मेनका संजय गांधी, पूर्व केंद्रीय मंत्री
ऐसे गर्भाधान से गाय हर अगली पीढ़ी में कमजोर और बीमार है). दूसरा उद्देश्य स्वास्थ्य आपदा रहा है. दो कारणों से ऐसा हुआ है. अनुवांशिक या संचारी रोगों की पहचान के लिए वीर्य की पूरी जांच नहीं की जाती है. दरअसल, किसी भी केंद्र के पास वीर्य की जांच के लिए उपयुक्त उपकरण नहीं हैं. वीर्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए भी निरंतर दबाव रहता है. ऐसे में, अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करने में लापरवाही होती है. एआइ केंद्रों में रखे जानेवाले बैलों की नियमित जांच बेहद आवश्यक है. एक संक्रमित बैल अपने कृत्रिम वीर्य से हजारों गायों में बीमारी फैला सकता है. यह रोगग्रस्त वीर्य गर्भपात या भ्रूण के संक्रमित होने का कारण बन सकता है.
इस संक्रमण से मवेशियों की मौत की दर 90 प्रतिशत तक हो सकती है और यह संक्रमित मवेशियों के वीर्य के कारण हो सकता है. साल 2006 में नीदरलैंड में ब्लू टंग का प्रकोप शुरू हुआ, जो 16 देशों में फैल गया. बड़ी लागत के बाद यह 2010 में समाप्त हो पाया. साल 2015 में यह बीमारी फ्रांस में फिर उभरी और इसका प्रकोप अब भी जारी है. संक्रमण के स्रोत का पता लगाने के लिए ग्लासगो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दोनों प्रकोपों से वायरस के 150 नमूनों के अनुवांशिक अनुक्रमों का विश्लेषण किया और बताया कि वायरस का जीन उल्लेखनीय रूप से पिछली महामारी के नमूने के समान है और यह वर्षों से फ्रीजर में रखे संक्रमित मवेशी वीर्य के उपयोग से आया होगा.
एआइ से फैलनेवाली एक बीमारी लेप्टोस्पायरोसिस है, जो जानवरों और मनुष्यों की एक संक्रामक बीमारी है. मवेशियों में इसके लक्षण हल्के, न दिखनेवाले संक्रमणों से लेकर मृत्यु जितने गंभीर हो सकते हैं. इसमें उच्च गर्भपात दर, बैलों के मूत्र में खून और स्तनपान करानेवाली गायों के दूध में खून देखा गया है. इससे सेप्टीसीमिया, हेपेटाइटिस, नेफ्रैटिस, गर्भपात, समय से पहले जन्म, बांझपन हो सकता है.
रोगाणु वीर्य में फ्रीजिंग और क्रायो संरक्षण तापमान में जीवित रह सकते हैं. आमतौर पर अधिकांश नैदानिक परीक्षणों में बोवाइन हर्पीसवायरस-1 (बीएचवी-1) का पता नहीं चलता है. बीएचवी-1 दुनियाभर में मवेशियों की आबादी में जननांग, श्वसन और न्यूरोलाॅजिकल रोगों का कारण बनता है.
संक्रमित जानवर अपनी प्रतिरक्षा खो देते हैं. इससे कंजेक्टिवाइटिस, प्रजनन संबंधी विकार और नवजात की मृत्यु भी हो सकती हैं. इसके टीकाकरण का बहुत कम प्रभाव है. पॉलीमराइज चेन रिएक्शन (पीसीआर) संदूषित वीर्य में एक दिन के भीतर बीएचवी-1 की पहचान कर सकता है, लेकिन यह भारत में नहीं किया जाता. यहां तक कि टीकाकरण भी दुर्लभ है.
वीर्य में गोजातीय डायरिया वायरस भ्रूण को संक्रमित कर सकता है और इससे एंटरीक रोग हो सकता है और गाय को अन्य रोगजनकों (जैसे बीएचवी-1, पेस्ट्यूरेला या सालमोनीला प्रजाति) के प्रति संवेदनशील बना सकता है, क्योंकि वे अपनी प्रतिरक्षा खो देती हैं. बीवीडीवी वायरस ने उच्च मृत्यु दर के साथ मवेशियों में हेमोरेजिक रोग उत्पन्न किया है. बोवाइन जेनाइटल कैंप्लोबैक्टीरियोसिस भी एक जीवाणु रोग है, जो पशु बांझपन और गर्भपात से संबद्ध है.
यह वेजीनाइटिस, सर्वाइटस, एंडोमेट्रैटिस का कारण बनता है. हिस्टोफिलस सोमनस जीवाणु थ्रोम्बोम्बोलिक मेनिंगोएंसेफलाइटिस नामक बीमारी पैदा करता है. यूरियाप्लाज्मा डायवर्सम गायों में गर्भपात और बांझपन करनेवाला सूक्ष्मजीव है. वीर्य में इस्तेमाल होनेवाले एंटीबायोटिक्स प्रभावी नहीं हैं और रोगजनक हैं, जो अक्सर एआइ के लिए इस्तेमाल होनेवाले बैलों के वीर्य में पाये जाते हैं. संक्रमित जानवर जीवन भर के लिए कैरियर बन जाते हैं.
एक नया वायरस, गोजातीय हर्पीस वायरस टाइप-5, जिसे बीएचवी-5 से अलग किया जाता है, बछड़ों में न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के लिए जिम्मेदार है. ऐसे में हम यह सवाल पूछ सकते हैं- क्या हमारे पशुचिकित्सकों को इन बीमारियों, एआइ बैल के लिए स्वास्थ्य प्रमाणन के मानक तथा प्रमाणीकरण की सत्यनिष्ठा और तकनीकी क्षमता का ज्ञान है? वीर्य को एकत्र करने, प्रसंस्करण करने और भंडारण करने के लिए लागू स्वच्छता के मानक क्या हैं? क्या हमें दूध का सेवन बंद कर देना चाहिए?
सौजन्य - प्रभात खबर।
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