देश की शीर्ष अदालत की इस चिंता से सहमत हुआ जा सकता है कि आधार कार्ड से न जुड़े होने की वजह से तीन करोड़ राशन कार्ड रद्द करना एक गंभीर मामला है। निस्संदेह देश में कोरोना संकट के दौरान लॉकडाउन लगने तथा इससे उपजे रोजगार के संकट के दौरान राशन कार्ड रद्द होने से करोड़ों जिंदगियों की त्रासदी और बढ़ गई होगी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस. ए. बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ का कहना था कि राशन कार्ड के आधार से लिंक न हो पाने को विरोधात्मक मामले के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। इस बाबत नाराजगी जताते हुए अदालत ने केंद्र तथा राज्य सरकारों से इस बाबत चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। दरअसल, 9 दिसंबर, 2019 में भी शीर्ष अदालत ने वैध आधार कार्ड न होने पर राशन आपूर्ति से वंचित किये जाने के फलस्वरूप भूख से होने वाली मौतों की बाबत सभी राज्यों से जवाब मांगा था। ऐसे ही मामले में झारखंड की याचिकाकर्ता कोयली देवी का कहना था कि 28 सितंबर, 2018 में उसकी बेटी संतोषी की भूखे रहने के कारण मौत हो गई थी। दरअसल, अदालत कोयली देवी की याचिका पर ही सुनवाई कर रही थी। अदालत ने प्रकरण के भूख से जुड़े होने के कारण मामले पर गहरी चिंता व्यक्त की थी। निस्संदेह तंत्र द्वारा आये दिन दिखायी जाने वाली संवेदनहीनता हमारी चिंता का विषय भी होनी चाहिए। सरकारी फरमानों को जारी करते हुए ऐसे मामलों में वंचित व कमजोर वर्ग के प्रति मानवीय दृषि्टकोण अपनाये जाने की जरूरत है।
दरअसल, संवेदनहीन अधिकारी आनन-फानन में सरकारी फरमानों के क्रियान्वयन का आदेश तो दे देते हैं लेकिन वंचित तबके की मुश्किलें नहीं देखते। वे जमीनी हकीकत और लोगों की मुश्किलों के प्रति उदार रवैया नहीं अपनाते। उनकी तरफ से सरकारी लक्ष्यों को पूरा करने का समय निर्धारित करके कह दिया जाता है कि अमुक समय तक इन्हें पूरा कर लें अन्यथा उनको मिलने वाली सुविधाओं से वंचित कर दिया जायेगा। देश में अशिक्षित-गरीब आबादी का बड़ा हिस्सा तकनीकी बदलावों का अनुपालन सहजता से नहीं कर पाता। देश के दूरदराज इलाकों में तो यह समस्या और भी जटिल है। कोरोना संकट में कई स्थानों पर इंटरनेट सुविधाओं के अभाव में गरीबों को राशन लेने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा क्योंकि उनका राशनकार्ड आधार कार्ड से लिंक नहीं हो पाता था। ऐसे में उस गरीब तबके की दुश्वारियों को समझा जा सकता है, जिनका जीवन राशन से मिलने वाले अनाज पर ही निर्भर करता है। खासकर कोरोना संकट के चलते लगे लॉकडाउन और लाखों लोगों के रोजगार छिनने के बाद तो स्थिति ज्यादा विकट हो गई होगी। सरकार को ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिए जो समय रहते सरकारी निर्देशों के अनुपालन के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर कर सके। निस्संदेह, सभी अधिकारों में जीने का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण है। एक लोकतांत्रिक देश में कोशिश होनी चाहिए कि सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन में किन्हीं औपचारिकताओं के चलते किसी का चूल्हा न बुझे। तंत्र को वंचित समाज के प्रति इस बाबत उदार रवैया अपनाना चाहिए। यह कल्याणकारी राज्य के लिये अपरिहार्य शर्त भी है।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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