देश की राजधानी दिल्ली की शासन व्यवस्था उप राज्यपाल की कलम से ही चलेगी। केंद्र में सत्तारूढ़ø भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद का हल निकाल लिया है। बुधवार को विपक्ष के भारी हंगामे के बीच राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र (संशोधन) विधेयक २०२१ को राज्यसभा की मंजूरी मिलते ही यह तय हो गया कि दिल्ली के बॉस अब उपराज्यपाल ही होंगे।
विधेयक को लोकसभा २२ मार्च को ही पास कर चुकी थी। विधेयक में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि दिल्ली में सरकार का मतलब उप राज्यपाल है। इसके कानून बनने से दिल्ली सरकार के लिए किसी भी कार्यकारी फैसले से पहले उप राज्यपाल की अनुमति लेना आवश्यक होगा।
विधेयक का विरोध कर रहे विपक्ष के इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग खारिज होने के बाद मतविभाजन में इसके ४५ के मुकाबले ८३ मतों से पारित होते ही विधेयक ने कानून बनने की राह की अंतिम बाधा पार कर ली। विधानसभा चुनावों में एकतरफा जीत हासिल करके दिल्ली में सत्तारूढ़ø अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए यह भारी झटका है। वह पहले दिन से ही अपने अधिकारो को लेकर केंद्र सरकार से भिड़Ãी हुई थी।
उसका कहना था केंद्र के दखल पर उप राज्यपाल उसे काम नही करने देते। उप राज्यपाल का तर्क था कि सरकार अपनी मनमानी करना चाहती है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया जहां पांच जजों की बेंच ने जुलाई २०१८ को संविधान के अनुच्छेद २३९ एए की समीक्षा करते हुए जिसमें दिल्ली को विशेष दर्जा देने का प्रावधान किया गया था‚ यह स्पष्ट कर दिया था कि उप राज्यपाल को सरकार की सलाह और सहयोग से काम करना होगा। विवाद यहां थम जाना चाहिए था लेकिन इसकी परिणति बुधवार को पारित विधेयक के रूप में हुई। आप सहित पूरा विपक्ष केंद्र के इस फैसले के विरोध में है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे लोकतंत्र के लिए दुखद बताया है ।
यद्यपि गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्ड़ी का कहना है कि उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर पैदा हुए संदेह और भ्रांतियों को दूर करने के लिए ऐसा किया गया है लेकिन आप का कहना है कि विधानसभा चुनावो में बुरी तरह हारी भाजपा इसके जरिए दिल्ली में पिछले दरवाजे से शासन करना चाहती है।
सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।
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