बांग्लादेश के पचास वर्ष (हिन्दुस्तान)

बांग्लादेश निर्माण की पचासवीं वर्षगांठ भारत के साथ ही पूरे दक्षिण एशिया के लिए खुशी का क्षण है। सबसे ज्यादा महत्व इस बात का है कि बांग्लादेश ने ऐसे अहम मौके पर भारत को जिस तरह याद किया है, उसका प्रभाव पूरे क्षेत्र की शांति व तरक्की की बुनियाद मजबूत करेगा। दक्षिण एशिया में यह एक ऐसा देश है, जो कम समय में खुद को एक मुकाम पर पहुंचाकर अपनी सार्थकता सिद्ध कर चुका है। न केवल राजनीतिक, सामाजिक, बल्कि आर्थिक रूप से भी यह दक्षिण एशिया की एक शान है। वह हमारा ऐसा पड़ोसी है, जिसने कभी भारत के प्रति दुर्भाव का प्रदर्शन नहीं किया है। चीन, पाकिस्तान की जुगलबंदी हम जानते हैं और इधर के वर्षों में जब हम नेपाल को भी देखते हैं, तब हमें बांग्लादेश का महत्व ज्यादा बेहतर ढंग से समझ में आता है। शुक्रवार को ढाका के परेड ग्राउंड पर यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऐतिहासिक घड़ी को गर्व के क्षण बताया है, तो कतई आश्चर्य नहीं।

बांग्लादेश हमारा ऐसा दोस्त पड़ोसी है, जिसके बारे में प्रधानमंत्री मोदी एकाधिक बार ‘पड़ोसी पहले’ की भावना का इजहार कर चुके हैं। सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक संबंधों के आधार पर बांग्लादेश भारत के ऐसे निकटतम सहयोगियों में शुमार है, जो भारतीय हितों के प्रति सदा सचेत रहे हैं। आज पूर्वोत्तर राज्यों में जो शांति है, उसमें भी बांग्लादेश का बड़ा योगदान है। महत्व तो इसका भी है कि बांग्लादेश के बुलावे पर महामारी के समय में अपनी पहली विदेश यात्रा पर प्रधानमंत्री वहां गए हैं। इस यात्रा का फल पूरे क्षेत्र को मिलना चाहिए। दोनों देशों के बीच जो कुछ विवाद हैं, उन्हें जल्द सुलझाने के साथ ही नई दिल्ली और ढाका को विकास अभियान में जुट जाना होगा। बांग्लादेश को 50 वर्ष हो गए, तो आजाद भारत भी अपनी 75वीं वर्षगांठ की ओर बढ़ रहा है। गरीबी और सांप्रदायिक हिंसा ने दोनों देशों को समान रूप से चिंतित कर रखा है, मिलकर प्रयास करने चाहिए, ताकि दोनों देशों में व्याप्त बड़ी कमियों को जल्द से जल्द अलविदा कहा जा सके। बांग्लादेश की असली मुक्ति और भारत की असली आजादी समेकित विकास की तेज राह पर ही संभव है। प्रधानमंत्री ने अपनी यात्रा के अवसर पर बांग्लादेशी अखबार केलिए जो लेख लिखा है, उसे भी याद किया जाएगा। ध्यान रहे, अपने-अपने घरेलू मोर्चे पर अशिक्षा, कट्टरता, सांप्रदायिक हिंसा में भी हमने बहुत कुछ गंवाया है। वाकई, यदि बांग्लादेश के संस्थापक बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की हत्या न हुई होती, तो आज दक्षिण एशिया की तस्वीर अलहदा होती। बंगबंधु उस दर्द को समग्रता में समझते थे, जिससे गुजरकर दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश उभरा। उनके असमय जाने से देश कुछ समय के लिए भटकता दिखा, लेकिन आज वह विकास के लिए जिस तरह प्रतिबद्ध है, उसकी मिसाल पाकिस्तान में भी दी जाती है। प्रधानमंत्री ने सही इशारा किया है कि दोनों देश एक उन्नत एकीकृत आर्थिक क्षेत्र का निर्माण कर सकते हैं, जिससे दोनों के उद्यमों को तेजी से आगे बढ़ने की ताकत मिलेगी। जो देश दहशतगर्दी के पक्ष में रहना चाहते हैं, उन्हें छोड़ आगे बढ़ने का समय आ गया है। अब सार्क या दक्षेस को ज्यादा घसीटा नहीं जा सकता, क्योंकि अभावग्रस्त लोग इंतजार नहीं कर सकते। भारत और बांग्लादेश की मित्रता का भविष्य उज्ज्वल है।

सौजन्य - हिन्दुस्तान।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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