पिछले कुछ महीनों से कश्मीर को लेकर उत्पन्न आशंकाओं को दूर करते हुए अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया है कि इस मामले में उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं होगा। एक लिहाज से यह भारत के लिए अच्छा संकेत है। जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद माना जा रहा था कि कश्मीर को लेकर अमेरिका अपना रुख बदल सकता है और उससे भारत के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। इसके पीछे वजह यह थी कि उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध किया था। साथ ही उन्होंने कश्मीर में इंटरनेट पर पाबंदी और लोगों को हिरासत में लिए जाने को लेकर भी भारत की कड़ी आलोचना की थी और इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया था। इससे यह संदेश गया था कि अगर बाइडेन सत्ता में आए तो कश्मीर को लेकर अमेरिकी नीति में बदलाव देखने को मिल सकते हैं। पर अब कश्मीर व भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर अमेरिका ने जिस तरह के रुख के संकेत दिए हैं, वे उसकी संतुलन की नीति को प्रतिबिंबित करते हैं। अमेरिका न तो भारत को नाराज करके चलेगा, न पाकिस्तान के प्रति कड़ा रुख दिखाने वाला है। अमेरिका ने भारत में पाकिस्तान सीमा से होने वाली घुसपैठ और सीमा पर संघर्षविराम के उल्लंघन की घटनाओं को लेकर चिंता जताई है और कहा है कि यह बंद होना चाहिए। उसका यह रुख पाकिस्तान के लिए एक संदेश के रूप में भी देखा जा सकता है। हालांकि पूर्व में भी अमेरिकी नेताओं-सांसदों और विदेश विभाग की ओर से ऐसे बयान आते रहे हैं। पर हाल का विदेश विभाग का यह बयान इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि पिछले महीने की पच्चीस तारीख को भारत और पाकिस्तान के सैन्य महानिदेशकों की बैठक हुई थी और उसमें संघर्षविराम नहीं तोड़ने को लेकर सहमति बनी थी। इस बैठक को अमेरिकी प्रयासों के नतीजे के रूप में भी देखा जा रहा है। शांति वार्ता प्रक्रिया बहाल करने को लेकर भी अमेरिका ने उम्मीदें जताई हैं। लेकिन सवाल है कि यह संभव होगा कैसे! संघर्षविराम के उल्लंघन और पाकिस्तान सीमा से भारत में आतंकियों की घुसपैठ के बार सच्चाई किसी से छिपी नहीं है। भारत लंबे समय से सीमापार आतंकवाद का शिकार हो रहा है। ऐसे में क्या अमेरिका को पाकिस्तान पर इस बात के लिए दबाव नहीं बनाना चाहिए कि वह अपनी जमीन से संचालित हो रही आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाए। पर अमेरिका पाकिस्तान पर ऐसा दबाव बनाएगा, इसमें संदेह है। बाइडेन प्रशासन यह साफ कर चुका है कि एशियाई क्षेत्र में भारत और पाकिस्तान दोनों की उसके लिए अहमियत है। पाकिस्तान के साथ उसके कई हित जुड़े हैं। अमेरिका जानता है कि बिना पाकिस्तान की मदद के न वह अफगानिस्तान से तो निकल सकता है और न ही वहां बना रह सकता है। भारत को साधे रखने के लिए भी पाकिस्तान का साथ जरूरी है। दूसरी ओर, आर्थिक और रणनीतिक कारणों से भारत की महत्ता भी उसके लिए कम नहीं है। चीन की घेरेबंदी के लिए बनाए गए क्वाड समूह में अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के अलावा भारत भी सदस्य है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों में सामरिक दृष्टि से भारत की स्थिति बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। अमेरिकी हथियारों के लिए भारत एक बड़ा बाजार है और दोनों के बीच अरबों डॉलर के रक्षा करार हुए हैं। वैश्विक राजनीति में भी भारत का कद बढ़ा है। पर अमेरिका के लिए उसके हित सर्वोपरि हैं। ऐसे में वह कश्मीर मामले में ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे उसके हित प्रभावित हों। सच्चाई तो यही है कि कश्मीर भारत का अभिन्न है और इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए, भले कोई कुछ भी नीति अपनाए।
सौजन्य - जनसत्ता।
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