इंटरनेट आधारित तकनीकी परिवर्तन का हो सही प्रबंधन (बिजनेस स्टैंडर्ड)

अजित बालकृष्णन  

दुनिया भर के मीडिया में इस समय ऐसी खबरें भरी हुई हैं कि कैसे इंटरनेट कंपनियां आम नागरिकों की निजता में घुसपैठ करके भारी मुनाफा कमा रही हैं जबकि सरकारें असहाय होकर देख रही हैं।


निजता का मसला उस समय संकट के स्तर पर पहुंच गया जब यह पता चला कि एक सोशल मीडिया नेटवर्क पर अमेरिका के 8 करोड़ से अधिक मतदाताओं के प्रोफाइल का इस्तेमाल 2013 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों को प्रभावित करने में किया गया। उन चुनावों में डॉनल्ड ट्रंप को जीत मिली थी। इसी प्रकार लोगों का व्यक्तिगत डेटा, जिसका इस्तेमाल इंटरनेट वेबसाइटों द्वारा इंटरनेट सर्फिंग को बेहतर बनाने के लिए किया जाना चाहिए, वही डेटा इन लोगों के निर्णय लेने की क्षमता के लिए खतरा बनता नजर आने लगा।


इन बातों के बीच गौर करें तो क्या अतीत में हुई तकनीकी क्रांतियों के दौरान भी ऐसा कुछ हुआ है जिसने लोगों को इसी प्रकार चिंतित किया हो या फिर यह मानव समाज के लिए ऐसा पहला अवसर है?


इंटरनेट के साथ हमारा मौजूदा अनुभव यही बताता है कि यह इस बात का एक और उदाहरण भर है कि कैसे तकनीकें समाज में काम करती हैं। आज का इंटरनेट और 20वीं सदी के आरंभ की रासायनिक तकनीक इसका उदाहरण हैं। अतीत में समाज के किन तबकों को इन तकनीक से लाभ मिला और किनको नुकसान भुगतना पड़ा?


रासायनिक औद्योगिक क्रांति मानव समाज के लिए कई तरह के लाभ लेकर आई। इसके कारण सस्ते कृत्रिम उर्वरक और कीटनाशक बन सके जिन्होंने खाद्यान्न और सब्जियों के उत्पादन में नाटकीय इजाफा किया। इसके कारण कृत्रिम प्लास्टिक का उत्पादन शुरू हो सका जो कपड़े, फर्नीचर और मकानों की निर्माण सामग्री के लिए कपास, धातु, कांच और लकड़ी जैसे प्राकृतिक पदार्थों का सस्ता विकल्प था। इसने सस्ती औषधि का मार्ग प्रशस्त कर इंसानों को स्वस्थ जीवन जीने में मदद की।


परंतु इन तमाम लाभ के इतर जल्द ही प्रदूषण के रूप में इसका एक और पहलू हमारे सामने आया। सन 1962 में आई रशेल कारसन की पुस्तक 'साइलेंट स्प्रिंग' ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था। किताब में कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण पर्यावरण को हुए नुकसान की व्यापक जानकारी दी गई थी। उन्होंने बताया कि कैसे डीडीटी और अन्य कृत्रिम कीटनाशकों के कारण तमाम कीटों में प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो गई और प्रकृति का पर्यावास गड़बड़ा गया। इससे नए तरह के कीट सामने आने लगे।


रसायन उद्योग ने कारसन पर पलटवार किया। एक प्रमुख कंपनी के हवाले से कहा गया, 'यदि इंसानों ने मिस कारसन की शिक्षाओं का अनुसरण करना शुरू कर दिया तो हम जल्दी ही अंधकार युग में लौट जाएंगे और धरती पर एक बार फिर कीड़ों-मकोड़ों और बीमारियों का राज हो जाएगा।' बहरहाल, कारसन की किताब और इससे मचे हो हल्ले के कारण अमेरिका में डीडीटी के कृषि कार्य में इस्तेमाल पर देशव्यापी प्रतिबंध लगा और पर्यावरण को लेकर एक आंदोलन शुरू हुआ जिसने अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी को तथा अन्य देशों में ऐसे ही संस्थानों को जन्म दिया।


