नारों से नहीं सजते धर्मक्षेत्र (राष्ट्रीय सहारा)

चार  बरस पहले जब योगी सरकार बनी तो हर हिंदू को लगा कि अब हमारे धर्मक्षेत्रों को बडÃे स्तर पर सजाया–संवारा जाएगा। तब अपने इसी कॉलम में मैंने लिखा था कि‚ ‘अगर धाम सेवा के नाम पर‚ छलावा‚ ढोंग और घोटाले होंगे‚ तो भगवान तो रुûष्ट होंगे ही‚ सरकार की भी छवि खराब होगी। इसलिए हमारी बात को ‘निंदक नियरे राखिए' वाली भावना से उप्र के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी सुनेंगे‚ तो उन्हें लोक और परलोक में यश मिलेगा। यदि वे निहित स्वार्थों की हमारे विरुûद्ध की जा रही लगाई–बुझाई को गंभीरता से लेंगे तो न सिर्फ ब्रजवासियों और ब्रज धाम के कोप भाजन बनेंगे‚ बल्कि परलोक में भी अपयश ही कमाएंगे।' ॥ तब इस लेख में मैंने उन्हें आगाह किया था कि‚ ‘धर्मनगरियों व ऐतिहासिक भवनों का जीणोंर्द्धार या सौंदर्यीकरण जटिल प्रक्रिया है। इसलिए कि चुनौतियां अनंत हैं। लोगों की धार्मिक भावनाएं‚ पुरोहित समाज के पैतृक अधिकार‚ वहां आने वाले आम आदमी से अति धनी लोगों तक की अपेक्षाओं को पूरा करना‚ सीमित स्थान और संसाधनों के बीच व्यापक व्यवस्थाएं करना‚ इन नगरों की कानून व्यवस्था और तीर्थयात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना।' इस सबके लिए जिस अनुभव‚ कलात्मक अभिरुûचि व आध्यात्मिक चेतना की आवश्यक्ता होती है‚ प्रायः उसका प्रशासनिक व्यवस्था में अभाव होता है। कारण यह है कि सडÃक‚ खड़ं़जे की मानसिकता से टेंड़र निकालने वाले‚ डीपीआर बनाने वाले और ठेके देने वाले‚ इस दायरे के बाहर सोच ही नहीं पाते। सोच पाते तो इन शहरों में कुछ कर दिखाते। पिछले इतने दशकों में इन धर्मनगरियों में विकास प्राधिकरणों ने क्या एक भी इमारत ऐसी बनाई है‚ जिसे देखा–दिखाया जा सकेॽ क्या इन प्राधिकरणों ने शहरों की वास्तुकला को बढÃाया है या इन पुरातन शहरों में दियासलाई के डिब्बों जैसे अवैध बहुमंजिले भवन खडÃे कर दिए हैंॽ नतीजतन‚ ये सांस्कृतिक स्थल अपनी पहचान तेजी से खोते जा रहे हैं। माना कि शहरी विकास की प्रक्रिया में मकान‚ दुकान‚ बाजार बनाने होते हैं‚ पर पुरातन नगरों की आत्मा को मारकर नहीं। अंदर से भवन कितना ही आधुनिक क्यों न हो‚ बाहर से उसका स्वरूप‚ उस शहर की वास्तुकला की पहचान को प्रदर्शित करने वाला होना चाहिए। भूटान ऐसा देश है‚ जहां एक भी भवन भूटान की बौद्ध संस्कृति के विपरीत नहीं बनाया जा सकता। होटल‚ दफ्तर या दुकान‚ कुछ भी हो‚ सबके खिडÃकी‚ दरवाजे और छज्जे बुद्ध विहारों के सांस्कृतिक स्वरूप को दर्शाते हैं। दुनिया के पर्यटन वाले तमाम नगर इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं जबकि उप्र में आज भी पुराने ढर्रे से सोचा–किया जा रहा है। फिर कैसे सुधरेगा इन नगरों का स्वरूपॽ ॥ २०१७ में जब मैंने उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके कार्यालय में तत्कालीन पर्यटन सचिव अवनीश अवस्थी की मौजूदगी में ब्रज के बारे में पावर प्वाइंट प्रस्तुति दी थी‚ तो योगी जी से स्पष्ट शब्दों में कहा कि महाराज! दो तरह का भ्रष्टाचार होता है‚ ‘करप्शन ऑफ डिजाइन' और ‘करप्शन ऑफ इम्पलीमेंटेशन' यानी नक्शे बनाने में भ्रष्टाचार और निर्माण करने में भी भ्रष्टाचार। निर्माण का भ्रष्टाचार तो भारतव्यापी है। पर डिजाइन का भ्रष्टाचार तो और भी गंभीर है यानी तीर्थस्थलों के विकास की योजनाएं बनाने में ही सही समझ और अनुभवी लोगों की मदद नहीं ली जाएगी और उद्देश्य अवैध धन कमाना होगा‚ तो योजनाएं ही नाहक महkवाकांक्षी बनाई जाएंगी। गलत लोगों से नक्शे बनवाए जाएंगे और सत्ता के मद में डंडे के जोर पर योजनाएं लागू करवाई जाएंगी। नतीजतन‚ धर्मक्षेत्रों का विनाश ही होगा‚ विकास नहीं। ॥ जैसे अयोध्या के दर्जनों पौराणिक कुंड़ों की दुर्दशा सुधारने के बजाय अकेले सूर्य कुंड़ के सौंदर्यीकरण पर शायद १४० करोडÃ रुपये खर्च किए जाएंगे जबकि यह कुंड़ सबसे सुंदर और दुरुस्त दशा में है और दो करोडÃ में ही इसका स्वरूप निखारा जा सकता है। पीडÃा के साथ कहना पडÃ रहा है कि योगीराज में ब्रज सजाने के नाम पर प्रचार तो बहुत हुआ‚ धन का आवंटन भी खुलकर हुआ‚ पर कोई भी उल्लेखनीय काम ऐसा नहीं हुआ जिससे ब्रज की संस्कृति और धरोहरों का संरक्षण या जीणाæद्धार इस तरह हुआ हो जैसा विश्व स्तर पर विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। सबसे पहली गलती तो यह हुई है कि जिस‚ ‘उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद' को ब्रज विकास के सारे निर्णय लेने के असीमित अधिकार दिए गए हैं‚ उसमें एक भी व्यक्ति इस विधा का विशेषज्ञ नहीं है। परिषद का आज तक कानूनी गठन ही नहीं हुआ जबकि इसके अधिनियम २०१५ की धारा ३ (त) के अनुसार‚ कानूनन इस परिषद में ब्रज की धरोहरों के संरक्षण के लिए किए गए प्रयत्नों के संबंध में ज्ञान‚ अभिज्ञता और ट्रैक रिकर्ड रखने वाले पांच सुविख्यात व्यक्तियों को लिया जाना था। उनकी सलाह से ही प्रोजेक्ट और प्राथमिकताओं का निर्धारण होना था अन्यथा नहीं जबकि अब तक परिषद में सारे निर्णय‚ उन दो व्यक्तियों ने लिए हैं‚ जिन्हें इस काम अनुभव नहीं है॥। इसी प्रकार इसके अधिनियम २०१५ की धारा ६ (२) के अनुसार परिषद का काम मथुरा स्तर पर करने के लिए जिलास्तरीय समिति के गठन का भी प्रावधान है‚ जिसमें ६ मशहूर विशेषज्ञों की नियुक्ति की जानी थी। (१) अनुभवी लैंडस्केप डिजाइनर व इंटर्पेटिव प्लानर (२) ब्रज क्षेत्र का अनुभव रखने वाले पर्यावरणविद् (३) ब्रज के सांस्कृतिक और पौराणिक इतिहास के सुविख्यात विशेषज्ञ (४) ब्रज साहित्य के प्रतिष्ठित विद्वान (५) ब्रज कला के सुविख्यात मर्मज्ञ (६) ब्रज का कोई सुविख्यात वकील‚ सामाजिक कार्यकर्ता या जनप्रतिनिधि जिसने ब्रज के सांस्तिक विकास में कुछ उल्लेखनीय योगदान दिया हो। इन सबके मंथन के बाद ही विकास की परियोजनाएं स्वीकृत होनी थीं पर जानबूझकर ऐसा नहीं किया गया ताकि मनमानी तरीके से निरर्थक योजनाओं पर पैसा बर्बाद किया जा सके जिसकी लंबी सूची प्रमाण सहित योगी जी को दी जा सकती है‚ यदि वे इन चार वर्षों में परिषद की उपलब्धियों का निष्पक्ष मूल्यांकन करवाना चाहें तो। अज्ञान और अनुभवहीनता के चलते ब्रज का जैसा विनाश इन चार वर्षों में हुआ है‚ वैसा ही पिछले तीन दशकों में‚ हर धर्मक्षेत्र का किया गया है। इसके दर्जनों उदाहरण दिए जा सकते हैं। फिर भी अनुभव से कुछ सीखा नहीं जा रहा। सारे निर्णय पुराने ढर्रे पर ही लिए जा रहे हैं‚ तो कैसे सजेंगी हमारी धर्मनगरियांॽ मैं तो इसी चिंता में घुलता जा रहा हूं। शोर मचाओ तो लोगों को बुरा लगता है और चुप होकर बैठो तो दम घुटता है कि अपनी आंखों के सामने‚ अपनी धार्मिक विरासत का विनाश कैसे हो जाने देंॽ


सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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