कोविड-19 संक्रमण के नए मामलों में बढ़ोतरी के बीच सरकार ने देश में टीकाकरण कार्यक्रम के लिए नए नियमों और कार्यक्रम की घोषणा की है। आगामी 1अप्रैल से हर वह वयस्क व्यक्ति टीका लगवा सकेगा जिसका जन्म 1 जनवरी, 1977 के बाद हुआ है। यानी देश की आबादी का पांचवां हिस्सा टीकाकरण का पात्र होगा। पहले इस आयु समूह के लोग तभी टीका लगवा सकते थे जब उन्हें अन्य घातक बीमारियां हों। सरकार को आशा है कि इससे टीकाकरण कार्यक्रम तेज करने में मदद मिलेगी। अब तक टीके की पांच करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं जबकि छह करोड़ खुराक निर्यात की गई हैं। टीकाकरण की धीमी गति समस्या पैदा कर सकती है क्योंकि देश में प्रवेश के मानकों के शिथिल होने के कारण 18 राज्यों में कोरोना के नए प्रकार आ चुके हैं। पंजाब जैसे राज्यों में हाल ही में संक्रमित पाए गए लोगों में कोरोना का जो जीनोम मिला है वह ब्रिटेन का तेज प्रसार वाला प्रारूप है। एक चिंता यह भी है कि महाराष्ट्र में कोविड के मामलों का तेज प्रसार देश में ही विकसित कोरोनावायरस की नई किस्म के कारण न हो रहा हो। प्रतिदिन होने वाला टीकाकरण कई बार 30 लाख का स्तर पार कर रहा है लेकिन अगर कम से कम शहरी इलाकों में जल्द हालात सामान्य करने हैं तो रोजाना कम से कम 50 लाख टीके लगाने होंगे।
टीकाकरण के लिए उम्र कम करना अच्छा कदम है लेकिन सवाल यह भी है कि क्या टीकों की आपूर्ति को देखते हुए नई व्यवस्था का प्रबंधन हो सकेगा। भारतीय टीका निर्माता पहले ही सऊदी अरब, मोरक्को और ब्रिटेन जैसे देशों को वादे के मुताबिक टीका उपलब्ध कराने में नाकाम रहे हैं। चिंता यह भी है कि टीकाकरण के नए कार्यक्रम की शुरुआत के बाद कहीं दूसरी खुराक तय समय में उपलब्ध कराने में दिक्कत न आए। ऐसे में बहुत संभव है कि सरकार का कोविशील्ड वैक्सीन की दूसरी खुराक लगाने की अवधि पहली खुराक के बाद आठ से 12 सप्ताह बाद करने का निर्णय केवल वैज्ञानिक कारणों से न हो। इसका संबंध टीके की उपलब्धता से भी हो सकता है। नियम में बदलाव के बाद टीके की मांग बढ़ेगी और सरकार को आपूर्ति बढ़ाने पर काम करना होगा।
टीके की आपूर्ति बढ़ाने के मामले में सरकार काफी कुछ कर सकती है। सबसे पहले, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ किए गए अनुबंध का दोबारा अवलोकन कर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उसे हर खुराक पर इतना मार्जिन मिले कि वह न केवल टीके का उत्पादन बरकरार रखे बल्कि उसे बढ़ाने के लिए भी प्रोत्साहित हो। सरकार को यह भी जांचना चाहिए कि आखिर क्यों भारत बायोटेक का टीका पर्याप्त तादाद में तैयार नहीं हो रहा है। अब तक कोवैक्सीन की बहुत कम खुराक दी जा रही है। यदि जरूरत पड़े तो अमेरिका से सबक लिया जा सकता है जहां सरकार ने औषधि निर्माता कंपनी मर्क से कहा कि वह अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनी फाइजर द्वारा निर्मित टीकों का उत्पादन करे ताकि फिलहाल लाइसेंसशुदा दोनों टीकों का उत्पादन किया जाए। अंत में फाइजर, स्पूतनिक-5 और जॉनसन ऐंड जॉनसन समेत दुनिया भर में मंजूरी प्राप्त टीकों को भी तेजी से मंजूरी दी जानी चाहिए ताकि वे निजी क्षेत्र के बाजार में उतर सकें। भारत टीकाकरण को लेकर पुराने नियमों और समयसीमा के साथ कोरोना की दूसरी लहर का सामना नहीं कर सकता। बतौर टीका निर्माता वह शेष विश्व के प्रति अपनी जवाबदेही के निर्वहन में भी पीछे नहीं रह सकता। इकलौता विकल्प यही है कि आपूर्ति बढ़ाने के लिए बाजार के संकेतों और सब्सिडी का इस्तेमाल किया जाए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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