हर किसी को सावधान रहने की जरूरत इसलिए है क्योंकि बात केवल खुद को कोरोना संक्रमण से बचाने की ही नहीं बल्कि उद्योग-व्यापार पठन-पाठन आदि से जुड़ी गतिविधियों को पहले जैसी स्थिति में लाने की भी है ।
यह गंभीर चिंता की बात है कि कोरोना संक्रमण के जो मामले 10 हजार प्रतिदिन तक पहुंच गए थे, वे अब बढ़कर 20 हजार रोजाना से अधिक हो गए हैं। गत दिवस ऐसे मामले 23 हजार से अधिक दर्ज किए गए। इनमें से अकेले 14 हजार महाराष्ट्र के हैं यानी आधे से अधिक। साफ है कि महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण बेकाबू सा होता दिख रहा है। इसी के साथ ऐसे राज्यों की संख्या बढ़ती जा रही है, जहां कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात आदि के बाद अब हरियाणा और दिल्ली में भी कोरोना के मामले जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, उससे इस आशंका ने सिर उठा लिया है कि कहीं पहले जैसे हालात तो नहीं बन जाएंगे?
स्पष्ट है कि जहां केंद्र सरकार को कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के लिए उठाए जा रहे कदमों की निगरानी बढ़ानी होगी, वहीं राज्यों को भी नए सिरे से कमर कसनी होगी। इसके साथ ही आम लोगों को भी समझना होगा कि कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है और अब भी पहले जैसी सावधानी बरतने की जरूरत है।
कोरोना के बढ़ते मामले कहीं न कहीं उस लापरवाही की देन हैं, जो आम लोगों के स्तर पर दिखाई जा रही है। यदि टीकाकरण का अभियान गति पकड़ रहा है तो इसका यह मतलब नहीं कि मास्क का इस्तेमाल करने एवं सार्वजनिक स्थलों में शारीरिक दूरी बनाए रखने के मामले में सतर्कता का परिचय न दिया जाए।
हर किसी को सावधान रहने की जरूरत इसलिए है, क्योंकि बात केवल खुद को कोरोना संक्रमण से बचाने की ही नहीं, बल्कि उद्योग-व्यापार, पठन-पाठन आदि से जुड़ी गतिविधियों को पहले जैसी स्थिति में लाने की भी है। इन सबकी चिंता इसलिए की जानी चाहिए, क्योंकि इससे ही आजीविका के साधनों को सुदृढ़ करने और अर्थव्यवस्था को बल देने में मदद मिलेगी।
यह ठीक है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय राज्यों में अपनी टीमें भेज रहा है, लेकिन उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीका कैसे लगे? अब जब टीकाकरण के प्रति उत्साह दिखाया जा रहा है, तब फिर कोशिश इसकी होनी चाहिए कि प्रतिदिन 25-30 लाख लोगों को टीका अवश्य लगे।
इसी तरह यह भी आवश्यक है कि टीका लगवाने के मामले में आयु की सीमा यदि खत्म न की जा सके तो उसे और कम तो किया ही जाए। वास्तव में ऐसी स्थिति बननी चाहिए कि जो भी टीका लगवाना चाहे, वह लगवा सके। उन्हें तो यह सुविधा मिलनी ही चाहिए, जो अपने काम-धंधे के सिलसिले में भीड़-भाड़ वाले इलाकों में आते-जाते हैं या सार्वजनिक परिवहन के साधन इस्तेमाल करते हैं।
सौजन्य - दैनिक जागरण।
0 comments:
Post a Comment