सरकार ने ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के निलंबन की अवधि बुधवार को समाप्त होने के बाद उसे न बढ़ाकर अच्छा किया है। इससे इस संहिता का सामान्य कामकाज शुरू हो सकेगा। कोविड-19 के चलते कारोबारी ऋणशोधन अक्षमता निस्तारण की प्रक्रिया को मार्च 2020 में छह महीने के लिए निलंबित किया गया था। बाद में इसे दो बार तीन-तीन महीने के लिए बढ़ाया गया। विचार यह था कि कंपनियों को कोविड-19 के कारण बंद होने की स्थिति में संभावित डिफॉल्ट की वजह से ऋणशोधन प्रक्रिया में शामिल होने से बचाया जा सके। महीनों तक कंपनियों का कामकाज बंद होने से बेहतर से बेहतर कंपनी के लिए कर्ज चुकाना मुश्किल हो सकता था। शुरुआती इरादा सही था और निलंबन को एक वर्ष तक नहीं बढ़ाना था। छोटी कंपनियों को मुश्किल से बचाने के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा चुके हैं। सरकार ने ऋणशोधन प्रक्रिया शुरू करने के लिए देनदारी चूक की सीमा बढ़ाकर एक करोड़ रुपये कर दी है। आदर्श स्थिति तो यही होती कि आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत के साथ ही यह प्रक्रिया शुरू कर दी जाती। कर्ज चुकाने को लेकर दी गई ऋण स्थगन की सुविधा अगस्त में समाप्त हो गई, हालांकि खातों को फंसे हुए कर्ज के रूप में वर्गीकृत करने की प्रक्रिया इस सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश आने तक रुकी रही। आईबीसी प्रक्रिया को एक वर्ष तक पूरी तरह स्थगित करने से उन कंपनियों को भी बचाव मिल गया जो शायद कोविड के कारण नहीं बल्कि अन्य वजहों से देनदारी में चूक जातीं। ऐसी कंपनियां केवल पूंजी फंसाने और बैंकिंग तंत्र में फंसा हुआ कर्ज बढ़ाने का काम करेंगी। यह समझना भी आवश्यक है कि कुछ कारोबार ऐसे हैं जो तमाम नियामकीय सहायता के बावजूद शायद इस झटके से उबर न सकें। तंत्र को ऐसे तमाम मामलों से निपटने की तैयारी रखनी चाहिए। हालात सामान्य होने के बाद आईबीसी की प्रक्रिया ही पूंजी किफायत सुधारने का सबसे बेहतर तरीका होगी। इससे सुधार की गति बढ़ेगी।
प्रक्रिया बहाल होने से कोविड से संबंधित दिक्कतों के कारण निस्तारण मामलों में तेजी आ सकती है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि तेजी बहुत अधिक नहीं होगी। चाहे जो भी हो अब ध्यान परिचालन मुद्दों पर स्थानांतरित होना चाहिए। सरकार को यह श्रेय जाता है कि उसने इस कानून के उचित उद्देश्य के लिए प्रयोग को लेकर समुचित सक्रियता दिखाई। अब उसे राष्ट्रीय कंपनी लॉ पंचाट (एनसीएलटी) की क्षमता बढ़ाने पर विचार करना चाहिए ताकि निस्तारण तेज हो सके। जैसा कि इस समाचार पत्र में प्रकाशित भी हुआ कि करीब 75 फीसदी मामले 270 दिन से अधिक पुराने हैं। यह भी स्पष्ट है कि बड़ी तादाद में मामलों की सुनवाई करने वाले पीठ अधिक समय लेते हैं। मसलन दिल्ली और मुंबई में निस्तारण की अवधि 475 दिन से अधिक है जबकि राष्ट्रीय औसत 440 दिन है। यदि अपील पंचाट और न्यायालयों द्वारा लिए जाने वाले समय को शामिल किया जाए तो यह अवधि बहुत अधिक बढ़ जाती है। सार्थक प्रभाव के लिए इस अवधि को कम करना जरूरी है। ताजा आर्थिक समीक्षा में भी एनसीएलटी के न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार, डेट रिकवरी पंचाटों और अपील पंचाटों की जरूरत रेखांकित की गई है ताकि फंसे कर्ज का निस्तारण तेज हो सके।
निश्चित तौर पर ऋणशोधन निस्तारण ढांचे की मजबूती की जरूरत पर बहुत अधिक जोर नहीं दिया जा सकता। कर्जदाताओं द्वारा कर्ज का अनुशासन बरकरार रखने का यह सबसे बेहतर उपाय है। सरकारी बैंकों के दबदबे वाले भारतीय बैंकिंग तंत्र के लिए भी यह अहम है। सरकारी बैंकर अक्सर फंसे कर्ज के निपटान के अन्य तरीके अपनाने से हिचकते हैं क्योंकि उन्हें जांच एजेंसियों का खौफ रहता है। आरबीआई के मुताबिक बैंकिंग तंत्र का समूचा फंसा हुआ कर्ज सितंबर तक 13.5 फीसदी हो जाएगा। आईबीसी प्रक्रिया बैंकिंग व्यवस्था को तनाव से निपटने में मदद करेगी।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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