बॉन्ड पर नजर (बिजनेस स्टैंडर्ड)

भारत की सरकारी प्रतिभूतियों को एफटीएसई रसेल इमर्जिंग मार्केट्स गवर्नमेंट बॉन्ड इंडेक्स (ईएमजीबीआई) में शामिल किया जा सकता है। यदि ऐसा हुआ तो ऐसे समय में नए विदेशी फंड की आवक को प्रोत्साहन मिलेगा जब भारत सरकार राजकोषीय घाटे की भरपाई के लिए बड़े पैमाने पर ऋण ले रही है। एक बड़े वैश्विक सूचकांक में शामिल किए जाने से भारतीय बॉन्डों की विनिमय दर और उनका यील्ड कर्व (अलग-अलग समय पर परिपक्व होने वाले बॉन्ड की ब्याज दर) भी प्रभावित होगा। इससे बॉन्ड के द्वितीयक बाजार में भी नकदी की स्थिति सुधारने में मदद मिल सकती है। लंदन स्टॉक एक्सचेंज समूह की अनुषंगी एफटीएसई रसेल विश्व स्तर के कई मानक इक्विटी और तयशुदा आय सूचकांकों का प्रबंधन करती है। सोमवार को इस वित्तीय सेवा प्रदाता ने तयशुदा आय और इक्विटी के अपने अद्र्धवार्षिक देश स्तरीय वर्गीकरण में कहा कि सऊदी अरब के साथ भारत को भी ईएमजीबीआई में शामिल करने की निगरानी सूची में रखा है। सूचकांक का अगला अपडेट सितंबर 2021 में आएगा।

जब भी भारत को इसमें प्रवेश मिलेगा यह स्वत: सुनिश्चित हो जाएगा कि रुपये वाली ट्रेजरीज का ब्याज विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के एक नए सेट से तय होगा जो ईएमजीबीआई के पोर्टफोलियो पर नजर रखता है या उस सूचकांक का इस्तेमाल पोर्टफोलियो मानक के रूप में करता है। बालपार्क के अनुमान से सुझाव मिलता है कि भारत जैसे बड़े आकार का बाजार शामिल होने के पहले ही वर्ष आसानी से 10 अरब डॉलर की राशि जुटा सकता है और भविष्य में इसमें और इजाफा होगा। उच्च सरकारी उधारी के कारण बॉन्ड बाजार का प्रतिफल बढ़ रहा है। एफपीआई के बारे में अनुमान है कि वे समेकित बकाया सरकारी ऋण के प्रतिशत के रूप में आकलित भारतीय ऋण की निवेश सीमा को सहन कर जाएंगे। सन 2020-21 के लिए बकाया सरकारी प्रतिभूति भंडार और राज्य विकास ऋण के लिए क्रमश: 6 फीसदी और दो फीसदी की सीमा तय की गई थी। यह राशि लगभग 9.5 लाख करोड़ रुपये है। फिलहाल एफपीआई सीमा के भीतर हैं लेकिन नए बॉन्ड जारी होने पर इसमें इजाफा होता है। निश्चित तौर पर एफपीआई ने बीते तीन वित्त वर्ष में लगातार रुपये में ऋण की बिकवाली की है। सन 2017-18 में आखिरी बार उन्होंने 1.19 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी की थी। सन 2020-21 में 20 मार्च तक एफपीआई ने 51,221 करोड़ रुपये के बॉन्ड बेचे थे जबकि 2019-20 में उन्होंने 48,710 करोड़ रुपये के बॉन्ड की बिक्री की थी।


ईएमजीबीआई में शामिल किए जाने को लेकर एफटीएसई के देश आधारित वर्गीकरण से संंबंधित सलाहकार समिति में चर्चा होगी। इसमें ऐसे बाजार प्रतिभागी शामिल होते हैं जिनके पास तकनीकी विशेषज्ञता और स्थानीय जानकारी होती है। समिति में शामिल करने का आकलन बाजार की गुणवत्ता (नियमन, निपटान परिदृश्य, निपटान मानक, डेरिवेटिव बाजार की मौजूदगी), बाजार का आकार, निरंतरता और पूर्वानुमेयता, लागत की सीमा, स्थिरता, बाजार पहुंच आदि के आधार पर किया जाता है। भारत अधिकांश मानकों पर खरा उतरेगा। सरकार की वित्तीय स्थिति तंग है और ऐसे में पूंजी की आवक अच्छी मानी जाएगी। इससे प्रतिफल और उधारी लागत कम करने में मदद मिलेगी। ऐसी आवक अत्यधिक नकदी वाले द्वितीयक बाजार को और गहरा करती है जो अच्छी बात है। इसके अलावा यह राशि लंबी अवधि तक टिकने वाली हो सकती है।


परंतु यदि एफपीआई की आवक बढ़ती है तो रिजर्व बैंक को रुपये को स्थिर रखने में मशक्कत करनी होगी। मुद्रा कीमतों में उतार-चढ़ाव व्यापार संतुलन के साथ एफपीआई के रुख को प्रभावित कर सकता है। विदेशी मुद्रा पर निर्भरता बढऩे का अर्थ यह भी है कि सरकार को उच्च राजकोषीय मानकों का पालन करना होगा। बाद की तारीख में बड़े पैमाने पर राशि की वापसी वित्तीय स्थिरता को जोखिम में डाल सकती है। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि ऐसा जोखिम न पैदा हो।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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