इस बैठक से अनेक उम्मीदें जुड़ी हुई हैं, पर ऐसा अंदेशा है कि पाकिस्तान अपनी आदत के मुताबिक भारतीय परियोजनाओं पर सवाल उठायेगा. समझौते में विभिन्न नदियों के पानी के उपयोग तथा नदियों पर विद्युत परियोजनाएं लगाने के बारे में स्पष्ट प्रावधान हैं. पूर्वी नदियों- सतलुज, ब्यास और रावी के कुल पानी- लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट- का निर्बाध रूप से सालाना इस्तेमाल कर सकता है. पाकिस्तान के हिस्से में पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चेनाब- का लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट पानी है.
समझौते में पाकिस्तान को यह अधिकार भी है कि पश्चिमी नदियों पर भारत की जलविद्युत परियोजनाओं की रूप-रेखा पर चिंता जता सकता है तथा उनका परीक्षण कर सकता है. भारत ने हमेशा पाकिस्तान के इस अधिकार का सम्मान किया है. फिर भी ऐसी आशंका है कि वह पहले की परियोजनाओं के साथ लद्दाख क्षेत्र में प्रस्तावित आठ परियोजनाओं पर सवाल उठाये.
उसका यह रवैया नदियों से संबंधित नहीं होकर भू-राजनीतिक रणनीति से अधिक प्रेरित हो सकता है. विभिन्न मामलों में चीन के साथ पाकिस्तान की जुगलबंदी पूरी दुनिया के सामने है. अंदेशों के बावजूद यह कहा जा सकता है कि दोनों देशों के बीच अमन-चैन की दिशा में यह बातचीत मील का पत्थर साबित हो सकती है. दो सालों से रुके अटारी-वाघा चौकी के रास्ते होनेवाले व्यापार के शुरू होने की उम्मीद भी बढ़ी है.
सौजन्य - प्रभात खबर।
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