नाम की दिल्ली सरकार ( नवभारत टाइम्स)

एनसीटी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल, 2021 बुधवार 24 मार्च को राज्यसभा से भी पास हो गया। लोकसभा ने इस पर 22 मार्च को ही मुहर लगा दी थी। इस बदलाव का मकसद दिल्ली सरकार को पूरी तरह उप-राज्यपाल के अधीन कर देना है। अपने हर फैसले पर दिल्ली सरकार को उनकी 'राय' लेनी पड़ेगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि यह कानून उनकी सरकार को दबाने के लिए बनाया जा रहा है। ज्यादातर विपक्षी दलों की भी यही राय है। इसीलिए राज्यसभा में 12 विपक्षी दलों ने विधेयक का विरोध किया, जबकि नौ ने लोकसभा में इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। विपक्ष का कहना है कि यह कानून देश की संघीय शासन व्यवस्था की नींव पर चोट करता है और असंवैधानिक है। लेकिन बीजेपी के मुताबिक, इसका मकसद संविधान के दायरे के अंदर रहते हुए दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल की शक्तियों को लेकर भ्रम की गुंजाइश खत्म करना है ताकि राजकाज में कोई दिक्कत न आए। इसके लिए उसने 2018 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया है, जिसमें उसने कहा था कि दिल्ली सरकार को रोजमर्रा के काम के लिए उप-राज्यपाल से 'सहमति' लेने की जरूरत नहीं है।




बीजेपी कह रही है कि इस फैसले से जो 'अनिश्चितता' और 'भ्रम' बना, उसे खत्म करने के लिए उसकी सरकार को यह कानून बनाना पड़ रहा है। उस वक्त दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच शक्तियों को लेकर टकराव चल रहा था, इसलिए मामला सुप्रीम कोर्ट गया। यह भी सच है कि उस फैसले से दिल्ली सरकार के अधिकार सीमित हुए थे। लेकिन तब से अबतक दोनों सरकारों के बीच ऐसा कोई मसला नहीं दिखा है, इसलिए पूछा जा रहा है कि केंद्र को अचानक यह कानून क्यों बनाना पड़ा? कुछ लोग इसे दिल्ली के जनादेश का अपहरण भी बता रहे हैं, क्योंकि उससे निकली सरकार की जवाबदेही अब जनता से ज्यादा उप-राज्यपाल के प्रति होगी। केंद्र के इस कानून से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने-दिलाने का मामला अर्थहीन हो गया है। ध्यान रहे, यह वादा दिल्ली की तीनों प्रमुख पार्टियां- आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस हर चुनाव में करती आई हैं। दूसरे, संघीय व्यवस्था पर चोट की जो बात विपक्ष ने कही है, वह भी बेवजह नहीं है। बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए के सत्ता में आने के बाद से यह सवाल अक्सर उठता रहा है। केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के बीच अधिकारों को लेकर टकराव भी हो रहे हैं। विपक्ष शासित राज्यों ने केंद्र पर सीबीआई और एनआईए जैसी अपनी एजेंसियों के जरिये उनके कामकाज में अड़ंगा लगाने की बात कही है जबकि केंद्र ने करप्शन मामलों की जांच में एजेंसियों के साथ सहयोग न करने का आरोप उनपर लगाया है। ऐसे में एनसीटी बिल के बाद सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्ष के बीच टकराव और तीखा होगा, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए अच्छी खबर नहीं है।

सौजन्य -  नवभारत टाइम्स।


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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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