पाकिस्तान सेना प्रमुख और उनकी दोस्ती की बात! (जनसत्ता)

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने भारत के साथ रिश्तों को लेकर अचानक से जो रुख बदला है और दोस्ती का हाथ बढ़ाने की बातें की हैं, वह अच्छी बात है और ऐसा होना भी चाहिए। लेकिन जनरल बाजवा भारत के खिलाफ जिस कट्टर रुख के लिए जाने जाते हैं, उसे देखते हुए उनकी ये बातें हैरानी ज्यादा पैदा करती हैं। पिछले कुछ समय में प्रधानमंत्री इमरान खान भी इसी तरह की बातें करके यह जताते रहे हैं कि पाकिस्तान भारत के साथ अच्छे संबंधों का पक्षधर है।

इमरान खान ने जब सत्ता संभाली थी, तब भी वे बढ़-चढ़ कर ऐसी बातें करते थे और मौका मिलते ही यह कहने से चूकते नहीं थे कि रिश्तों की बेहतरी के लिए अगर भारत एक कदम आगे बढ़ेगा तो पाकिस्तान दो कदम बढ़ेगा। लेकिन वे अपने वादों और दावों पर कितने खरे उतरे, यह किसी से छिपा नहीं है। सवाल है कि आखिर पाकिस्तान का अचानक से हृदय परिवर्तन कैसे हो गया, क्यों उसे लगने लगा कि पड़ोसी देश भारत के साथ दोस्ताना रिश्ते रखने चाहिए। क्या दुनिया के सामने अपनी धूमिल छवि को साफ करने के लिए वह ऐसा कर रहा है, या फिर वह किसी के दबाव में इस रणनीति पर चल रहा है?

हाल में इस्लामाबाद संवाद में विदेशी प्रतिनिधियों और राजनयिकों के समक्ष अपने संबोधन में पाक सेना प्रमुख ने भारत के साथ बातचीत शुरू करने और बेहतर रिश्ते बनाने की बातें कह कर पाकिस्तान को एकदम पाक साफ बताने की कोशिश की है। यह कोई छिपी बात नहीं है कि लंबे समय से पाकिस्तान भारत को गहरे जख्म देता रहा है। ऐसे में अगर अब वह शांति की दुहाई देने लगे तो संशय पैदा होना लाजिमी है। आखिर भारत कैसे भूल सकता है पुलवामा की घटना को, या संसद भवन से लेकर मुंबई तक में कराए गए आतंकी हमलों को।


इन सब हमलों के आरोपी आज भी पाकिस्तान में सेना और आइएसआइ के संरक्षण में मौज काट रहे हैं। भारत ने सभी आरोपियों के खिलाफ पाकिस्तान को पुख्ता सबूत दिए, लेकिन किसी के खिलाफ भी पाकिस्तान ने आज तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं की, न ही हमलों के आरोपियों को भारत के हवाले किया। ऐसे में पाकिस्तान कैसे यह कल्पना कर रहा है कि भारत पिछली बातों को भूल कर अब आगे बढ़े और उसके साथ अच्छे रिश्ते बनाए!


अगर जनरल बाजवा की मंशा वाकई साफ होती तो वे अच्छे संबंधों की बातों के बीच कश्मीर का राग नहीं अलापते। कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है, इसमें दुनिया के किसी को कोई संशय होना ही नहीं चाहिए। बल्कि पाकिस्तान को चाहिए कि वह कश्मीर में आंतकियों की घुसपैठ करवाए। पाकिस्तान हमेशा से कश्मीर को आड़ बना कर वार्ताओं को पटरी से उतारता रहा है और भारत के शांति प्रयासों के जवाब में करगिल युद्ध जैसे घाव दिए हैं। पाक सेना की निगरानी में चलने वाले सीमापार आंतकवाद और संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाओं में हजारों निर्दोष भारतीय मारे गए हैं।

आखिर भारत इन सब बातों को कैसे भुला सकता है! दरअसल, पाकिस्तान इस वक्त वित्तीय कार्रवाई बल (एफएटीएफ) के जाल में फंस चुका है। उसने अपने यहां मौजूद आतंकियों के नेटवर्क का सफाया नहीं किया तो जल्दी ही उसे निगरानी सूची से हटा कर काली सूची में डाल दिया जाएगा। इससे उसे हर तरह की विदेशी मदद मिलना बंद हो जाएगी। घरेलू मोर्चे पर इमरान सरकार पहले ही संकटों में घिरी है। विपक्षी दलों के प्रदर्शनों ने सरकार की नींद उड़ा रखी है। अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठ चुका है। इसलिए अब बाजवा को भारत के साथ अच्छे रिश्तों का इल्म हुआ लगता है।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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