सुधींद्र कुलकर्णी
वर्ष 2017 में मैं चीन की यात्रा पर उसके दक्षिणी प्रांत युन्नान में गया था, जिसके हमारे पूर्वोत्तर क्षेत्र से ऐतिहासिक संबंध हैं। मेरे साथ एक युवा, सुशिक्षित और स्पष्टवादी चीनी दुभाषिया और गाइड थे। जब मैंने उनसे उनके काम के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि जब मैं विदेशी मेहमानों को नहीं घुमाता, तब युन्नान सरकार के विदेशी संबंध विभाग में अनुवादक का काम करता हूं। पर साल में दो महीने के लिए मुझे दूर-दराज के गरीब गांवों में सरकार के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के लिए भेजा जाता है। हैरान होकर मैंने पूछा, 'क्या आपको काम करना पसंद है?' उन्होंने जवाब दिया, 'निश्चय ही, चीन समृद्ध हो गया है, पर अब भी बहुत से लोग गरीब हैं। हमारे राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस दशक के अंत से पहले अति निर्धनता से छुटकारा पाने के चीन के संकल्प की घोषणा की है। इस मिशन पर काम करने के लिए प्रतिबद्ध, मेहनती और कार्य कुशल पार्टी कार्यकर्ताओं को भेजा जाता है।'
उसके करीब चार साल बाद विगत 25 फरवरी को शी जिनपिंग ने, जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव भी हैं, घोषणा की कि गरीबी के खिलाफ अपनी लड़ाई में चीन ने पूर्णतः जीत हासिल की है। पिछले आठ वर्षों में बचे हुए सभी 10 करोड़ ग्रामीणों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला गया है तथा 1,30,000 गांवों को गरीबी सूची से हटा दिया गया है। देंग श्योपिंग द्वारा माओ त्से तुंग की कट्टर कम्युनिस्ट नीतियों से पीछा छुड़ाते हुए बाजार समर्थित नीतियां लागू करने के बाद से चीन ने अपनी 80 करोड़ जनता को गरीबी से बाहर निकाला है। 1980 के दशक में चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी 200 डॉलर से कम था, जो बांग्लादेश से भी नीचे था, पर आज चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी 10,000 डॉलर से अधिक है। विश्व बैंक ने भी माना है कि पिछले चार दशकों में चीन ने वैश्विक गरीबी में 70 प्रतिशत से अधिक की कमी की है। दूसरा कोई देश इतने कम समय में इतने लोगों को गरीबी से बाहर नहीं निकाल सका है। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में एक लक्ष्य 2030 तक हर जगह से हर तरह की गरीबी को खत्म करना है। चीन ने निर्धारित समय से दस वर्ष पहले ही यह लक्ष्य पूरा कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने वैश्विक गरीबी में कमी के लिए इसे 'सबसे महत्वपूर्ण योगदान' कहकर चीन की सफलता को स्वीकार किया है।
दुर्भाग्य से भारत की राजनीति और मीडिया में इस पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई। पिछले साल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गलवां घाटी में दुखद संघर्ष ने व्यापक रूप से चीन-विरोधी भावना पैदा की है। भारत के साथ अपने संबंधों में विश्वास बहाली के लिए चीन को निश्चित रूप से बहुत कुछ करना होगा। लेकिन विभिन्न मोर्चों पर चीन की सफलता के प्रति हमें अपनी आंखें नहीं मूंदनी चाहिए। सत्ता संभालने के तुरंत बाद शी जिनपिंग ने गरीबी उन्मूलन को अपनी शीर्ष राजनीतिक प्राथमिकता में रखा। माओ के बाद अपनी शानदार आर्थिक विकास के बावजूद चीन आर्थिक विषमता से जूझता रहा। यहां तक कि आज भी आय का अंतर ज्यादा है। इसलिए निचले पायदान पर रहने वालों की जीवन स्थिति में सुधार एक ऐसे देश के लिए राष्ट्रीय आवश्यकता बन गया, जो खुद को समाजवादी कहता है और कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित है। इसके कम्युनिस्ट शासकों के लिए गरीबी का जारी रहना राजनीतिक रूप से अस्थिर करने वाला था, क्योंकि यह शासन करने की उसकी वैधता को कम करता।
