इस मामले को तो यथाशीघ्र उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाना ही चाहिए, पुलिस बल को ज्यादा प्रफेशनल, ज्यादा जिम्मेदार बनाने की जरूरत को भी अब और नहीं टाला जाना चाहिए।
उद्योगपति मुकेश अंबानी के आवास एंटीलिया के पास विस्फोटक पाए जाने का मामला अब किसी एक या कुछ खास अफसरों-नेताओं की गड़बड़ी तक सीमित नहीं रह गया है। फिलहाल गृहमंत्री अनिल देशमुख के इस्तीफे को लेकर पक्ष-विपक्ष में तलवारें तनी हुई हैं, लेकिन उनकी अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं से अलग हटकर देखें तो इस मामले से कई ऐसे गहरे सवाल उभर कर सामने आए हैं जिनका जवाब तलाशना बहुत जरूरी है। इसका यह मतलब हरगिज नहीं है कि संबंधित अफसरों-नेताओं की जिम्मेदारी के सवाल को आगे के लिए टरका दिया जाए।
सौ करोड़ रुपये प्रति माह वसूली की बात सनसनीखेज जरूर है, लेकिन लॉकडाउन की बंदी में इसे अविश्वसनीय मानने वालों को किनारे कर दें तो भी पुलिस द्वारा व्यापारियों से पैसा वसूलने को लेकर इतनी सारी बातें पहले से कही जाती रही हैं कि यह आरोप ज्यादा चौंकाता नहीं है। असल सवाल यह है कि इसे रोकने का कहीं भी कोई सुव्यवस्थित प्रयास क्यों नहीं दिखता। हाल ही में ‘पूर्व’ हुए मुंबई पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह से भी यह सवाल बनता है कि पद से हटाए जाने के बाद जो बातें उन्होंने कही हैं, पद पर रहते हुए ऐसा कोई संकेत भी क्यों नहीं दिया? उनके कमिश्नर रहते कोई उनके अधीनस्थ अधिकारियों को अवैध वसूली के काम में लगा रहा है, यह सूचना उन्हें उस समय जरा भी उद्वेलित क्यों नहीं कर पाई?
जिस निलंबित एपीआई सचिन वाजे के इर्द गिर्द पूरा विवाद खड़ा हुआ है, उसका निलंबन रद्द करके उसे दोबारा पुलिस सेवा में लाने और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपने के अपने फैसले के लिए वे किसको जिम्मेदार ठहराएंगे? राजनीतिक दलों को भी समझना होगा कि अस्पतालों के बिलों और रसीदों के जरिये किसी नेता का बचाव करने की एक सीमा होती है। यह पूरा प्रकरण इतना गंभीर है कि इस पर लीपापोती की कोई भी कोशिश घातक होगी। राज्य सरकार को हर हाल में यह सुनिश्चित करना होगा कि इस मामले की स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय जांच न केवल हो, बल्कि होती हुई सबको दिखे भी।
बेहतर होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दलों का शीर्ष नेतृत्व अविलंब ऐसी विश्वसनीय जांच की स्थिति बनाने के लिए काम शुरू करे। एक सवाल सरकारों के उस रवैये का भी है जिसकी वजह से ऐसे हालात बनते हैं। क्या वजह है कि न केवल महाराष्ट्र विकास आघाड़ी की मौजूदा सरकार बल्कि इससे पहले की बीजेपी सरकार ने भी पुलिस सुधारों को आगे बढ़ाने की कोई कोशिश नहीं की?
इस मामले को तो यथाशीघ्र उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाना ही चाहिए, पुलिस बल को ज्यादा प्रफेशनल, ज्यादा जिम्मेदार बनाने की जरूरत को भी अब और नहीं टाला जाना चाहिए। राज्यों और महानगरों के पुलिस प्रमुख भक्तिभाव देखकर नहीं, श्रेष्ठतम प्रफेशनल योग्यता के आधार पर ही चुने जाने चाहिए। अफसोस कि देश को इस जरूरत का अहसास उस मुंबई पुलिस की बदहाली देखकर हो रहा है, जिसे भारत का सबसे सक्षम पुलिस बल माना जाता रहा है।
सौजन्य - नवभारत टाइम्स।
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