लगभग डेढ़ दशक की कोशिशों के बाद चार देशों- भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान- का ‘क्वाड’ (चतुष्क) समूह साकार हो रहा है. चारों देशों के नेता शुक्रवार को समूह की पहली शिखर बैठक में हिस्सा लेंगे, जो महामारी की वजह से ऑनलाइन आयोजित होगी. इस समूह को शुरू में चतुष्क सुरक्षा संवाद के नाम से जाना जाता था और उसका मुख्य उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापारिक और सामरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करना था. लेकिन अब चारों देशों ने इस पहल के उद्देश्यों और लक्ष्यों को बहुआयामी रूप दे दिया है. इस कारण इसका नाम भी चतुष्क फ्रेमवर्क हो गया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के कुछ ही दिन बाद जो बाइडेन ने जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात कर इस शिखर बैठक के आयोजन का आह्वान किया था. बाइडेन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा प्रयासों तथा चतुष्क समूह को साकार करने पर पहले से ही दिलचस्पी दिखायी है. इससे स्पष्ट है कि वे अन्य तीन नेताओं की तरह चीन की चुनौती को लेकर गंभीर हैं.
चीन के आर्थिक और सामरिक वर्चस्व के विस्तार ने अंतरराष्ट्रीय नियमों पर आधारित बहुपक्षीय विश्व के भविष्य के लिए खतरा पैदा कर दिया है. दक्षिण व पूर्वी चीन सागर में तथा अन्य पड़ोसियों के विरुद्ध चीन की सैन्य आक्रामकता पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी हो गया है. कई देशों को भारी कर्ज देकर उसने उनके संसाधनों पर दखल की मुहिम भी छेड़ दी है, जिसे नव-साम्राज्यवाद भी कहा जाता है. वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था में चीन की प्रमुखता के कारण कोरोना काल में दुनिया की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा है तथा चीन ने इस संकट को भी अपने फायदे के लिए भुनाने से परहेज नहीं किया है.
लेकिन यह समझा जाना चाहिए कि यह प्रयास चीन या किसी देश के विरुद्ध नहीं है. चारों देश चीन के साथ वाणिज्य-व्यापार बढ़ाने से लेकर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में सहयोग करने के इच्छुक हैं, लेकिन चीन का इरादा अपनी शक्ति का दायरा बढ़ाने तक सीमित है. चतुष्क की शिखर बैठक में कोरोना महामारी और उससे पैदा हुई मुश्किलों पर चर्चा होगी. भारत विकासशील और निम्न आय के देशों को कोरोना टीका मुहैया कराने के लिए उत्पादन बढ़ाने में अमेरिका, जापान व ऑस्ट्रेलिया के सहयोग का आकांक्षी है.
भारत ने लाखों खुराक कई देशों को भेजा है और कुछ देशों को टीके अनुदान के रूप में भी दिये गये हैं. इस मानवीय सहयोग के लिए विश्वभर में हमारे देश की प्रशंसा हो रही है. यदि टीका निर्माण की क्षमता बढ़ाने में भारत को सहयोग मिलता है, तो चीन के टीका कूटनीति के प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी. दुनिया के सामने मौजूद जलवायु परिवर्तन जैसी भीषण समस्या पर भी चारों नेता चर्चा करेंगे. ऐसे में प्रमुख लोकतांत्रिक देशों द्वारा चतुष्क जैसी साझा पहल का महत्व बहुत बढ़ जाता है.
सौजन्य - प्रभात खबर।
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