जिनपिंग के लिए व्यक्तिगत रूप से गरीबी उन्मूलन अभियान का भावनात्मक और राजनीतिक, दोनों उद्देश्य है। बेशक वह राजकुमार माने जाते हैं, पर युवावस्था में उन्होंने भी गरीबी का अनुभव किया है। उनके पिता कम्युनिस्ट पार्टी की पहली पीढ़ी के शीर्ष नेता उप-प्रधानमंत्री थे। सांस्कृतिक क्रांति के दौरान माओ द्वारा उनके पिता को कैद करके जब सताया गया, तब शी को सात साल तक दूर-दराज के पहाड़ी गांव में गुफा में रहना पड़ा। जमीनी स्तर उन्होंने पिछड़ापन और लोगों की पीड़ा देखी थी। इसलिए राष्ट्रपति बनने पर गरीबी उन्मूलन उनका व्यक्तिगत जुनून बन गया। गरीबी उन्मूलन के लिए चीन ने जो तरीका अपनाया, उसमें भारत के लिए कुछ महत्वपूर्ण सबक हैं, हालांकि दोनों देशों की राजनीतिक एवं शासकीय स्थिति बिल्कुल भिन्न है। पहला सबक यह कि शीर्ष स्तर पर मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना परिवर्तन हासिल नहीं किया जा सकता, लोगों व सरकार के एकजुट प्रयास तथा अभिनव रणनीति से ही ऐसा संभव है। जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी की पूरी ताकत जुटाई और सरकार ने दुनिया का सबसे बड़ा गरीबी उन्मूलन अभियान चलाया।
खुद जिनपिंग ने करीब 80 जगहों की यात्राएं कीं, जिनमें से कई सुदूर गांवों की थीं। उनके वीडियो यूट्यूब पर देखे जा सकते हैं। यहां एक प्रासंगिक सवाल पूछा जा सकता है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सात साल में कितने गांवों का दौरा किया है। चीन ने पिछले आठ वर्षों में 250 अरब डॉलर का निवेश गरीबी उन्मूलन पर किया। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 30 लाख से ज्यादा पार्टी कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों को शहरों, कस्बों और गांवों में गरीबी से लड़ने के लिए भेजा गया। जिनपिंग गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम में भ्रष्टाचार खत्म करने के बारे में लगातार बोलते रहे और पार्टी ने हजारों अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की।
इस अभियान की सफलता में लक्षित गरीबी उन्मूलन रणनीति का काफी योगदान रहा। इसने न केवल गरीब गांवों की पहचान की, बल्कि गरीब परिवारों और व्यक्तियों को लक्षित किया। फिर डेटा एनालिटिक्स और अन्य डिजिटल तकनीकों का उपयोग करते हुए स्थानीय नेताओं को कृषि सुधार, स्थानीय और घर-आधारित उद्योगों, सुनिश्चित निवेश और बाजार समर्थन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कौशल विकास पर आधारित कार्यक्रमों की योजना बनाने और लागू करने के लिए कहा गया। बेशक चीन लोकतांत्रिक देश नहीं है, जो उसकी सबसे बड़ी खामी है। फिर भी आधी सदी से कम समय में यह एक गरीब देश से दुनिया का दूसरा सबसे समृद्ध देश बन गया है। हम भारतीयों को उसकी यह सफलता स्वीकार करनी चाहिए। हमें उनसे सीखना चाहिए, जो गरीबी के खिलाफ हमारी लड़ाई में सबसे उपयुक्त हैं।
सौजन्य - अमर उजाला।
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