कोरोना ने बिगाड़ी राज्यों की वित्तीय सेहत (अमर उजाला)

सतीश सिंह

बिहार, छतीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड ने हाल ही में बजट पेश किए हैं। इन राज्यों की मौजूदा वित्तीय स्थिति और उनके बजटीय प्रावधानों से साफ हो जाता है कि कोरोना ने राज्यों में आर्थिक संकट बढ़ाया है और इनकी आमदनी कम हुई है, जबकि खर्च बढ़ा है। इससे राजकोषीय घाटा बढ़ा है। इन राज्यों का राजकोषीय घाटा जीडीपी के परिप्रेक्ष्य में 4.5 प्रतिशत के स्तर तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि, पेश किए गए बजट यानी वित्त वर्ष 2021-22 के लिए जीडीपी के परिप्रेक्ष्य में औसत राजकोषीय घाटा 3.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान के अनुसार इन राज्यों का वित्तीय घाटा 5.8 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच सकता है, जबकि आगामी वित्त वर्ष में यह घटकर 5.0 लाख करोड़ रुपये रह सकता है। हालांकि सभी राज्यों की आर्थिक स्थिति पर कोरोना महामारी का प्रभाव एक समान नहीं पड़ा है। किसी राज्य में राजकोषीय घाटे का स्तर ज्यादा रहा है, तो किसी में कम। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए वास्तविक रूप में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8.00 प्रतिशत संकुचन का अनुमान लगाया है, जबकि नॉमिनल आधार पर इसके 3.8 प्रतिशत संकुचित होने का अनुमान लगाया गया है। हालांकि, वित्त वर्ष 2021-22 के लिए पेश किए गए केंद्रीय बजट में 14.4 प्रतिशत की दर से विकास होने का अनुमान लगाया गया है। 


कुछ राज्यों ने चालू वित्त वर्ष में, वित्त वर्ष 2019-2020 के मुकाबले नॉमिनल सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का अनुमान उदारता से लगाया है, जिसका प्रभाव प्रति व्यक्ति जीएसडीपी पर दृष्टिगोचर हो रहा है। कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 में वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना में प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में 10,000 रुपये से अधिक की वृद्धि हो सकती है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर वित्त वर्ष 2020-2021 में वित्त वर्ष 2019-2020 के बनिस्बत प्रति व्यक्ति जीडीपी में लगभग 7,200 रुपये की गिरावट दर्ज की जा सकती है। इस प्रकार, राज्यों के आंकड़ों और एनएसओ के आंकड़ों में कहीं-कहीं विरोधाभास परिलक्षित होता है। कोरोना काल में सीजीएसटी और एसजीएसटी से राज्यों की कमाई उम्मीद के अनुरूप नहीं रही है। सीजीएसटी और एसजीएसटी से होने वाली कमाई संशोधित बजटीय अनुमान से 21.2 प्रतिशत कम रही है। इतना ही नहीं, कच्चे तेल और उससे बने उत्पादों पर लगाए जाने वाले वैट और बिक्री कर से होने वाली कमाई भी बजटीय अनुमान से 14.7 प्रतिशत कम रही है। 


कमाई में हो रही कमी की भरपाई के लिए राज्यों ने खर्च में कटौती की है और उधारी का दामन थामा है। पूंजीगत खर्च में राज्यों द्वारा लगभग 11.3 प्रतिशत की कटौती की गई है। बावजूद इसके, वित्त वर्ष 2019-20 से वित्त वर्ष 2020-21 में इस मद में 6.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जिसे अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत माना जा सकता है, क्योंकि पूंजीगत खर्च आमतौर पर आधारभूत संरचना को मजबूत करने के लिए किए जाते हैं, जिसकी फिलवक्त बहुत ज्यादा जरूरत है। कोरोना काल में केंद्र एवं राज्यों की सरकारों ने स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुसंधान एवं शोध के महत्व को अच्छी तरह से समझ लिया है। स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत बनाकर ही कोरोना वायरस या फिर इन जैसी अन्य आपदाओं से मुकाबला किया जा सकता है। इधर, भारतीय रिजर्व बैंक ने ‘राज्य वित्त-बजट 2020-21 का एक अध्ययन’ में अनुमान लगाया है कि आने वाले कुछ साल राज्यों के लिए बेहद ही चुनौतीपूर्ण रहेंगे। लिहाजा, राज्यों को प्रभावी रणनीतियों की मदद से खुद को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना होगा। 

सौजन्य - अमर उजाला।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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