कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के केंद्रीय बोर्ड ने गत सप्ताह यह अनुशंसा की कि चालू वित्त वर्ष के लिए 8.5 फीसदी की ब्याज दर बरकरार रखी जाए। इस ब्याज का भुगतान तभी किया जाएगा जब वित्त मंत्रालय इस अनुशंसा को स्वीकार कर लेगा। स्पष्ट है कि ईपीएफ के 5 करोड़ योगदानकर्ताओं को उनके अंशदान पर मिलने वाला प्रतिफल किसी भी अन्य तयशुदा आय योजना की तुलना में अधिक है। उदाहरण के लिए भारतीय स्टेट बैंक 1-2 वर्ष की सावधि जमा योजनाओं पर 5 फीसदी ब्याज दे रहा है। 10 वर्ष के सरकारी बॉन्ड पर ब्याज दर 6.2 फीसदी है और 2020 में तो यह और भी कम थी। इसके अलावा ईपीएफ के ब्याज से होने वाली आय कर मुक्त है। यह बात इसके प्रतिफल को और बेहतर बनाती है। परंतु शायद लंबे समय में यह स्थायित्व भरा न हो।
चालू वर्ष में ईपीएफओ से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा शेयर कीमतों में तेजी की वजह से आया है। शुरुआत में ईपीएफ की धनराशि को शेयर बाजार में लगाने को लेकर अनिच्छा देखने को मिली थी। बहरहाल अब यह केवल इस वजह से उच्च प्रतिफल दे पा रहा है क्योंकि शेयर बाजार में तेजी है। लंबी अवधि के फंड को शेयर बाजार में निवेश करना समझ में आता है क्योंकि शेयर आमतौर पर अन्य परिसंपत्तियों, खासकर तयशुदा आय वाली योजनाओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि शेयर हर वर्ष अन्य परिसंपत्तियों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। ऐसा भी वक्त आता है जब शेयर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव आता है और उसका प्रतिफल कम रहता है। समग्र प्रतिफल भी इस बात पर निर्भर करता है कि कैसे शेयरों का चयन किया गया। गत वर्ष ऐसी खबरें आई थीं कि ईपीएफओ को शेयर बाजार में नुकसान उठाना पड़ा। ऐसा आंशिक तौर पर इसलिए हुआ था क्योंकि सरकार समर्थित एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स में काफी अधिक निवेश किया गया था। देश के सरकारी उपक्रमों को मूल्यवद्र्घन के लिए नहीं जाना जाता। ऐसे में सरकार की विनिवेश योजना का समर्थन करने के बजाय इस सेवानिवृत्ति फंड प्रबंधक का लक्ष्य यह होना चाहिए कि सबस्क्राइबर को अधिकतम जोखिम रहित प्रतिफल दिलाया जा सके।
व्यापक स्तर पर जहां सेवानिवृत्ति संस्थान ने चालू वर्ष के लिए 8.5 फीसदी की उच्च ब्याज दर की अनुशंसा की है, वहीं उसे भविष्य में भी अपने सबस्क्राइबर की अपेक्षाओं का ध्यान रखना होगा क्योंकि आगे चलकर प्रतिफल व्यापक आर्थिक हकीकतों से प्रभावित हो सकता है। अतीत में वित्त मंत्रालय ने यह सुझाव भी दिया है कि दरों को बाजार के अनुरूप किया जाए। तयशुदा आय वाली योजनाओं के संदर्भ में देखें तो यह जानना जरूरी है कि देश की अर्थव्यवस्था में बुनियादी बदलाव आ रहा है। मुद्रास्फीति को लक्षित करने का लचीला तरीका अपनाने के बाद औसत मुद्रास्फीति दर और कीमतों में अस्थिरता दोनों में कमी आई है। परिणामस्वरूप संभव है कि नॉमिनल ब्याज दर 8.5 फीसदी से काफी कम रहे। हालांकि उच्च राजकोषीय घाटे के कारण निकट भविष्य में ब्याज दरें ऊपर जा सकती हैं।
सेवानिवृत्ति फंड प्रबंधक लंबी अवधि में प्रतिफल बढ़ाने के लिए शेयर आवंटन बढ़ाने का निर्णय ले सकता है। बहरहाल, प्रतिफल को बाजार से जोडऩे के लिए ईपीएफओ को पारदर्शिता बढ़ानी होगी। उसे नियमित अंतराल पर अपने निवेश और प्रदर्शन की जानकारी सबस्क्राइबर को देनी चाहिए। यदि सूचनाएं सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होंगी तो उनका विश्लेषण और उन पर बहस हो सकेगी। इससे फंड प्रबंधक को भी बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलेगी। सालाना ईपीएफ प्रतिफल लंबे समय तक बाजार से दूर नहीं रह सकते। पारदर्शिता और खुलासे के बेहतर मानक इस बदलाव को आसान बनाएंगे।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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