जोड़-तोड़ के नतीजे तय करेंगे राष्ट्रीय दलों का भविष्य (पत्रिका)

के.एस. तोमर

पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में होने वाले विधानसभा चुनाव देश की भावी राजनीति की दिशा तय करेंगे। इन चुनाव परिणामों से ही तय होगा कि भाजपा दक्षिण में आगे बढ़ पाएगी या नहीं और अब कांग्रेस की स्थिति क्या रहेगी? उत्तर में अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद भाजपा अब दक्षिण में अपनी विजय यात्रा आगे बढ़ाने कीकोशिश कर रही है, क्योंकि वह सिर्फ कर्नाटक तक ही सीमित नहीं रहना चाहती। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल के चुनावी मैदान में चार सांसदों को टिकट देकर पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी ममता बनर्जी को मात देने के लिए कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती। अगर कांग्रेस केरल और पुडुचेरी में चुनाव नहीं जीत पाती है, तो यह राहुल गांधी के लिए शुभ संकेत नहीं होगा। केरल और पश्चिम बंगाल में वाम दलों का खराब प्रदर्शन उन्हें राष्ट्रीय राजनीति से और दूर कर सकता है।

भाजपा ने केरल में मेट्रोमैन 88 वर्षीय श्रीधरन को चुनाव मैदान में उतार कर साफ कर दिया है कि पार्टी ने मार्गदर्शक मंडल के सेवानिवृत्ति के नियमों को भी ताक पर रख दिया है। तमिलनाडु में द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन भाजपा के सामने है, जहां कांग्रेस द्वारा 40 सीटें मांगने पर द्रमुक उसे 25 सीटों पर चुनाव लडऩे दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की करीबी रही शशिकला द्वारा राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा के बाद तमिलनाडु में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या उनके समर्थक अन्नाद्रमुक के उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे?

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता तरुण गोगोई के निधन से असम में कांग्रेस के लिए चुनाव जीतना बड़ी चुनौती है। प्रियंका गांधी द्वारा असम के चाय बागानों में चाय की पत्तियां चुनना स्थानीय लोगों को लुभा पाया या नहीं, यह तो चुनाव नतीजे ही बता पाएंगे। कांग्रेस ने ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआइयूडीएफ), सीपीआइ, सीपीआइ (एम), सीपीआइ(एमएल) और आंचलिक गण मोर्चा के साथ मिल कर महागठबंधन बनाया है। भाजपा से अलग होकर बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) भी इस गठबंधन में शामिल हो गया है। उधर असम गण परिषद (एजीपी), यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) और गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी) को साथ लेकर भाजपा 100 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। समूचे देश की निगाहें इस वक्त प. बंगाल के चुनावों पर टिकी हैं। इस बीच भारतीय किसान यूनियन नेता राकेश टिकैत के सिंगूर जाने पर बहस छिड़ी है, क्योंकि उन्होंने किसानों से सीधे ही भाजपा को सबक सिखाने की अपील की है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक)

सौजन्य - पत्रिका।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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