रासायनिक औद्योगिक क्रांति ने समाज पर तमाम अन्य सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव डाले। उदाहरण के लिए सन 1971 में जब मैं आईआईएम कोलकाता से स्नातक होने के बाद काम के लिए मुंबई (तत्कालीन बंबई) आया तो वहां सैकड़ों सूती कपड़ा मिलें फलफूल रही थीं। ये मिलें सबसे बड़ी नियोक्ता होने के साथ-साथ उस दौर की सबसे बड़ी विज्ञापनदाता थीं। उनके मालिक अक्सर अखबारों और पत्रिकाओं के पन्नों पर नजर आते थे।


परंतु एक दशक के भीतर ये मिलें बंद होने लगीं और अखबारों की सुर्खियों में श्रम संगठनों के नेताओं को खलनायक और मिल मालिकों को शोषक ठहराया जाने लगा। सन 1980 के दशक के अंत तक लगभग सभी कपड़ा मिलें बंद हो गईं। पर्यवेक्षकों को यह अंदाजा होने में एक दशक का वक्त लग गया कि दरअसल हुआ क्या था। वास्तव में साड़ी, कमीज और पैंट के लिए नायलॉन और पॉलिएस्टर जैसे कृत्रिम सामान की खोज और चलन बढऩे लगा था और यही कपड़ा मिलों के अंत की वजह बनी।


इन दिनों इंटरनेट क्रांति ऐसे ही सामाजिक बदलाव का सबब बन रही है। प्रबंधन सलाहकार कंपनी मैकिंजी ने तीन मजबूत रुझानों को रेखांकित किया है। मीडिया उद्योग ही वह उद्योग है जहां इंटरनेट तकनीक का प्रसार हुआ। इन तीन रुझानों में पहला है डिजिटलीकरण। इसके तहत अखबारों और पत्रिकाओं को अपने डिजिटल संस्करण पेश करने पड़े। दूसरा रुझान है विभक्त करना: इसकी शुरुआत रोजगार और विवाह के वर्गीकृत विज्ञापनों के अखबारों से अलग होकर एक स्वतंत्र ऑनलाइन कारोबार के रूप में खड़ा होने से हुई। तीसरा रुझान है बिचौलियों के समाप्त होने का। विभिन्न मीडिया हाउस जो अब तक डीलरों, वितरकों, केबल ऑपरेटरों, सिनेमा थिएटरों के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचते थे वे अब इनके बिना सीधे उन तक पहुंच सकते हैं। इन तीनों रुझानों ने मीडिया के उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाया है। इसने उन्हें विविधता और सस्ती सेवाएं प्रदान कीं लेकिन निजता को खतरे की चिंताओं के बीच लंबे समय से स्थापित कारोबार और रोजगार को भी नष्ट किया।


हमने अब इन तीनोंं रुझानों को एक अन्य ऐसे क्षेत्र मेंं देखना शुरू कर दिया है जहां इंटरनेट का व्यापक असर है। वह है: वित्तीय सेवा क्षेत्र। डिजिटलीकरण के कारण नकदी और सिक्कों का इस्तेमाल काफी कम हो गया है। विशिष्ट भुगतान कंपनियां, कर्ज देने वाली कंपनियां और ब्रोकिंग कंपनियों की तादाद बढऩे से विभक्तीकरण में इजाफा हुआ है। क्या पारंपरिक बैंक जल्दी ही उसी तरह अप्रासंगिक होने लगेंगे जैसे एकीकृत मीडिया कंपनियां होने लगीं। क्या हमारी करीबी बैंक शाखाओं की स्थिति भी किताबों की दुकान या सिनेमा हॉल जैसी हो जाएगी?


इंटरनेट क्रांति की ये तीन ताकतें आगे किन उद्योगों को प्रभावित करेंगी? चिकित्सा सेवा? न्याय? क्या बतौर उपभोक्ता हमें यहां भी वैसा ही लाभ मिलेगा जैसा मीडिया के क्षेत्र में चयन बढऩे, आपूर्ति तेज होने और कीमतें कम होने से मिला? परंतु क्या यहां भी रोजगार जाने और स्थानीय चिकित्सक,अधिवक्ताओं और न्यायालयों की आश्वस्ति न मिलने जैसी दिक्कतें आएंगी?


रासायनिक उद्योग से जुड़ी क्रांति के आरंभिक दिनों की तरह मीडिया मेंं भी तमाम संघर्ष उभर सकते हैं लेकिन इस बार चिंता प्रदूषण की नहीं बल्कि निजता की होगी।


पुरानी तकनीकी क्रांतियोंं से हासिल ज्ञान हमें यह राह दिखाएगा कि इंटरनेट क्रांति का मानवता के हित में लाभ कैसे उठाया जा सकता है।


(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं)

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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